बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
संत भानुदास के कुल में जन्मे एकनाथ महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत थे। दुर्भाग्य से बाल्यकाल में ही पिता सूर्य नारायण और मां रुक्मिणी की मौत हो गई थी। जब उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं मिला, तो वह बाल्यावस्था में ही गुरुकुल चले गए। एकनाथ बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। एकनाथ ने संत ज्ञानेश्वर की परंपरा को उच्च शिखर तक पहुंचाया।कहा जाता है कि जब एकनाथ गुरुकुल में रहते हुए थोड़े बड़े हुए तो गुरु ने उन्हें आश्रम का हिसाब-किताब रखने का दायित्व सौंप दिया। एकनाथ बड़े खुशी मन से अपने कर्तव्य का निर्वहन करने लगे। लेकिन एक दिन एक पैसे का फर्क हिसाब-किताब में आया, तो वह परेशान हो गए। रात में सोचते-सोचते उन्हें पता चल गया कि एक पैसे का फर्कक्यों आया।
वह रात में ही यह बात बताने के लिए गुरु जी के पास पहुंच गए। गुरु ने उनकी बात सुनने के बाद कहा कि बेटा! तुम एक पैसे की भूल मिलने पर इतने प्रसन्न हो, जबकि वास्तविक जीवन में न जाने कितने भूलों के मायाजाल में फंसे हो। यह सुनकर एकनाथ के जीवन में वैराग्य जागा। और वह अपने गुरु से दीक्षा लेकर पर्वत पर तपस्या करने लगे। काफी दिनों बाद वह अपने घर के निकट रहने लगे। इसी दौरान उन्होंने विवाह भी किया और परिवार का दायित्व भी बड़ी अच्छी तरह से निभाया। उनके घर में नित्य भजन और पूजा पाठ जरूरत होता था। वह निर्धनों को अनाज भी बांटा करते थे।
एक दिन इनके घर में चोर घुस आए और सब कुछ उठाकर ले जाने लगे, तो उस समय भगवान की पूजा कर रहे एकनाथ ने चोरों से कहा, रुको भाई, इस सोने के कंगन को भी ले जाओ। शायद तुम्हें इसकी ज्यादा जरूरत है। यह सुनकर चोर शर्मिंदा हुए और चोरी ने करने का संकल्प लिया।

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