Friday, December 19, 2025

नाच लोक नाट्य कला के जनक भिखारी ठाकुर

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

भिखारी ठाकुर को नाच लोक नाट्य कला का जनक माना जाता था। वह महिला पात्रों की भूमिकाएं पुरुषों से करवाते थे। 18 दिसंबर 1887 को बिहार के छपरा जिले के कुतुबपुर दियारा में जन्मे भिखारी ठाकुर के पूर्वज बाल काटने का पेशा करते थे। कहते हैं कि जब 1914 में अकाल पड़ा तो उन्हें मजबूरन अपना गांव छोड़कर पश्चिम बंगाल के खड़गपुर आना पड़ा। 

पहले से ही खड़गपुर में उनके चाचा और गांव के अन्य लोग रहते थे। थोड़ा घुमक्कड़ प्रवृत्ति का होने की वजह से वह कलकत्ता और पुरी भी गए। वहां उन्होंने सिनेमा, नौटंकी और रामलीला आदि देखने का अवसर मिला। नाट्यकला और काव्य रचना की प्रतिभा तो जैसे उनमें जन्मजात थी ही, बस एक अवसर की तलाश थी। नौटंकी और रामलीला आदि को देखने के बाद वह सोचने लगे कि यदि मैं इसमें अपना भाग्य आजमाऊं, तो शायद कुछ बात बन जाए। 

यही सोचकर वह अपने गांव लौट आए। गांव के लोगों ने जब यह सुना कि वह नौटंकी में काम करेंगे, तो  लोगों ने अपमानजनक शब्द कहे। भिखारी ठाकुर ने उनके अपमान जनक शब्दों को ही अपनी ताकत बना ली। वह गीत रचते, उन्हें लय में गुनगुनाते और जब मंच पर पहुंचते तो उसे एकदम जीवंत कर देते थे। उनके गीतों, नाटकों में दलित जातियों की व्यथा, स्त्री जाति के साथ होने वाले अन्याय का मुखर विरोध होता था। 

कहा जाता है कि गबरघीचोर की तुलना अक्सर बर्टोल्ट ब्रेख्त के नाटक द कॉकेशियन चॉक सर्कल से की जाती है। एक दिन वह भी आया जब भिखारी ठाकुर की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई। बिदेशिया, बेटी बेचवा, गबरघीचोर जैसी रचनाओं ने समाज को जागृत करने का काम किया।

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