अशोक मिश्र
ईरान के सासानी राजवंश में एक न्यायप्रिय बादशाह हुआ है जिसका नाम था नौशेरवां ए आदिल। इसका जन्म कब हुआ था, इसका जिक्र शायद ही कहीं हो, लेकिन मृत्यु 579 ईस्वी में हुई थी। उस का न्याय आज भी पूरी दुनिया में मशहूर है। फारसी और उर्दू साहित्य में नौशेरवां की खूब प्रशंसा की गई है। कहते हैं कि नौशेरवां ने अपने खास महल कस्र-ए-मदाइन के एक हिस्से को अदालत बना रखा था।
उस महल से एक जंजीर (जंजीर-ए-अद्ल, सिलसिला-ए-नौशेरवाँ) लटकती रहती थी। इंसाफ चाहने वाले और पीड़ित लोग इसी जंजीर-ए-अद्ल को खींचते थे फिर बादशाह उन की फरियाद सुनता था। महल कस्र-ए-मदाइन के बनने के बारे में एक रोचक किस्सा कहा जाता है। जब यह महल बनना शुरू हुआ, तो उस जमीन के बगल में एक बुजुर्ग महिला की झोपड़ी थी।
नौशेरवां को झोपड़ी वाली जमीन की जरूरत थी क्योंकि उसका महल चौरस नहीं बन पा रहा था। बादशाह ने बुजुर्ग महिला को बुलाया और कहा कि वह जमीन की कीमत ले ले और वह जमीन उसे दे दे। महिला ने जमीन बेचने से इनकार कर दिया। कुछ दिन बाद बादशाह ने उसे फिर बुलाया और कहा कि वह जमीन उसे दे दे और उसकी जगह वह एक बहुत बढ़िया मकान बनाकर वह उसे दे देगा।
महिला ने कहा कि इस जमीन से मेरी यादें जुड़ी हुई हैं। हमारी परंपराए जुड़ी हैं, मैं यह जमीन नहीं दे सकती। महल बनकर तैयार हुआ तो बुजुर्ग महिला की भट्ठी के धुएं से महल की दीवार काली होने लगी, तो बादशाह ने कहा कि वह भट्ठी न जलाए। उसका खाना उसे महल की रसोई से मिल जाया करेगा। इस पर महिला ने जवाब दिया कि क्या मैं कोई लूली लंगड़ी हूं जो आपका दिया खाना खाऊं। महिला ने न भट्ठी जलाना बंद किया और न ही बादशाह ने उससे भविष्य में कुछ कहा।
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ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसही है जब तक हाथ पैर है तब तक क्या सहारा लेना
ReplyDeleteबहुत बढ़िया। अच्छी कहानी
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