अशोक मिश्र
सुकरात का जन्म 470 ईसा पूर्व एथेंस में हुआ था। पश्चिमी दार्शनिकों में उनका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। उनके दर्शन से घबराकर यूनान के सम्राट ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी। सम्राट को लगता था कि सुकरात अपने विचारों से युवाओं को राज्य सत्ता के खिलाफ बागी बना रहे हैं।
उन दिनों जब यूनान में किसी को मौत की सजा दी जाती थी, तो उसे जहर से भरा प्याला पीने को दिया जाता था। सुकरात को भी जब जहर का प्याला दिया गया, तो उन्होंने शांत भाव से उसे लिया और पीकर मर गए। सुकरात की मौत 399 ईसा पूर्व हुई थी। सुकरात के जीवन काल की एक बहुत प्रसिद्ध घटना है। एक दिन उनके पास एक धनवान व्यक्ति पहुंचा। उसे अपनी धन-दौलत का बहुत अभिमान था। वह हर किसी के सामने बात-बात में अपनी अमीरी का बखान करता रहता था।
सुकरात के पास भी वह अपनी संपत्ति का गान करने लगा। सुकरात धैर्य से उसकी बात सुनते रहे। बहुत देर तक जब वह व्यक्ति चुप नहीं हुआ तो सुकरात उस व्यक्ति को वहीं अपनी कुटिया में दीवार पर टंगे विश्व के मानचित्र के पास ले गए और उससे बोले, बताओ इस नक्शे में एथेंस नगर कहां है? धनवान व्यक्ति ने अंदाज लगाते हुए कहा, यहीं कहीं होगा। अब सुकरात ने पूछा, इस एथेंस नगर में तुम्हारा आलीशान मकान कहां है? धनवान व्यक्ति के पास कोई जवाब नहीं था, क्योंकि उस नक्शे में उसका मकान कहीं दिख ही नहीं रहा था।
धनवान व्यक्ति को समझ में आ गया। तब सुकरात ने उसे पास बैठाकर समझाया- इस विशाल ब्रह्मांड में हमारा अस्तित्व तो नहीं के बराबर है, इसलिए हमें अपनी सीमित उपलब्धियों पर अहंकार नही करना चाहिए। यह सुनकर वह धनवान व्यक्ति लज्जित हो गया और वह सुकरात के चरणों में गिरकर माफी मांगने लगा। उसके बाद से वह व्यक्ति सुकरात का शिष्य बन गया और समाजसेवा में जुट गया।
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