Tuesday, May 20, 2025

ट्रंप के मुंह से जो निकल जाए, वही अमेरिका की विदेश नीति

अशोक मिश्र

अगर किसी देश की विदेश नीति या अर्थ नीति केवल एक ही व्यक्ति पर निर्भर हो, तो वही होता है, जो इन दिनों अमेरिका में हो रहा है। किसने सोचा था कि सन 2003 से 2011 तक अमेरिकी सेना की कैद में रहने वाले पूर्व आतंकी अहमद अल-शरा को ट्रंप एक दिन अच्छा आदमी बताकर उसकी तारीफ करेंगे। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने न केवल ऐसा किया, बल्कि सीरिया पर लगे सभी प्रतिबंध हटा दिए। पिछले साल दिसंबर में ट्रंप ने अहमद अल-शरा पर लगे सारे प्रतिबंध हटा लिए थे। अमेरिका ने ही अलकायदा के खूंखार आतंकी अबू मोहम्मद अल-जुलानी यानी अहमद अल-शरा पर दस लाख डॉलर यानी 84 करोड़ रुपये का ईनाम रखा था।
पिछले साल दिसंबर में सीरिया में विद्रोह के बाद जब बसर अल असद का पतन हुआ, तो अलकायदा की ही सीरिया शाखा जबात अल-नुस्र के कर्ताधर्ता जुलानी ने एक नया संगठन हयात तहरीर अल-शाम बनाया और सीरिया का भाग्य विधाता बन बैठा। इसने अपना नाम अबू मोहम्मद अल-जुलानी से बदलकर अहमद अल-शरा रख लिया और सीरिया का राष्ट्रपति बन गया। कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि पूरी दुनिया में सबसे अमीर और 27 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले देश के राष्ट्रपति ट्रंप एक अमेरिकी नागरिक को छुड़ाने के लिए हमास से बात करेंगे। लेकिन ट्रंप ने किया।
जब किसी देश की विदेश नीति या अर्थ नीति एक ही आदमी के हाथ में होती है, तो ऐसा ही होता है। वह किसी दूसरे देश के लिए कुछ भी बोल दे, वही विदेश नीति हो जाती है। जो कुछ भी आयात-निर्यात के बारे में तय कर दे, वही अर्थनीति हो जाती है। एकाधिकारवादी मानसिकता वाले ट्रंप ने टैरिफ के नाम पर बिना सोचे समझे चीन पर 145 प्रतिशत टैरिफ लगाया। जब उनके देश की अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी, जीडीपी में जनवरी से मार्च की पहली तिमाही में जीडीपी में 0.7 प्रतिशत की कमी आई, तो चीन से समझौता करने का रास्ता तलाशने लगे। अंतत: खुद ही यह कहते हुए चीन का टैरिफ 30 प्रतिशत पर ले आए कि चीन की अर्थव्यवस्था काफी नाजुक दौर से गुजर रही थी। चीन ने भी राहत की सांस लेते हुए अमेरिका पर दस प्रतिशत टैरिफ लगाकर संतोष कर लिया।
अपने डंडे से देश को हांकने वाला राष्ट्राध्यक्ष अकसर मनबढ़ हो जाता है। ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’वाली मानसिकता से पीड़ित ट्रंप हर मामले में टांग अड़ाते घूमते रहते हैं। कुछ दिन पहले ही उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को एक तरह से धमकाते हुए कहा कि यूक्रेन को वार्ता के लिए तुरंत सहमत हो जाना चाहिए। मुझे तो संदेह हो रहा है कि यूक्रेन रूस के साथ कोई समझौता करेगा या नहीं। दो दिन भी नहीं बीते थे कि ट्रंप का एक बयान आया कि मेरे और पुतिन से मिलकर बातचीत हुए बिना समझौता हो ही नहीं सकता है। ट्रंप कब और क्या कह बैठेंगे, कोई नहीं जानता है। अब भारत और पाकिस्तान के बीच सात से दस मई के बीच चले संघर्ष मामले में सीज फायर की ही बात लीजिए।
दस मई की शाम पांच बजे के आसपास दुनिया भर के टीवी चैनलों पर खबर फ्लैश होने लगी कि ट्रंप की मध्यस्थता में भारत-पाक सीजफायर पर सहमत हो गए। भारत सहित दुनियाभर के लोग चौंक पड़े। यह कब हुआ और कैसे हुआ? फिर पाकिस्तान ने पुष्टि की, ट्रंप को धन्यवाद दिया, लेकिन भारत ने ट्रंप की मध्यस्थता की बात को कड़ाई से खारिज कर दिया। दो-तीन दिन बाद ट्रंप ने फिर बयान दिया कि मैंने मध्यस्थता नहीं की, केवल मदद की।
इसके कुछ दिन बाद फिर ट्रंप अपने बयान पर पलटे और कहा कि मैंने मध्यस्थता की, लेकिन श्रेय नहीं मिला। इसी बीच सीजफायर न करने पर ट्रेड न करने की धमकी वाली बात भी खूब चर्चा का विषय रही। पीओके वाले मामले में मध्यस्थता की बात करके उन्होंने अपना ही मजाक उड़वाया। भारत कभी तीसरे पक्ष को इस मामले में स्वीकार ही नहीं कर सकता है।

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