Wednesday, May 7, 2025

संत बोला, मैं मालिक हूं कोई मुझे खरीदेगा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों का गुलाम नहीं होता है, अपनी कामनाओं को काबू में रखता है, उसे विषय भोग की इच्छा नहीं रहती है, वह पूरी तरह मस्त और परम स्वतंत्र होता है। वह न तो किसी का दास होता है और न ही किसी का मालिक। वह स्वयं अपना मालिक होता है। उसे कोई दास भी नहीं बना सकता है। एक बार की बात है। अरब देश में एक संत रहता था। वह अपने में ही मस्त रहता था। 

जो कोई उससे राय मशविरा करने आता, तो वह जो भी उचित होता, वह बता देता। लोग उसके पास खाने-पीने को रख जाते, वह उसी में संतुष्ट रहता था। जरूरत पड़ने पर वह हर किसी की मदद करता था। इस वजह से लोग भी उसे बहुत मानते थे। एक दिन वह कहीं जा रहा था। रेगिस्तानी इलाके में संत को मस्ती से गाते-झूमते देखकर लोगों को गुलाम बनाकर बेचने वाले गिरोह ने सोचा कि यह तो बड़ा हट्टा कट्टा है। यदि उसे पकड़कर बाजार में बेचा जाए, तो इसकी अच्छी कीमत मिलेगी। 

थोड़ी दूर जाने के बाद गिरोह के लोगों ने संत को घेर लिया। संत ने कोई विरोध नहीं किया। उसे अच्छी तरह से बांध दिया गया। उसने कोई विरोध नहीं किया। गिरोह के लोग उसे लेकर बाजार में गए, तब भी वह मस्ती से गुनगुना रहा था। गिरोह के लोग आश्चर्य में थे कि यह कैसा आदमी है, जो विरोध नहीं कर रहा है। गिरोह के मुखिया ने जोरदार आवाज लगाई-एक हट्टा कट्टा गुलाम है, कोई खरीदेगा। 

यह सुनकर संत ने उससे भी जोरदार आवाज में कहा, मैं अपनी इंद्रियों को गुलाम बना चुका हूं। मैं मालिक हूं। कोई मालिक खरीदेगा। यह सुनकर बाजार में आए हुए लोग समझ गए कि यह कोई बड़ा ज्ञानी पुरुष है। लोगों ने गिरोह के आदमियों को घेर लिया और मारने-पीटने लगे। संत ने उन्हें अलग किया और उन्हें जाने देने को कहा। यह सुनकर गिरोह को अपनी गलती का पता चला। उन्होंने संत से माफी मांगी और कभी ऐसा न करने का वायदा किया।

No comments:

Post a Comment