पिछले साल हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी कांग्रेस के नेताओं के रवैये में थोड़ा सा भी बदलाव नहीं आया है। चुनाव से पूर्व पूरे प्रदेश में यह बात कही जा रही थी कि इस बार का दस साल का सूखा खत्म करके अपनी सरकार बना सकती है। मीडिया में भी यह बात खुलेआम कही जाने लगी थी। सरकार बनने की थोड़ी सी संभावना दिखते ही कांग्रेसी नेताओं का जोश उबाल मारने लगा और प्रदेश कांग्रेस के तीनों गुट मुख्यमंत्री पद के दावेदार बनकर एक दूसरे की आलोचना करने लगे। खुलेआम मीडिया में एक दूसरे को चुनौती दी जाने लगी। नतीजा वही हुआ, माया मिली न राम।
हार के बाद भी प्रदेश कांग्रेस के नेताओं में मिल जुलकर पार्टी को फिर से खड़ा करने की समझ नहीं पैदा हुई। हरियाणा कांग्रेस की स्थिति कितनी दयनीय है कि अभी तक विधानसभा में नेता विरोधी दल का चुनाव तक नहीं हो पाया है। अब मीडिया में यह कहा जाने लगा है कि प्रदेश कांग्रेस की आपसी उठापटक और गुटबाजी से नाराज राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का यहां के नेताओं पर विश्वास ही नहीं रह गया है। वह प्रदेश कांग्रेस के नेताओं की कोई बात ही नहीं सुन रहे हैं। कहा तो यह भी जाने लगा है कि कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश में 21 पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की है।
यह पर्यवेक्षक राहुल गांधी के अत्यंत विश्वसनीय लोग बताए जा रहे हैं। प्रत्येक जिलों में नियुक्त किए गए पर्यवेक्षक प्रदेश के नेताओं से किसी तरह का फीडबैक लिए बिना सीधे कार्यकर्ताओं से मिलेंगे। वह उनकी राय जानेंगे, कौन सा नेता कहां तक लोगों में लोकप्रिय है, किसकी छवि पार्टी को नुकसान पहुंचा रही है, किसी गुटबाजी से संगठन को नुकसान पहुंच रहा है, जैसी बातों को पता लगाएंगे। कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेने के बाद सभी पर्यवेक्षक अपनी अपनी रिपोर्ट हाईकमान के सामने पेश करेंगे।
इसके बाद ही विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष से लेकर ब्लाक और तहसील स्तर के अध्यक्षों की नियुक्ति की जाएगी। कांग्रेस पिछले ग्यारह साल से प्रदेश की सत्ता से दूर है। हालत तो यह है कि प्रदेश में कांग्रेस का संगठन तक छिन्न-भिन्न हो चुका है। कांग्रेस हाई कमान ने 2014 में फूलचंद मुलाना की जगह पर अशोक तंवर को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी थी।
लेकिन तंवर प्रदेश कार्यकारिणी में एक भी नियुक्ति नहीं कर सके क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से उनकी बनती नहीं थी। सितंबर 2019 में कुमारी सैलजा को प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने काफी प्रयास किए, लेकिन बात बनी नहीं। अप्रैल 2022 से उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन मामला वही ठाक के तीन पात वाला रहा।
No comments:
Post a Comment