बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
ग्यारहवीं शताब्दी में पैदा हुए राजा भोज परमार वंश के शासक थे। उनकी राजधारी धार नगरी थी। वह स्वयं विद्वान थे और विद्वानों का बहुत आदर करते थे। जब राजा भोज ने शासन संभाला था, तो उन्होंने अपने आसपास के राजाओं को पराजित करके राज्य का काफी विस्तार कर लिया था।
लेकिन अंतत: उन्हें चंदेल सम्राट विद्याधर वर्मन से पराजित होना पड़ा और उनकी अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। कहते हैं कि एक बार राजा भोज ने अपनी राजधानी में एक समारोह आयोजित किया। इसमें उन्होंने अपने राज्य सहित अन्य राज्यों के विद्वानों को आमंत्रित किया। राजा भोज साल में एकाध बार ऐसे समारोह आयोजित किया करते थे। जब समारोह में विद्वानों का आना शुरू हुआ, तो राजा भोज ने सबका यथोचित आदर सत्कार किया।
उन्होंने देखा कि एक विद्वान काफी बढ़िया वस्त्र पहनकर आया हुआ है, तो उन्होंने उस विद्वान को अपने सिंहासन के नजदीक बैठाया। समारोह सभी विद्वानों ने अपने विचार रखे। समारोह में साधारण कपड़ों में एक विद्वान ने अपने विचार रखना शुरू किया, तो सब लोग मंत्रमुग्ध होकर उसकी बात सुनने लगे। राजा काफी देर तक उसकी बात को सुनकर गुनते रहे। जब उस विद्वान ने अपनी बात समाप्त की तो राजदरबार तालियों से गूंज उठा। जब वह विद्वान जाने लगा, तो राजा भोज उसे द्वार तक छोड़ने आए।
इस पर उनके एक दरबारी ने कहा कि जब अच्छे कपड़े पहने विद्वान आया था, तो आपने उसे अपने नजदीक बैठाया, लेकिन इसे आप द्वार तक छोड़ने आए, ऐसा क्यों? राजा ने कहा कि उसके अच्छे कपड़े देखकर उसके विद्वान होने का भ्रम हुआ था, लेकिन इस विद्वान ने जैसे ही पहला शब्द कहा, पता लग गया कि यह व्यक्ति सचमुच विद्वान है। कपड़ों से किसी की पहचान नहीं की जा सकती है।
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