Friday, December 19, 2025

अपनी गरिमा के अनुरूप आचरण नहीं करते शिक्षक


अशोक मिश्र

अध्यापक को भगवान से भी बड़ा दर्जा हमारे समाज में दिया गया है।  अध्यापक ही बच्चों को पढ़ा-लिखाकर एक सभ्य नागरिक बनाता है। सदियों से हमारे देश में अध्यापक ही समाज के प्रेरणास्रोत रहे हैं। हमारे देश के हजारों महापुरुषों और अवतारों ने गुरु की महिमा का बखानी है। जितने भी महापुरुष हुए हैं, उन्होंने अपने जीवन को सुधारने और महान बनाने में शिक्षक की भूमिका का बड़े गर्व के साथ उल्लेख किया है। वैसे भी दुनिया के हर समाज में शिक्षक को उच्च स्थान दिया गया है। लेकिन जब यही शिक्षक अपनी गरिमा के अनुरूप आचरण नहीं करते हैं, तो काफी दुख होता है। 

फरीदाबाद की जवाहर कॉलोनी स्थित सारण गांव के सरकारी स्कूल में गणित विषय के अध्यापक ने स्कूल बंक करने पर एक छात्र की बुरी तरह पिटाई की। मामले का खुलासा तब हुआ जब एक बच्चे द्वारा बनाया गया वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इसमें शिक्षक दो बच्चों की सहायता से बंक करने वाले छात्र के तलवों पर डंडों से बुरी तरह पिटाई कर रहा है। वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने मामले को स्वत:संज्ञान में लिया है। यही नहीं, प्रदेश में आए दिन कोई न कोई ऐसी घटना जरूर प्रकाश में आ जाती है जिससे वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो जाते हैं। इसी साल 22 अगस्त की बात है। 

पानीपत के जाटल स्थित एक निजी स्कूल में सात वर्षीय बच्चा होमवर्क करने नहीं लाया, तो प्रिंसिपल ने पहले उस बच्चे को खुद सजा दी। बाद में उस बच्चे को बस ड्राइवर को सौंप दिया। ड्राइवर ने बच्चे को ऊपर ले जाकर उल्टा लटका दिया और बुरी तरह पिटाई की। मामला खुला, तो काफी हो हल्ला मचा। अभिभावक सहित लोगों ने प्रिंसिपल और आरोपी ड्राइवर के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए प्रदर्शन किया। 

दिसंबर के पहले हफ्ते में फतेहाबाद की भूना ब्लाक में स्थित एक निजी स्कूल में मोबाइल लाने पर प्रिंसिपल ने दो छात्राओं की बुरी तरह पिटाई कर दी। सत्रह से उन्नीस साल की छात्राओं को प्रिंसिपल ने ताल घूंसों से पिटाई की। इस घटना का वीडियो वायरल होने पर स्कूल के खिलाफ कार्रवाई की गई। 

प्रदेश में अक्सर होने वाली ऐसी घटनाएं बताती हैं कि शिक्षक अपनी मर्यादा की सीमा लांघ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि आज से  दो-तीन दशक पहले तक स्कूलों में छात्र-छात्राओं को मार नहीं पड़ती थी। मार पड़ती थी और फटकार भी लगाई जाती थी, लेकिन तब मार और फटकार का  उद्देश्य सुधारात्मक था। चरित्र और व्यक्तित्व विकास के लिए शिक्षक शारीरिक दंड दिया करते थे। उनके शारीरिक दंड का उद्देश्य व्यक्तिगत कुंठा, द्वेष या खीझ निकालना नहीं होता था। बच्चों की भलाई के लिए अध्यापक हर तरीका अपनाते थे, लेकिन अगर सजा भी देनी पड़ती थी, तो वह मानवीय होती थी।

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