Saturday, May 31, 2025

बीथोवन ने कहा, हटो मैं सिखाता हूं बजाना

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जर्मनी के महान संगीतकार और पियानो वादक थे लुडविग वान बीथोवन। बीथोवन का जन्म 17 दिसंबर 1770 में हुआ था। वह जीवन भर स्वभावगत समस्याओं से जूझते रहे। जीवन भर अत्यंत शराब पीने की वजह से वह बुढ़ापे में लिवर सिरोसिस जैसी बीमारी से पीड़ित हो गए थे। उनका लिवर सिकुड़कर चौथाई रह गया था। कहा जाता है कि उनका पूरा परिवार शराब पीने के लिए काफी मशहूर था। 

उनकी दादी भी खूब शराब पीती थीं। उनके पिता की तो ख्याति ही शराबी के रूप में थी। इसके साथ-साथ उन्हें जवानी में ही बहरेपन की बीमारी हो गई थी। बीथोवन की मृत्यु 26 मार्च 1827 में हो गई थी। कहा जाता है कि उनके अंतिम संस्कार के समय दस हजार लोग उपस्थित थे। जिनमें अपने समय के प्रसिद्ध संगीतकार, लेखक और गणमान्य लोग शामिल थे। एक बार की बात है। 

वह कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक झोपड़ी से एक लड़की उनकी बनाई धुन पर अभ्यास कर रही थी। वह लड़की दृष्टिहीन थी। सामने उसका पिता बैठा हुआ था। उस लड़की ने थोड़ी देर बात कहा कि पिता जी, कितना अच्छा होता कि इस धुन को बजाना सिखाने के लिए कोई संगीतकार होता। लड़की के पिता ने कहा कि हम गरीबों को कौन संगीतकार सिखाएगा। तब लड़की ने कहा कि पिताजी, मैं वायदा करती हूं कि एक दिन इस धुन को अच्छी तरह से बजाना सीख लूंगी। 

बीथोवन ने झोपड़ी में घुसकर कहा, हटो, मैं तुम्हें यह धुन बजाना सिखाता हूं। उन्होंने एक घंटे तक धुन बजाई और उस लड़की को सिखाया। लड़की ने कहा कि इतना अच्छा बजाना तो वह संगीतकार भी नहीं सिखा सकता था जिसने यह धुन बनाई है। बीथोवन ने कहा कि यह मेरी धुन है जिसे तुम बजा रही थी। यह सुनकर लड़की की आंखों में आंसू आ गए।

हरियाणा में अवैध खनन से बच पाएंगी अरावली की पहाड़ियां?

अशोक मिश्र

हरियाणा के हिस्से में आने वाली अरावली की पहाड़ियों पर हो रहा अवैध खनन चिंताजनक स्थिति में पहुंचता जा रहा है। गुरुवार को ही सुप्रीमकोर्ट ने खनन माफिया और अवैध खनन के लिए जिम्मेदार अफसरों पर सख्त कार्रवाई न करने के मामले में हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। मामले की सुनवाई के दौरान प्रदेश के मुख्य सचिव ने जो हलफनामा पेश किया था, उससे इस बात का पता ही नहीं चल रहा था कि अरावली पहाड़ियों पर अवैध खनन कर रहे माफिया और उसके लिए जिन्मेदार अधिकारियों पर क्या कार्रवाई की गई है। हलफनामा देखकर सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस अगस्टीन जार्ज मसीह नाराज हो उठे और उन्होंने मुख्य सचिव के टालमटोल वाले रवैये के प्रति सख्त नाराजगी जाहिर की। 

सर्वोच्च न्यायालय की ओर से गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने  हरियाणा सरकार को नूंह में अरावली की पहाड़ियों पर हो रहे  अवैध खनन को रोकने और इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश दिए थे। सीईसी के आदेश के बाद जिला प्रशासन सक्रिय हुआ। कुछ लोगों के खिलाफ जिला प्रशासन ने कार्रवाई भी की है, लेकिन सुप्रीमकोर्ट इतने भर से संतुष्ट नहीं है। कहा जा रहा है कि नूंह जिले के रवा, बसईमेव, घाटा-शमशाबाद, चित्तौड़ा और अन्य चार गांवों में बड़े पैमाने पर खनन होता रहा। खबरों की मानें तो इसमें स्थानीय सरपंच भी शामिल रहे हैं। आठ से दस किमी की लंबाई में राजस्थान के हिस्से की पहाड़ी बताकर पिछले पंद्रह साल से अवैध खनन हो रहा था, जबकि जिस हिस्से में खनन हो रहा था, वास्तव में वह हरियाणा में थी। 

पिछले पंद्रह साल में खनन माफिया ने आठ से दस किमी क्षेत्र में पूरी पहाड़ी को ही वीरान कर दिया। 2023 के दौरान राजस्थान में किए एक अध्ययन के मुताबिक 1975 से 2019 के बीच अरावली की करीब आठ फीसदी पहाड़ियां गायब हो गईं। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि अगर अवैध खनन और शहरीकरण ऐसे ही बढ़ता रहा तो 2059 तक यह नुकसान 22 फीसदी पर पहुंच जाएगा। 

नूंह के नहरिका, चित्तौड़ा और रावा आदि गांवों में मौजूद पहाड़ियों से आठ करोड़ मीट्रिक टन से ज्यादा खनन सामग्री गायब हो चुकी है। इससे हरियाणा को करीब 22 अरब रुपये का नुकसान होने का अनुमान है। गुजरात से लेकर हरियाणा तक फैली अरावली की पहाड़ियों पर खनन माफियाओं की कई दशकों से निगाह रही है। अरावली पर पेड़ों की अवैध कटान से लेकर खनन तक होता रहा है और इसमें कुछ स्थानीय अधिकारियों की भी मिलीभगत की बात कही जाती रही है। अरावली क्षेत्र में ही कूड़ा कचरा डालने की बात भी उठती रही है।

Friday, May 30, 2025

सीमित उपलब्धियों पर अहंकार कैसा?

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

सुकरात का जन्म 470 ईसा पूर्व एथेंस में हुआ था। पश्चिमी दार्शनिकों में उनका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। उनके दर्शन से घबराकर यूनान के सम्राट ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी। सम्राट को लगता था कि सुकरात अपने विचारों से युवाओं को राज्य सत्ता के खिलाफ बागी बना रहे हैं। 

उन दिनों जब यूनान में किसी को मौत की सजा दी जाती थी, तो उसे जहर से भरा प्याला पीने को दिया जाता था। सुकरात को भी जब जहर का प्याला दिया गया, तो उन्होंने शांत भाव से उसे लिया और पीकर मर गए। सुकरात की मौत 399 ईसा पूर्व हुई थी। सुकरात के जीवन काल की एक बहुत प्रसिद्ध घटना है। एक दिन उनके पास एक धनवान व्यक्ति पहुंचा। उसे अपनी धन-दौलत का बहुत अभिमान था। वह हर किसी के सामने बात-बात में अपनी अमीरी का बखान करता रहता था। 

सुकरात के पास भी वह अपनी संपत्ति का गान करने लगा। सुकरात धैर्य से उसकी बात सुनते रहे। बहुत देर तक जब वह व्यक्ति चुप नहीं हुआ तो सुकरात उस व्यक्ति को वहीं अपनी कुटिया में दीवार पर टंगे विश्व के मानचित्र के पास ले गए और उससे बोले, बताओ इस नक्शे में एथेंस नगर कहां है? धनवान व्यक्ति ने अंदाज लगाते हुए कहा, यहीं कहीं होगा। अब सुकरात ने पूछा, इस एथेंस नगर में तुम्हारा आलीशान मकान कहां है? धनवान व्यक्ति के पास कोई जवाब नहीं था, क्योंकि उस नक्शे में उसका मकान कहीं दिख ही नहीं रहा था। 

धनवान व्यक्ति को समझ में आ गया। तब सुकरात ने उसे पास बैठाकर समझाया- इस विशाल ब्रह्मांड में हमारा अस्तित्व तो नहीं के बराबर है, इसलिए हमें अपनी सीमित उपलब्धियों पर अहंकार नही करना चाहिए। यह सुनकर वह धनवान व्यक्ति लज्जित हो गया और वह सुकरात के चरणों में गिरकर माफी मांगने लगा। उसके बाद से वह व्यक्ति सुकरात का शिष्य बन गया और समाजसेवा में जुट गया।

सीएम सैनी की सख्ती से सुधरने लगा हरियाणा का लिंगानुपात

अशोक मिश्र

पानी, प्रदूषण और गड़बड़ाता लिंगानुपात हरियाणा की सबसे बड़ी समस्याएं हैं। यदि इन समस्याओं पर नियंत्रण पाने में प्रदेश सरकार सफल हो जाए, तो काफी हद तक प्रदेश खुशहाली के रास्ते पर चल निकलेगा। वैसे तो आर्थिक स्थिति के मामले में हरियाणा देश के कई राज्यों के मुकाबले में काफी ठीक ठाक स्थिति में है, लेकिन लिंगानुपात के मामले में स्थिति दयनीय है। 

सन 2015 में जब पीएम नरेंद्र मोदी ने देश भर में गिरते लिंगानुपात को सुधारने के लिए पानीपत से ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान शुरू किया था, तो राज्य में लिंगानुपात की स्थिति काफी हद तक सुधर गई थी। वर्ष 2019 में तो एक हजार लड़कों के पीछे लड़कियों की संख्या 916 तक पहुंच गई थी। लिंगानुपात में आशातीत सुधार देखकर केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार भी बहुत उत्साहित थी। उसे लगने लगा था कि अब प्रदेश में लड़कियों की संख्या एक सम्मानजनक स्थिति तक पहुंच जाएगी। 

लेकिन उसके दो साल बाद ही पूरी दुनिया में कोरोना महामारी फैली और नतीजा यह हुआ कि जो उपलब्धि हासिल हुई थी, वह हाथ से फिसल गई। कोरोना महामारी के चलते कन्या भ्रूण हत्या और अवैध गर्भपात पर निगाह रखने वाली एजेंसियों की सख्ती कम होती गई जिसका नतीजा यह हुआ कि प्रदेश का लिंगानुपात एक बार फिर अपनी पुरानी स्थिति में लौट गया। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब जैसे राज्यों में बिना लाइसेंस के चलने वाले क्लीनिकों में हरियाणा के लोग कन्या भ्रूण हत्या और अवैध गर्भपात कराने लगे। प्रदेश में भी कई जगह चोरी छिपे भ्रूण हत्याएं की गईं। कोरोना महामारी का प्रकोप कम होते ही सरकार ने एक बार फिर सख्ती बरतनी शुरू की, तो इसके सकारात्मक परिणाम आने लगे। 

वर्तमान समय में लिंगानुपात 911 है। अब सैनी सरकार इस संख्या को और भी आगे ले जाना चाहती है। इसके लिए उन्होंने संबंधित विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को स्पष्ट निर्देश दे रखा है कि यदि उनके स्तर से किसी मामले में लापरवाही पाई गई, तो इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा। इस चेतावनी का असर कुछ जिलों में दिखाई भी देने लगा है। अभी हाल में ही जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक पंचकूला, पलवल, नूंह, गुरुग्राम और अंबाला जैसे जिलों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। इन जिलों में लिंगानुपात काफी हद तक सुधरा है। इन जिलों से दूसरे जिलों को भी प्रेरणा लेने की जरूरत है। 

सीएम सैनी की सख्ती का ही नतीजा है कि लिंगानुपात के लिए सुधारने के लिए गठित टॉस्क फोर्स ने सात सौ से कम लिंगानुपात वाले गांवों की पहचान की है। प्रदेश के चौदह जिलों में एमटीपी किट्स की बिक्री में भारी कमी भी आई है।

Thursday, May 29, 2025

मैं लूली लंगड़ी हूं जो आपका दिया खाना खाऊं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

ईरान के सासानी राजवंश में एक न्यायप्रिय बादशाह हुआ है जिसका नाम था नौशेरवां ए आदिल। इसका जन्म कब हुआ था, इसका जिक्र शायद ही कहीं हो, लेकिन मृत्यु 579 ईस्वी में हुई थी। उस का न्याय आज भी पूरी दुनिया में मशहूर है। फारसी और उर्दू साहित्य में नौशेरवां की खूब प्रशंसा की गई है। कहते हैं कि नौशेरवां ने अपने खास महल कस्र-ए-मदाइन के एक हिस्से को अदालत बना रखा था। 

उस महल से एक जंजीर (जंजीर-ए-अद्ल, सिलसिला-ए-नौशेरवाँ) लटकती रहती थी। इंसाफ चाहने वाले और पीड़ित लोग इसी जंजीर-ए-अद्ल को खींचते थे फिर बादशाह उन की फरियाद सुनता था। महल कस्र-ए-मदाइन के बनने के बारे में एक रोचक किस्सा कहा जाता है। जब यह महल बनना शुरू हुआ, तो उस जमीन के बगल में एक बुजुर्ग महिला की झोपड़ी थी। 

नौशेरवां को झोपड़ी वाली जमीन की जरूरत थी क्योंकि उसका महल चौरस नहीं बन पा रहा था। बादशाह ने बुजुर्ग महिला को बुलाया और कहा कि वह जमीन की कीमत ले ले और वह जमीन उसे दे दे। महिला ने जमीन बेचने से इनकार कर दिया। कुछ दिन बाद बादशाह ने उसे फिर बुलाया और कहा कि वह जमीन उसे दे दे और उसकी जगह वह एक बहुत बढ़िया मकान बनाकर वह उसे दे देगा। 

महिला ने कहा कि इस जमीन से मेरी यादें जुड़ी हुई हैं। हमारी परंपराए जुड़ी हैं, मैं यह जमीन नहीं दे सकती। महल बनकर तैयार हुआ तो बुजुर्ग महिला की भट्ठी के धुएं से महल की दीवार काली होने लगी, तो बादशाह ने कहा कि वह भट्ठी न जलाए। उसका खाना उसे महल की रसोई से मिल जाया करेगा। इस पर महिला ने जवाब दिया कि क्या मैं कोई लूली लंगड़ी हूं जो आपका दिया खाना खाऊं। महिला ने न भट्ठी जलाना बंद किया और न ही बादशाह ने उससे भविष्य में कुछ कहा।

बाढ़ नियंत्रण और जलसंरक्षण का खोजना होगा स्थायी निदान

अशोक मिश्र

हरियाणा पिछले कई दशकों से जल संकट से जूझता चला आ रहा है। हर साल कभी बाढ़ की वजह से राज्य के लोग परेशान होते हैं, तो कभी पानी की कमी से। दो साल पहले जुलाई 2023 में राज्य सरकार को 12 जिलों को बाढ़ग्रस्त घोषित करना पड़ा था। इस बाढ़ से काफी नुकसान हुआ था। लोगों के घरों में बाढ़ का पानी घुस जाने से न केवल उनके घरेलू सामान का नुकसान हुआ था, बल्कि खेतों में पानी भर जाने से फसलों को भी भारी नुकसान हुआ था। यह स्थिति दोबारा न पैदा हो, इसके लिए सीएम नायब सिंह सैनी ने सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग और जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक करके सख्त निर्देश दिए हैं कि वह 15 जून तक हर हालत में ड्रैनेज की सफाई करवा लें। 

मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग ने मानसून आने से पहले ड्रेनेज की सफाई की योजना बनानी भी शुरू कर दी है ताकि वर्षाकाल में बाढ़ से निपटने और जल भंडारण में किसी किस्म की परेशानी न हो। वैसे तो योजना यह बनाई जा रही है कि बाढ़ से निपटने और जल भंडारण के लिए एसवाईएल और हांसी-बुटाना लिंक नहरों का उपयोग किया जाए। 

इसके साथ ही साथ ड्रेनों और घग्घर नदी का पानी इन दोनों नहरों में डालने के साथ बरसाती पानी को रोकने के लिए अस्थायी अवरोध बनाए जाएंगे ताकि पानी का संचयन किया जा सके। यह सही है कि यदि सरकार ऐसी व्यवस्था करने में सफल हो जाती है तो निश्चित रूप से बाढ़ से होने वाले नुकसान से लोगों को बचाया जा सकता है, बल्कि भूमि को रिचार्ज भी किया जा सकता है। इससे सिंचाई की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। समीक्षा बैठक में सीएम सैनी ने भले ही अधिकारियों को चेतावनी दी हो कि किसी भी किस्म की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी, लेकिन इस किस्म की चेतावनी पहले भी कई बार दी जा चुकी है। 

हर साल यह देखने में आता रहा है कि जब भी मानसून आने में कुछ समय रह जाता था तो अधिकारी सक्रिय हो जाते थे। बैठकें होती थीं, आदेश जारी किए जाते थे और अंत में जब बरसात होती थी, तो खबरें आती थीं कि फलां इलाके में पानी भर गया है, अमुक सड़कों पर कई दिनों से बरसाती पानी भरा हुआ है। हालांकि सीएम सैनी ने मानसून आने में काफी कम समय बचा होने की वजह से ड्रेनों की आंतरिक सफाई पर चिंता जाहिर की है। 

सरकार को सबसे पहले तो हर जिले में वह स्थान चिन्हित करना होगा, जहां जलभराव हर साल होता है। उस स्थान पर पानी निकासी की सबसे पहले हल खोजना होगा। जलभराव के कारणों की पहचान करनी होगी, तभी समस्या का स्थायी हल खोजा जा सकेगा।

Wednesday, May 28, 2025

बेवजह सैनिकों का खून बहाने से क्या लाभ

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

सिकंदर का जन्म 356 ईसा पूर्व मैसेडोनिया में हुआ था। पिता राजा फिलिप की हत्या के बाद सिकंदर ने मैसेडोनिया का शासन संभाला और उसे विस्तार देना शुरू किया। सिकंदर का वास्तविक नाम अलेक्जेंडर था। उसका सिर्फ 33 साल की उम्र में ही निधन हो गया था, लेकिन उस समय की ज्ञात दुनिया का लगभग एक तिहाई भाग जीत लिया था। सिकंदर ने सने अपने कार्यकाल में इरान, सीरिया, मिस्र, मसोपोटेमिया, फिनीशिया, जुदेआ, गाझा, बॅक्ट्रिया और भारत के कंधार पर हमला करके उसे जीत लिया था। 

कंधार में उसने राजा पोरस यानी पुरु को पराजित किया था। इसके बाद युद्ध से ऊबी हुई सेना के बगावती रुख अख्तियार करने पर वह वापस यूनान की ओर लौट गया। रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई। कहते हैं कि एक राज्य पर उसने आक्रमण किया, तो वहां के राजा ने अपनी सारी सेना को सिकंदर का सामना करने के लिए भेज दिया। 

कहीं कहीं पर इस राजा का नाम फिलिप बताया जाता है, लेकिन इतिहासकारों को मानना है कि उसके पिता फिलिप द्वितीय के अलावा उसके शासनकाल में कोई राजा फिलिप नहीं था जिससे उसका युद्ध हुआ हो। जब दोनों ओर की सेनाएं एक दूसरे के सामने आ गईं तो युद्ध शुरू होने की घोषणा होते ही राजा ने युद्ध खत्म होने की घोषणा कर दी। राजा बंदी बना लिया गया। 

सिकंदर ने कहा कि युद्ध शुरू होते ही क्यों बंद कर दिया। तब राजा ने कहा कि आपकी सेना के सामने हमारी सेना नहीं टिक सकती थी, तो बेवजह सैनिकों का खून बहाने का कोई मतलब नहीं था। आप यह जो नगर में लूटपाट करवा रहे हैं, वह आपकी ही प्रजा है। अब वह मेरी प्रजा तो रही नहीं क्योंकि मैं पराजित हूं। यह सुनकर सिकंदर उस राजा से बहुत प्रभावित हुआ और जीता हुआ राज्य लौटा दिया।

हरियाणा में कांग्रेस संगठन खड़ा कर पाना कतई आसान नहीं

अशोक मिश्र

पिछले साल हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी कांग्रेस के नेताओं के रवैये में थोड़ा सा भी बदलाव नहीं आया है। चुनाव से पूर्व पूरे प्रदेश में यह बात कही जा रही थी कि इस बार का दस साल का सूखा खत्म करके अपनी सरकार बना सकती है। मीडिया में भी यह बात खुलेआम कही जाने लगी थी। सरकार बनने की थोड़ी सी संभावना दिखते ही कांग्रेसी नेताओं का जोश उबाल मारने लगा और प्रदेश कांग्रेस के तीनों गुट मुख्यमंत्री पद के दावेदार बनकर एक दूसरे की आलोचना करने लगे। खुलेआम मीडिया में एक दूसरे को चुनौती दी जाने लगी। नतीजा वही हुआ, माया मिली न राम।  

हार के बाद भी प्रदेश कांग्रेस के नेताओं में मिल जुलकर पार्टी को फिर से खड़ा करने की समझ नहीं पैदा हुई। हरियाणा कांग्रेस की स्थिति कितनी दयनीय है कि अभी तक विधानसभा में नेता विरोधी दल का चुनाव तक नहीं हो पाया है। अब मीडिया में यह कहा जाने लगा है कि प्रदेश कांग्रेस की आपसी उठापटक और गुटबाजी से नाराज राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का यहां के नेताओं पर विश्वास ही नहीं रह गया है। वह प्रदेश कांग्रेस के नेताओं की कोई बात ही नहीं सुन रहे हैं। कहा तो यह भी जाने लगा है कि कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश में 21 पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की है। 

यह पर्यवेक्षक राहुल गांधी के अत्यंत विश्वसनीय लोग बताए जा रहे हैं। प्रत्येक जिलों में नियुक्त किए गए पर्यवेक्षक प्रदेश के नेताओं से किसी तरह का फीडबैक लिए बिना सीधे कार्यकर्ताओं से मिलेंगे। वह उनकी राय जानेंगे, कौन सा नेता कहां तक लोगों में लोकप्रिय है, किसकी छवि पार्टी को नुकसान पहुंचा रही है, किसी गुटबाजी से संगठन को नुकसान पहुंच रहा है, जैसी बातों को पता लगाएंगे। कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेने के बाद सभी पर्यवेक्षक अपनी अपनी रिपोर्ट हाईकमान के सामने पेश करेंगे। 

इसके बाद ही विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष से लेकर ब्लाक और तहसील स्तर के अध्यक्षों की नियुक्ति की जाएगी। कांग्रेस पिछले ग्यारह साल से प्रदेश की सत्ता से दूर है। हालत तो यह है कि प्रदेश में कांग्रेस का संगठन तक छिन्न-भिन्न हो चुका है। कांग्रेस हाई कमान ने 2014 में फूलचंद मुलाना की जगह पर अशोक तंवर को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी थी। 

लेकिन तंवर प्रदेश कार्यकारिणी में एक भी नियुक्ति नहीं कर सके क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से उनकी बनती नहीं थी। सितंबर 2019 में कुमारी सैलजा को प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने काफी प्रयास किए, लेकिन बात बनी नहीं। अप्रैल 2022 से उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन मामला वही ठाक के तीन पात वाला रहा।

Tuesday, May 27, 2025

दोहान और कृष्णावती नदी को फिर से जिंदा करने का सराहनीय प्रयास

अशोक मिश्र

पूरी दुनिया पेयजल संकट के दौर से गुजर रही है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है। पेयजल के उपभोक्ता बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन पेयजल की मात्रा घटती जा रही है। अब तो लोग कहने लगे हैं कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा। यह बात किसी हद तक सही साबित हो रही है। भारत में ही कई प्रांत एक दूसरे से नदी जल के बंटवारे को लेकर आपस में लड़ रहे हैं। 

हरियाणा और पंजाब का सबसे नया उदाहरण है। रावी-ब्यास नदी जल बंटवारे को लेकर पंजाब, हरियाणा और राजस्थान आमने-सामने हैं। भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड पर दबाव डालकर पंजाब ने हरियाणा के हिस्से का चार हजार क्यूसेक पानी रोक लिया है। वह हरियाणा के हिस्से का साढ़े आठ हजार क्यूसेक पानी देने को तैयार नहीं है। ठीक इसी तरह कावेरी नदी के जल को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी आपस में काफी वर्षों से लड़ रहे हैं। इतना ही नहीं, कृष्णा नदी जल विवाद चार राज्यों महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के बीच काफी समय से सुलझ नहीं पाया है। 

नर्मदा नदी के जल को लेकर गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र आपस में लड़ रहे हैं। गोदावरी के पानी को लेकर महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच चल रहे विवाद को अब तक सुलझाया नहीं जा सका है। महादेई नदी के पानी के बंटवारे को लेकर तीन राज्य कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र आपस में लड़ रहे हैं। आंध्र प्रदेश और ओडीसा के बीच पिछले कई वर्षों से वंशधारा नदी जल को लेकर चल रहा विवाद आज तक नहीं सुलझ पाया है। इतना ही नहीं, तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर दो देश भारत और बांग्लादेश आपस में कई प्रकार के समझौते कर चुके हैं, लेकिन उसका मुकम्मल हल नहीं निकल पाया है। 

हरियाणा ने पंजाब के पानी रोक देने के बाद से दक्षिण हरियाणा को होने वाले जल संकट से बचाने के लिए लगभग विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई दो नदियों को पुनर्जीवित करने जा रहा है। जल संकट की समस्या का स्थायी निदान यही है कि जो नदियां सूख गई हैं या जिनकी जलधारा संकुचित हो गई है, उनको बचाने का हर संभव प्रयास किया जाए। लोग नदी क्षेत्र में घर बना लेते हैं जिसकी वजह से नदियों को स्वाभाविक प्रवाह नहीं मिल पाता है।

 हरियाणा सिंचाई विभाग ने 45 साल पहले बंद हो गई दो नदियों दोहान और कृष्णावती को जवाहर लाल नेहरू नहर से जोड़कर उसे पुनर्जीवित करने की ठान ली है। इसके लिए जेएलएन नहर से 1600 एमएम की पाइप डालकर दोनों नदियों को जोड़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।


प्रतीकात्मक चित्र

देनहार कोउ और है, देत रहत दिन-रैन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

रहीमदास का जन्म 1556 को लाहौर में हुआ था। वह अकबर के संरक्षक बैरम खां के पुत्र थे। वह एक योग्य सेनापति भी थे। उनकी काव्य प्रतिभा अतुलनीय थी। वह दोहा छंद रचने में माहिर थे। रहीमदास के दोहे आज भी काफी पढ़े और सुने-सुनाए जाते हैं। अकबर ने बैरम खां की पत्नी और अब्दुर्रहीम की मां से बैरम खां की मृत्यु के बाद निकाह कर लिया था। इसलिए रहीम दास अकबर के सौतेले पुत्र भी हुए। 

इनकी मां सुल्ताना ने दरबार की राजनीति से अलग रखने के लिए शुरू से ही इनकी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दिया और योग्य विद्वान बनाया। रहीम दास और अकबर के ही दूसरे दरबारी कवि गंग की आपस में बड़ी मित्रता था। कहते हैं कि रहीम दास ने कवि गंग के दो दोहों पर प्रसन्न होकर 36 लाख रुपये प्रदान किए थे। 

कवि गंग का नाम गंगाधर राव था और वह इटावा के इकनार गांव के रहने वाले थे। रहीम दास अपने दान के लिए काफी प्रसिद्ध थे। उनके पास जो भी आता था, वह खाली हाथ नहीं जाता था। एक दिन जब रहीम दास लोगों को दान कर रहे थे, तो कवि गंग ने देखा कि जब रहीमदास दान देते हैं, तो वह आंखें नीची कर लेते हैं। उन्होंने यह भी देखा कि कुछ लोग दोबारा आकर दान ले जाते हैं। 

जब दान देने का कार्यक्रम खत्म हुआ, तो कवि गंग ने कहा कि यह बताओ, तुम दान देते समय आंखें नीची क्यों कर लेते हो। कुछ लोग इसका फायदा उठाकर दोबारा दान ले जाते हैं। रहीम दास ने कहा कि देने वाला कोई और है, जो दिन-रात देता ही रहता है, लोग सोचते हैं कि मैं दे रहा हूं। बस यही सोचकर मेरी आंखें नीची हो जाती हैं। रहीमदास की बात सुनकर कवि गंग ने उन्हें गले से लगा लिया। कहा जाता है कि कवि गंग की स्पष्टवादिता से नाराज होकर जहांगीर ने उन्हें हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया था।

महात्मा बुद्ध का संदेश

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महात्मा बुद्ध अपने जीवन काल में कई बार श्रावस्ती आए थे। कहा तो यह भी जाता है कि वे चौबीस चौमासा उन्होंने श्रावस्ती के जेतवन में बिताथा। बाइस या तेईस बार तो वे लगातार आए थे। वे अपने शिष्यों और लोगों को अहिंसा, त्याग और प्रेम का संदेश देते थे। वे कहते थे कि जरूरत से ज्यादा का संग्रह करके रखना, एक तरह से दूसरों का हक मारना है। 

एक बार जब जेतवन में वह रुके हुए थे, तो श्रावस्ती का एक अमीर आदमी उनके पास आया और पूछने लगा कि भगवन! कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मन को शांति मिल सके। मैं काफी बेचैन रहता हूं। महात्मा बुद्ध जानते थे कि इस व्यक्ति को हमेशा धन संग्रह की चिंता रहती है। यह अपना कारोबार बढ़ाने और धन संग्रह के चक्कर में कई बार परिजनों से भी बातचीत नहीं करता है।

इसके पास परिवार के लिए समय ही नहीं होता है। महात्मा बुद्ध ने कहा कि बिना परिश्रम से कमाया गया धन  सभी पुण्यों को नष्ट कर देता है। ऐसा धन व्यक्ति को चैन से बैठने नहीं देता है। इस वजह से ऐसे व्यक्ति से देवता भी प्रसन्न नहीं होते हैं। यदि तुम सुख से जीवन बिताना चाहते हो, तो परिश्रम करो। पसीना बहाओ। बिना श्रम किए कमाए गए धन का उपयोग सद्कार्यों में करो।

जितनी जरूरत हो, उतना रखकर बाकी सब जनकल्याण में खर्च कर दो। ऐसा करने पर तुम्हारे मन को शांति अवश्य मिलेगी। बिना परिश्रम से कमाए गए धन को छोड़कर यदि फकीर भी बन जाओगे, तब भी चैन नहीं मिलेगा। आलस्य त्यागो और जन सेवा में जुट जाओ, तभी तुम्हारा कल्याण संभव है। यह सुनकर वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और लोककल्याण में जुटने का वचन दिया।

हरियाणा पंजाब जल विवाद को सुलझा लें तो बेहतर

अशोक मिश्र

सुप्रीमकोर्ट ने पंजाब और हरियाणा के बीच चल रहे जल विवाद के मामले में अपना फैसला फिलहाल सुरक्षित रख लिया है। यह फैसला किसके पक्ष में होगा, यह अभी कह पाना तो आसान नहीं है। लेकिन ऐसा विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला लेगा, वह हरियाणा के हितों को अवश्य ध्यान में रखेगा। पंजाब की भगवंत मान सरकार ने लगभग दो ढाई महीने पहले बिना किसी चेतावनी के साढ़े आठ हजार क़्यूसेक पानी की जगह साढ़े चार हजार क़्यूसेक पानी की ही सप्लाई देनी शुरू कर दी थी। हरियाणा के विरोध करने पर पंजाब सरकार ने कहा की हरियाणा अपने हिस्से का पानी पहले ही ले चुका है। 

जिस समय पंजाब में यह कदम उठाया था, उस समय भी प्रचंड गर्मी पड़ रही थी। नतीजा यह हुआ कि हरियाणा की 12 -13 जिलों में पानी को लेकर हाहाकार मच गया। टैंकर माफियाओं ने आपदा में अवसर समझ कर पानी के दाम बढ़ा दिए। चार-पांच सौ रुपये में बिकने वाले एक टैंकर पानी के दाम देखते ही देखते 1200 से 1800 के बीच पहुंच गया। 12 जिलों में एक चौथाई जलघर पूरी तरह से सूख गए। इन जिलों के 600 से अधिक जलघरों में से आधे मैं सिर्फ 50% पानी बचा था। देखते ही देखते हरियाणा और पंजाब के बीच का पानी विवाद राजनीतिक रूप लेने लगा। हरियाणा के सभी विपक्षी दल जहां अपनी सरकार के साथ खड़े हुए, वहीं पंजाब में भी यही सीन देखने को मिला। हरियाणा ने अपने हिस्से का पानी मांगने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 

केंद्र सरकार से गुहार लगाई, लेकिन मामला सुलझ नहीं पाया। भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड का रवैया निष्पक्ष रहा, इसे देखते हुए पंजाब सरकार ने बीबीएमबी कार्यालय पर पुलिस तैनात कर दिया। पंजाब सरकार ने जिस कार्यालय से वाटर डिस्ट्रीब्यूशन रेगुलेट होता था, उसे कार्यालय में ताला लगाकर चाबी अपने पास रख ली। भविष्य में ऐसी कोई स्थिति न पैदा हो, इसके लिए केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट ने सीआईएसएफ की एक यूनिट को बीबीएमबी कार्यालय पर नियुक्त करने का फैसला किया है। यह बात सही है कि अब हरियाणा को साढ़े आठ हजार क़्यूसेक पानी मिलने लगा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला निर्णायक होगा क्योंकि इस फैसले के बाद उम्मीद की जा रही है कि पंजाब सरकार किसी तरह का विवाद भविष्य में नहीं खड़ा करेगी। 

सुप्रीम कोर्ट का फैसला पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और राजस्थान  सरकार को मनाना ही पड़ेगा। इसके अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है।  वैसे पंजाब और हरियाणा के बीच पानी को लेकर विवाद पहले से ही चल रहा है। सतलुज यमुना लिंक नहर को लेकर सन 1960 से पैदा हुआ विवाद अब तक नहीं सुलझ पाया है।

 एसवाईएल मामले को लेकर सन 1960 से लेकर अब तक कई बार मामला सुप्रीम की कोर्ट की चौखट तक पहुंच चुका है। हरियाणा ने अपने हिस्से की नहर तक तैयार कर ली है, लेकिन पंजाब वल अपने हिस्से की नहर तैयार करने को राजी नहीं है। ऐसी स्थिति में दोनों प्रदेश की जनता के हित में यही है की दोनों राज्यों के कर्ताधर्ता आपस में बैठकर यह मामला सुलझा ले।

Wednesday, May 21, 2025

राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में मर्यादा को तार-तार कर रहे सियासी दल

अशोक मिश्र

संपत्ति को लेकर परिवार में विवाद होना आम बात है। देश के गांव से लेकर शहर तक संपत्ति विवाद के हजारों-लाखों मामले विभिन्न अदालतों में या तो विचाराधीन हैं या फिर उन पर सुनवाई हो रही है। कई बार तो संपत्ति के लिए भाई-भाई में झगड़े हो जाते हैं। कई बार तो यह झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि एक भाई दूसरे की हत्या तक कर देता है। संपत्ति का विवाद कई बार बहुत भयानक रुख अख्तियार कर लेता है। लेकिन हरियाणा में पिछले कुछ दिनों से अपनी पार्टी के पोस्टर में पिता की तस्वीर लगाने को लेकर दो भाई आपस में लड़ रहे हैं। जननायक जनता पार्टी और इडियन नेशनल लोकदल दोनों हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इनेलो के पूर्व प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला की तस्वीर अपनी पार्टी के कार्यक्रमों में लगाने की जिद पर अड़े हुए हैं। 

जजपा अध्यक्ष डॉ. अजय सिंह चौटाला और इनेलो अध्यक्ष  अभय सिंह चौटाला दोनों पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के पुत्र हैं यानी दोनों सगे भाई हैं। ओम प्रकाश चौटाला भी पूर्व उप प्रधानमंत्री और किसानों के सबसे बड़े नेता चौधरी देवी लाल के सबसे बड़े पुत्र थे। ओम प्रकाश चौटाला के छोटे भाई रंजीत सिंह चौटाला, प्रताप सिंह चौटाला और जगदीश सिंह चौटाला हैं। 

पिछले दिनों रोहतक में जजपा अध्यक्ष अभय सिंह चौटाला ने घोषणा की थी कि वे अपनी पार्टी के कार्यक्रमों में अपने स्वर्गीय पिता ओम प्रकाश चौटाला की तस्वीर लगाएंगे। बस, पिता की तस्वीर के उपयोग के अधिकार को लेकर दोनों भाइयों में विवाद पैदा हो गया। दोनों ओर से बयानबाजी शुरू हो गई और इस बयानबाजी ने भाई-भाई के बीच की मर्यादा को भी छिन्न भिन्न कर दिया। 

अभय चौटाला की घोषणा के बाद डॉ. अजय चौटाला ने कहा कि ये लोग इनेलो के गद्दार हैं। मेरे पैर में जूता है। इन्हें ओम प्रकाश चौटाला की तस्वीर लगाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। बात इतने पर ही नहीं खत्म हुई। अभय चौटाला इससे भी आगे बढ़ गए। उन्होंने कहा कि कुछ लोग भले ही आठ अंगुल का जूता पहनते हों, लेकिन मेरे पैर में तेरह नंबर का जूता है। यह संवाद दो सगे भाइयों के बीच का है। दोनों भाइयों ने न केवल अपने पिता द्वारा स्थापित सामाजिक मर्यादा को तार-तार किया, बल्कि राजनीतिक स्तर को काफी नीचे गिरा दिया। 

जब दो दलों के नेता एक दूसरे पर किसी प्रकार का आरोप लगाते हैं या तंज कसते हैं, तो थोड़ी बहुत राजनीतिक मर्यादा का पालन करते हैं। कोई भी बात ऐसी नहीं कहते हैं जिससे किसी का व्यक्तिगत अपमान हो। लेकिन पिछले एक दशक से देश का राजनीतिक माहौल काफी गंदा हो गया है। एक नेता दूसरे नेता को खुलेआम अपशब्द कह रहा है और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है।

दया का कोई मूल्य नहीं होता है


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

डॉ. हावर्ड एटवुड केली का जन्म 20 फरवरी 1858 को न्यूजर्सी में हुआ था। उन्होंने गर्भाशय से जुड़े रोगों में रेडियम के इस्तेमाल पर बहुत ज्यादा काम किया था। वह स्त्री रोग से जुड़े कैंसर और विकिरण चिकित्सा में माहिर थे। उन्हें अमेरिका में बहुत बड़ा डॉक्टर माना जाता था। उन्होंने 1882 में पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1885 में डॉक्टर आॅफ मेडिसिन की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने जॉन्स हॉपकिंस अस्पताल में एक प्रमुख सर्जन के रूप में काम किया और कई चिकित्सा समितियों में सदस्य थे। 

डॉ. केली के बचपन का एक किस्सा बहुत मशहूर है। वह जब किशोर थे, तो वह जीवन यापन और पढ़ाई का खर्च जुटाने के लिए दरवाजे दरवाजे जाकर सामान बेचा करते थे। स्कूल के बाद जो भी समय बचता था, वह सेल्समैनी करते थे। एक दिन क्या हुआ कि उनका कोई भी सामान नहीं बिका। उन्हें भूख भी लग आई थी, लेकिन वह करते भी तो क्या करते? कई घरों में सामान बेचने की कोशिश के बाद उन्होंने तय
किया कि अगला जो भी घर मिलेगा, उस घर से वह खाने को कुछ मांग लेंगे। 

अगले घर का दरवाजा खटखटाने पर एक लड़की बाहर आई, तो उन्होंने पीने के लिए एक गिलास पानी मांगा। लड़की समझ गई कि लड़का भूखा है। वह एक गिलास दूध लेकर आई। दूध पीने के बाद केली की जान में जान आई। उन्होंने लड़की से पूछा कि एक गिलास दूध के कितने पैसे हुए। लड़की ने जवाब दिया कि दया का कोई मूल्य नहीं हुआ करता है। उन्होंने धन्यवाद दिया और आगे बढ़ गए। 

इस बात को कई साल बीत गए। एक दिन लड़की बीमार पड़ी। उसे अस्पताल लाया गया। उसके इलाज के लिए डॉ. केली को बुलाया गया, जो उस समय सबसे महंगे डॉक्टर हुआ करते थे। इलाज के बाद उस लड़की ने पाया कि उसकी फीस जमा की जा चुकी है। 

Tuesday, May 20, 2025

ट्रंप के मुंह से जो निकल जाए, वही अमेरिका की विदेश नीति

अशोक मिश्र

अगर किसी देश की विदेश नीति या अर्थ नीति केवल एक ही व्यक्ति पर निर्भर हो, तो वही होता है, जो इन दिनों अमेरिका में हो रहा है। किसने सोचा था कि सन 2003 से 2011 तक अमेरिकी सेना की कैद में रहने वाले पूर्व आतंकी अहमद अल-शरा को ट्रंप एक दिन अच्छा आदमी बताकर उसकी तारीफ करेंगे। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने न केवल ऐसा किया, बल्कि सीरिया पर लगे सभी प्रतिबंध हटा दिए। पिछले साल दिसंबर में ट्रंप ने अहमद अल-शरा पर लगे सारे प्रतिबंध हटा लिए थे। अमेरिका ने ही अलकायदा के खूंखार आतंकी अबू मोहम्मद अल-जुलानी यानी अहमद अल-शरा पर दस लाख डॉलर यानी 84 करोड़ रुपये का ईनाम रखा था।
पिछले साल दिसंबर में सीरिया में विद्रोह के बाद जब बसर अल असद का पतन हुआ, तो अलकायदा की ही सीरिया शाखा जबात अल-नुस्र के कर्ताधर्ता जुलानी ने एक नया संगठन हयात तहरीर अल-शाम बनाया और सीरिया का भाग्य विधाता बन बैठा। इसने अपना नाम अबू मोहम्मद अल-जुलानी से बदलकर अहमद अल-शरा रख लिया और सीरिया का राष्ट्रपति बन गया। कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि पूरी दुनिया में सबसे अमीर और 27 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले देश के राष्ट्रपति ट्रंप एक अमेरिकी नागरिक को छुड़ाने के लिए हमास से बात करेंगे। लेकिन ट्रंप ने किया।
जब किसी देश की विदेश नीति या अर्थ नीति एक ही आदमी के हाथ में होती है, तो ऐसा ही होता है। वह किसी दूसरे देश के लिए कुछ भी बोल दे, वही विदेश नीति हो जाती है। जो कुछ भी आयात-निर्यात के बारे में तय कर दे, वही अर्थनीति हो जाती है। एकाधिकारवादी मानसिकता वाले ट्रंप ने टैरिफ के नाम पर बिना सोचे समझे चीन पर 145 प्रतिशत टैरिफ लगाया। जब उनके देश की अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी, जीडीपी में जनवरी से मार्च की पहली तिमाही में जीडीपी में 0.7 प्रतिशत की कमी आई, तो चीन से समझौता करने का रास्ता तलाशने लगे। अंतत: खुद ही यह कहते हुए चीन का टैरिफ 30 प्रतिशत पर ले आए कि चीन की अर्थव्यवस्था काफी नाजुक दौर से गुजर रही थी। चीन ने भी राहत की सांस लेते हुए अमेरिका पर दस प्रतिशत टैरिफ लगाकर संतोष कर लिया।
अपने डंडे से देश को हांकने वाला राष्ट्राध्यक्ष अकसर मनबढ़ हो जाता है। ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’वाली मानसिकता से पीड़ित ट्रंप हर मामले में टांग अड़ाते घूमते रहते हैं। कुछ दिन पहले ही उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को एक तरह से धमकाते हुए कहा कि यूक्रेन को वार्ता के लिए तुरंत सहमत हो जाना चाहिए। मुझे तो संदेह हो रहा है कि यूक्रेन रूस के साथ कोई समझौता करेगा या नहीं। दो दिन भी नहीं बीते थे कि ट्रंप का एक बयान आया कि मेरे और पुतिन से मिलकर बातचीत हुए बिना समझौता हो ही नहीं सकता है। ट्रंप कब और क्या कह बैठेंगे, कोई नहीं जानता है। अब भारत और पाकिस्तान के बीच सात से दस मई के बीच चले संघर्ष मामले में सीज फायर की ही बात लीजिए।
दस मई की शाम पांच बजे के आसपास दुनिया भर के टीवी चैनलों पर खबर फ्लैश होने लगी कि ट्रंप की मध्यस्थता में भारत-पाक सीजफायर पर सहमत हो गए। भारत सहित दुनियाभर के लोग चौंक पड़े। यह कब हुआ और कैसे हुआ? फिर पाकिस्तान ने पुष्टि की, ट्रंप को धन्यवाद दिया, लेकिन भारत ने ट्रंप की मध्यस्थता की बात को कड़ाई से खारिज कर दिया। दो-तीन दिन बाद ट्रंप ने फिर बयान दिया कि मैंने मध्यस्थता नहीं की, केवल मदद की।
इसके कुछ दिन बाद फिर ट्रंप अपने बयान पर पलटे और कहा कि मैंने मध्यस्थता की, लेकिन श्रेय नहीं मिला। इसी बीच सीजफायर न करने पर ट्रेड न करने की धमकी वाली बात भी खूब चर्चा का विषय रही। पीओके वाले मामले में मध्यस्थता की बात करके उन्होंने अपना ही मजाक उड़वाया। भारत कभी तीसरे पक्ष को इस मामले में स्वीकार ही नहीं कर सकता है।

स्वामी विवेकानंद ने नहीं दिया विरोधियों को जवाब

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को बंगाल के कायस्थ परिवार में हुआ था। बचपन में इनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। बाद में जब नरेंद्र नाथ रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए, तो उन्होंने संन्यास ग्रहण किया और उनको नाम मिला विवेकानंद। उन्होंने ही रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। तीस वर्ष की अवस्था में स्वामी विवेकानंद को 1893 में अमेरिका के शहर शिकागो में धर्म संसद में शामिल होने का मौका मिला। 

उन्होंने अपने विचारों और हिंदू धर्म की जो व्याख्या की, उससे अमेरिका और यूरोप के लोग काफी प्रभावित हुए। अमेरिका में ही कई राज्यों में उन्हें हिंदू धर्म पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया। अन्य कई देशों में भी वह बुलाए गए। अमेरिका और यूरोप के कई देशों कीं। स्वामी विवेकानंद 1897 में जब भारत लौटे, तो उनका भव्य स्वागत किया गया। लोगों में स्वामी विवेकानंद को लेकर काफी उत्साह था। 

वह उनकी बात सुनने को लालायित रहते थे। उनकी ख्याति और लोगों के बीच उनकी प्रतिष्ठा बढ़ने से कुछ लोगों को परेशानी होने लगी। उन लोगों ने स्वामी जी के बारे में दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया। कहते हैं कि कुछ लोगों ने स्वामी विवेकानंद को शूद्र कहकर अपमानित करने का प्रयास किया। उन्होंने यह भी कहा कि एक शूद्र कैसे संन्यासी हो सकता है, वह दूसरों को उपदेश कैसे दे सकता है? 

स्वामी विवेकानंद को भी यह बात पता चली। लोगों को इतने निचले स्तर तक गिरते देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ। इसके बावजूद उन्होंने दुष्प्रचार करने वालों के खिलाफ कुछ नहीं कहा। लोगों से बस यही कहा कि हमें जातीयता में उलझना नहीं चाहिए। दुनिया में सभी लोग समान हैं। कोई भी जाति कमतर नहीं होती है। लोगों के कार्य कमतर होते हैं।

प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करेगी सरकार

अशोक मिश्र

हरियाणा में प्राकृतिक खेती शुरू करने का प्रयास काफी पहले से ही किया जा रहा है। अब पीएम प्राकृतिक खेती मिशन को बढ़ावा देने का प्रयास करना राज्य सरकार ने शुरू कर दिया है। प्राचीनकाल में जब खेती का चलन शुरू हुआ था, तब प्राकृतिक खेती ही की जाती थी। दुनिया भर में खेती की शुरुआत प्राकृतिक रूप में ही हुई थी। पशुओं के चारे के लिए शुरू हुई खेती के लिए जमीन पर बीजों का छिड़काव कर दिया जाता था। बीज उगने के बाद स्वाभाविक रूप से बढ़ते थे। बाद में लोगों ने खेती को  जब मुख्य पेशा बना लिया, तब इंसान ने खेती से उत्पादित अनाज का खुद उपयोग करना शुरू कर दिया। 

खेत की जुताई के बाद फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए खरपतवार को सड़ा-गलाकर बनाई गई खाद और पशुओं का गोबर का उपयोग किया जाने लगा। खरपतवार और गोबर का उपयोग सदियों से होता आ रहा है, लेकिन जब बीसवीं सदी में रासायनिक खादों  का उत्पादन शुरू हुआ, तो प्राकृतिक खेती का रकबा कम होता गया। नतीजा यह हुआ कि रासायनिक खाद का उपयोग करके अधिक से अधिक अन्न उत्पादन की लालसा किसानों में पैदा होने लगी। 

रासायनिक  खादों के अत्यधिक उपयोग ने अन्न को विषैला बनाना शुरू कर दिया। खादों में उपयोग किए गए रसायन उत्पादित अनाजों में पाए जाने लगे। इसकी वजह से लोगों को कई किस्म की बीमारियां होने लगीं। सरकार और कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को रासायनिक खादों से होने वाले नुकसान के बारे में बताया, लेकिन किसानों का अधिक अन्न उत्पादन का लालच उन पर हावी रहा। हरियाणा की पूर्ववर्ती सरकारों और वर्तमान सैनी सरकार के प्रयास से अब राज्य में प्राकृतिक खेती का रकबा काफी हद तक बढ़ने लगा है। नायब सैनी सरकार ने अब प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए मिशन मोड में काम करने का फैसला किया है। 

कैथल में 54  एकड़ पंचायती जमीन पर प्राकृतिक खेती की जाएगी। इसके लिए सरकार ने जमीन भी चिन्हित कर ली है। पंचायती जमीन पर प्राकृतिक खेती करके सरकार किसानों को यह संदेश देना चाहती है कि यदि वह उपजाऊ जमीन पर प्राकृतिक खेती करते हैं, तो इससे न केवल उनकी आय बढ़ेगी, बल्कि प्राकृतिक खेती से उपजे अन्न का उपयोग करने वाले कई तरह की बीमारियों से भी मुक्त रहेंगे। प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण देने के लिए आगामी पांच जून को एक कार्यक्रम रखा गया है। 

सरकार ने तय किया है कि अगले दो वर्षों में प्राकृतिक खेती मिशन को राज्य के इच्छुक ग्राम पंचायतों के 15 हजार समूहों में लागू किया जाएगा। इसके माध्यम से प्रदेश के एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के लाभ से परिचय कराया जाएगा।

Monday, May 19, 2025

मेहनत करने से क्यों कतराऊं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

प्राचीनकाल में जब हमारा देश छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था, तो उन दिनों राजा-महाराजा अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखते थे। प्रजा को राजा अपने पुत्र के समान मानता था और उसी हर जरूरतों को पूरा किया करता था। वह टैक्स भी वसूलता था, लेकिन वह टैक्स इतना कम होता था कि किसी को इससे कोई परेशानी नहीं होती थी। 

कुछ राजा-महाराजा अपने राज्य की प्रजा को सुखी बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते थे। टैक्स के रूप में जमा हुए धन को भी वह अपने ऊपर बहुत कम खर्च किया करते थे। एक राज्य का राजा आए दिन वेष बदलकर प्रजा का हालचाल जाना करता था। एक बार उसने सोचा कि सीमावर्ती इलाकों में गांव वालों को क्या समस्याएं होती हैं, इसके बारे में पता किया जाए। 

अपने एक सहायक को लेकर वह निकल पड़ा। सीमावर्ती गांवों की समस्याओं को जानकर उसने सहायक को तत्काल उन्हें दूर करने का आदेश दिया और फिर आगे बढ़ गया। एक जगह उसने देखा कि एक बुजुर्ग लकड़हारा पेड़ काटने में जुटा हुआ है। उसका शरीर पसीने से भीगा हुआ था। राजा को उस पर दया आ गई। वह लकड़हारे की मदद करने की नीयत से उसके पास पहुंचा। 

अचानक उसने देखा कि जहां लकड़हारा लकड़ी काट रहा है, उसके पास ही कई हीरे पत्थर में दबे  हुए हैं। राजा ने लकड़हारे से कहा कि बाबा! आपके पास ही इतने हीरे पड़े हैं कि आप एक भी हीरा बेच दें, तो आपको कोई काम करने की जरूरत ही नहीं रहेगी। लकड़हारे ने बिना रुके राजा से कहा कि उसे तो मैं कई साल से देख रहा हूं, लेकिन जब अभी  मेरे हाथ-पैर काम कर रहे हैं तो भला मेहनत करने से क्यों कतराऊं। यह सुनकर राजा ने लकड़हारे की कर्मशीलता को प्रणाम किया और आगे बढ़ गया।

युवाओं की जल्दी अमीर होने की लालसा बना रही राष्ट्रद्रोही

अशोक मिश्र

हरियाणा और पंजाब में अब तक छह लोग राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाए गए हैं। पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया है। आपरेशन सिंदूर के बाद सुरक्षा एजेंसियां काफी सतर्क हो गई हैं। वैसे तो सुरक्षा एजेंसियां हमेश सतर्क रहती है, लेकिन जब देश पर किसी किस्म का संकट हो, युद्धकाल हो तो सुरक्षा एजेंसियां कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में थोड़ी सी भी चूक पूरे देश के लिए घातक हो सकती हैं। 

पहलगाम में ही सुरक्षा एजेंसियों की थोड़ी सी चूक 26 निर्दोष नागरिकों पर भारी पड़ गई। उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस चूक से सुरक्षा एजेंसियों ने सबक सीखा और उसी का नतीजा है कि देश भर में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त लोगों को गिरफ्तार करने में सुरक्षा एजेंसियों को कामयाबी मिली है। हरियाणा और पंजाब में अब तक छह लोग पाकिस्तान को खुफिया जानकारी देने के आरोप में गिरफ्तार किए जा चुके हैं। हिसार से ट्रैवल ब्लागर ज्योति रानी उर्फज्योति मलहोत्रा को गिरफ्तार किया गया है। 

इस पर देश की संवेदनशील और सेना से जुड़े गोपनीय जानकारियां पाकिस्तान को देने का आरोप है। ज्योति मलहोत्रा अब तक तीन बार पाकिस्तान जा चुकी है। दो बार तो वह सिख जत्थेबंदियों के साथ करतारपुर साहिब गई थी और एक बार वह अकेली गई थी। तीन बार वह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों और आतंकी संगठनों में काम करने वाले लोगों से मिली थी। ज्योति मलहोत्रा पाकिस्तान के अलावा दुबई, थाईलैंड, इंडोनेशिया, भूटान, चीन और बांग्लादेश की भी यात्रा कर चुकी है। 

अगर राष्ट्रविरोधी कार्यों में लिप्त पाए गए अपराधियों की पारिवारिक पृष्ठभूमि का पता लगाया जाए, तो इनमें से ज्यादातर लोग निम्न आय वर्ग या मध्यम आयवर्ग के लोग ही मिलेंगे। गरीबी में पले बढ़े युवाओं की खूब धन कमाने, ऐशोआराम की जिंदगी गुजारने की इच्छा ही इन्हें ले डूबती है। अगर ज्योति मलहोत्रा की ही बात करें, तो 58 वर्ग गज के मकान में रहने वाली ज्योति को बचपन से ही खूब धन कमाने की इच्छा थी। पाक खुफिया एजेंसी ने उसको पैसे का लालच दिया, तो वह राष्ट्रविरोधी काम करने के लिए भी तैयार हो गई। 

युवाओं में जल्दी से जल्दी अमीर हो जाने और ज्यादा से ज्यादा बैंक बैलेंस जमा कर लेने की प्रवृत्ति का ही फायदा दुश्मन देश के एजेंट उठा रहे हैं। वह युवाओं की इसी मानसिकता का फायदा उठाकर उन्हें राष्ट्रविरोधी कार्य करने को प्रेरित कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें भले ही पैसे खर्च करने पड़ें, हनी ट्रैप में फंसाना पड़े या कोई दूसरा रास्ता अख्तियार करना पड़े, दुश्मन देश सब कुछ करने को तैयार है। बेरोजगार और बेसब्र युवा दुश्मनों की चंगुल में फंसकर राष्ट्र विरोधी बन रहे हैं।

Sunday, May 18, 2025

कपड़ों से विद्वत्ता का पता नहीं चलता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

ग्यारहवीं शताब्दी में पैदा हुए राजा भोज परमार वंश के शासक थे। उनकी राजधारी धार नगरी थी। वह स्वयं विद्वान थे और विद्वानों का बहुत आदर करते थे। जब राजा भोज ने शासन संभाला था, तो उन्होंने अपने आसपास के राजाओं को पराजित करके राज्य का काफी विस्तार कर लिया था। 

लेकिन अंतत: उन्हें चंदेल सम्राट विद्याधर वर्मन से पराजित होना पड़ा और उनकी अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। कहते हैं कि एक बार राजा भोज ने अपनी राजधानी में एक समारोह आयोजित किया। इसमें उन्होंने अपने राज्य सहित अन्य राज्यों के विद्वानों को आमंत्रित किया। राजा भोज साल में एकाध बार ऐसे समारोह आयोजित किया करते थे। जब समारोह में विद्वानों का आना शुरू हुआ, तो राजा भोज ने सबका यथोचित आदर सत्कार किया। 

उन्होंने देखा कि एक विद्वान काफी बढ़िया वस्त्र पहनकर आया हुआ है, तो उन्होंने उस विद्वान को अपने सिंहासन के नजदीक बैठाया। समारोह सभी विद्वानों ने अपने विचार रखे। समारोह में साधारण कपड़ों में एक विद्वान ने अपने विचार रखना शुरू किया, तो सब लोग मंत्रमुग्ध होकर उसकी बात सुनने लगे। राजा काफी देर तक उसकी बात को सुनकर गुनते रहे। जब उस विद्वान ने अपनी बात समाप्त की तो राजदरबार तालियों से गूंज उठा। जब वह विद्वान जाने लगा, तो राजा भोज उसे द्वार तक छोड़ने आए। 

इस पर उनके एक दरबारी ने कहा कि जब अच्छे कपड़े पहने विद्वान आया था, तो आपने उसे अपने नजदीक बैठाया, लेकिन इसे आप द्वार तक छोड़ने आए, ऐसा क्यों? राजा ने कहा कि उसके अच्छे कपड़े देखकर उसके विद्वान होने का भ्रम हुआ था, लेकिन इस विद्वान ने जैसे ही पहला शब्द कहा, पता लग गया कि यह व्यक्ति सचमुच विद्वान है। कपड़ों से किसी की पहचान नहीं की जा सकती है।

हरियाणा के 340 गांवों में बेटियों की घटती संख्या चिंताजनक

अशोक मिश्र

लिंगानुपात सुधारने का हर संभव प्रयास हरियाणा की सैनी सरकार कर रही है। सदियों से कुड़ीमार प्रदेश का कलंक झेल रहे हरियाणा ने अब अपनी पुरानी छवि को हर हालत में बदलने का संकल्प ले लिया है। बेटियों के प्रति अब उनकी मानसिकता में बदलाव भी आने लगा है। लेकिन अभी थोड़े और प्रयास की जरूरत है। पहले तो उन हालात को समझने की जरूरत है कि क्यों हरियाणा या पंजाब में लड़कियों को कोख में ही मार देने की घृणित परंपरा की शुरुआत हुई होगी। 

भारत में थल मार्ग से प्रवेश का रास्ता एक मात्र पंजाब ही था। वर्तमान पाकिस्तान जो कभी भारत का हिस्सा था, उसी रास्ते से सदियों तक आक्रांता भारत में प्रवेश करते रहे हैं। सदियों तक बार-बार विदेशी हमले झेलना उनकी मजबूरी थी। विदेशी विजय प्राप्त करने पर सबसे ज्यादा यहां की महिलाओं को ही प्रताड़ित करते थे। इससे यहां के लोगों को अपमानित होना पड़ता था। बार-बार के इस अपमान से बचने के लिए लोगों ने बेटियों को कोख में या जन्म लेने के बाद मारना शुरू कर दिया। 

धीरे-धीरे लोगों की मानसिकता यही बन गई। लेकिन अब तो न विदेशी आक्रांता आने से रहे, न ही बेटियां लड़कों से किसी मायने में कम हैं, ऐसी स्थिति में कन्याभ्रूण हत्या किसी महापाप से कम नहीं है। प्रदेश में लिंगानुपात गड़बड़ाने का सबसे ज्यादा प्रभाव समाज पर पड़ता है। समाज पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को लेकर ही सैनी सरकार काफी चिंतित है। यही वजह है कि उसने उन गांवों पर विशेष निगरानी रखने का आदेश दिया है जिस गांव का लिंगानुपात सात सौ से कम है। 

यह भी एक अध्ययन में पता चला है कि राज्य के जो जिले राजस्थान, पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सीमाओं के पास स्थिति हैं, उन जिलों में लिंगानुपात सबसे कम है। इन जिलों के लोग पड़ोसी राज्यों में अवैध तरीके से चलाए जा रहे अस्पतालों और चिकित्सा केंद्रों पर जाकर कन्याभ्रूण गिरवा देते हैं। राज्य में भी कुछ अस्पताल चोरी छिपे यह काम करते हैं। राज्य में ऐसे 340 गांव ऐसे हैं जो दूसरे राज्य की सीमा पर बसे हुए हैं और इन गांवों का लिंगानुपात सात सौ से कम है। इन गांवों की विशेष निगरानी की जा रही है। हालांकि यह भी सही है कि सैनी सरकार इस मामले में काफी सख्ती बरत रही है। 

उसने अपने पड़ोसी राज्यों से तालमेल करके उनके यहां और अपने यहां छापेमारी तेज कर दी है। हरियाणा से सूचना मिलने पर पड़ोसी राज्य भी सख्ती बरत रहे हैं। उसने संबंधित विभाग के अधिकारियों को सख्त आदेश दे रखा है कि उनके इलाके में अवैध गर्भपात होने का मामला पकड़ा गया, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

Saturday, May 17, 2025

शहीद हो गए, लेकिन माफी नहीं मांगी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

देश के स्वाधीनता संग्राम में अगणित वीरों ने अपनी शहादत दी। वैसे तो ईष्ट इंडिया कंपनी और बाद में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत तो बहुत पहले शुरू हो गई थी और लोग अपनी शहादत भी दे रहे थे। इन शहीदों में कुछ का नाम हुआ और बाकी गुमनाम ही रहे। दुनिया के सबसे लंबे चले स्वाधीनता संग्राम में किसी देश के लिए सबको याद रख पाना भी संभव नहीं है। 

लेकिन 14 अगस्त सन 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज हरिद्वार के छात्र जगदीश प्रसाद वत्स ने सुभाष घाट डाकघर और रेलवे स्टेशन पर अलग-अलग तिरंगा फहराया था। उस समय वत्स की आयु कुल सत्रह साल थी। सन 42 में महात्मा गांधी ने नारा दिया था-अंग्रेजों भारत छोड़ो। 

वह सत्य और अहिंसा से ब्रिटिश हुकूमत को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर देना चाहते थे। ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज के छात्रावास में छात्रों ने 14 अगस्त को कुछ जगहों पर तिरंगा झंडा फहराने की योजना बनाई। इस योजना को सफल करने का बीड़ा उठाया उत्तर प्रदेश के अकबरपुर जिले के खजूरी गांव में पैदा हुए जगदीश प्रसाद वत्स ने। उन्होंने अंग्रेजों की छावनी के पास एक झंडा फहराया। इसे देखकर सब इंस्पेक्टर प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव ने वत्स पर गोली चलाई। गोली ने बांह को चीर दिया। 

उन्होंने झट से बांह पर कपड़ा बांधा और दौड़कर सुभाष घाट पहुंचे, जहां प्रेम प्रकाश ने एक और गोली पैर में मार दी। इस पर भी वत्स ने हार नहीं मानी। हरिद्वार रेलवे स्टेशन पहुंचकर झंडा फहराया। यहां उनके सीने पर गोली लगी और वे मूर्छित हो गए। मूर्छा कम होने पर अंग्रेजों ने माफी मांगने को कहा, तो उन्होंने इनकार कर दिया। इसके बाद वह शहादत को प्राप्त हो गए।

Friday, May 16, 2025

अपने घर का मैं बादशाह हो जाता हूं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

मुंशी प्रेमचंद आज भी हिंदी और उर्दू में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले साहित्यकार हैं। वैसे प्रेमचंद का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 में वाराणसी के लमही गांव में हुआ था। प्रेमचंद का जीवन हमेशा विसंगतियों से घिरा रहा। जब वह सात साल के थे, तो उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। 

उनके पिता ने दूसरा विवाह कर लिया था। उनकी सौतेली मां उनके साथ ठीक से व्यवहार नहीं करती थी। पंद्रह साल की उम्र में ही उनका विवाह हो गया था। इसके एक साल बाद प्रेमचंद के पिता की मृत्यु हो गई। सौतेली मां का व्यवहार उनके प्रति आजीवन कड़वा ही रहा। प्रेमचंद ने हिंदी और उर्दू में जो कुछ भी लिखा, वह आज साहित्य की बहुत बड़ी धरोहर है। उनके जीवन का एक प्रसंग काफी प्रसिद्ध है। 

बात उन दिनों की है, जब मुंशी प्रेमचंद शिक्षा विभाग के डेप्युटी इंस्पेक्टर थे। एक दिन इंस्पेक्टर स्कूल का निरीक्षण करने आया। उन्होंने इंस्पेक्टर को स्कूल दिखा दिया। दूसरे दिन वह स्कूल नहीं गए। अपने घर पर ही अखबार पढ़ रहे थे। जब वह कुर्सी पर बैठकर अखबार पढ़ रहे थे तो सामने से इंस्पेक्टर की गाड़ी निकली। इंस्पेक्टर को उम्मीद थी कि प्रेमचंद उसको सलाम करेंगे। लेकिन प्रेमचंद कुर्सी से हिले तक नहीं। 

यह बात इंस्पेक्टर को नागवार गुजरी। उसने अपने अर्दली को मुंशी प्रेमचंद को बुलाने भेजा। जब मुंशी प्रेमचंद गए तो इंस्पेक्टर ने कहा की कि तुम्हारे दरवाजे से तुम्हारा अफसर निकल जाता है तो तुम सलाम तक नहीं करते हो। यह बात दिखाती है कि तुम बहुत घमंडी हो। इस पर मुंशी प्रेमचंद ने जवाब दिया, जब मैं स्कूल में रहता हूं, तब तक ही नौकर रहता हूं। बाद में मैं अपने घर का बादशाह बन जाता हूं। यह सुनकर इंस्पेक्टर मुंह लटकाए आगे बढ़ गया।

Thursday, May 15, 2025

पिता जी! आपके लिए अमरफल लाया हूं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे देश में ही नहीं, दुनिया के हर कोने में किसी भूखे को रोटी खिलाना और प्यासे को पानी पिलाना, बहुत ही सराहनीय कार्य माना गया है। सदियों से लोग गर्मी के दिनों में प्याऊ चलाते थे, ताकि राहगीरों को प्यास लगने पर ठंडा पानी मिल सके। कुछ लोग तो ठंडा पानी रखने के साथ साथ थोड़ा सा गुड़ या दूसरी खाने की चीज भी देते थे। इस संबंध में एक कहानी कही जाती है। किसी नगर में एक व्यापारी रहता था। 

उसने काफी दौलत कमाई थी। एक दिन व्यापारी ने अपने बेटे को बुलाकर कहा कि यह पैसे ले लो और बाजार चले जाओ। बाजार से कुछ फल ले आओ। हां, फल किसी अच्छी से और ताजे ही लेना। लड़के ने अपने पिता की बात मानते हुए पैसे लिए और बाजार चला गया। 

काफी देर बीतने के बाद भी जब बेटा नहीं लौटा तो पिता को थोड़ी चिंता हुई। इसी बीच बेटा लौट आया। व्यापारी ने देखा कि उसका बेटा फल नहीं लाया था। वह खाली हाथ था। उसने अपने बेटे से पूछा कि तुम फल नहीं लाए। बेटे ने जवाब दिया कि पिता जी, मैं आपके लिए अमरफल लेकर आया हूं। व्यापारी पिता ने चौंकते हुए कहा कि क्या कह रहे हो? अमरफल जैसा कुछ होता भी है? 

बेटे ने जवाब देते हुए कहा कि पिता जी, जब मैं बाजार पहुंचा, तो फल की सभी दुकानें देखी। तरह-तरह के फल बाजार में बिक रहे थे। मैं सोचने लगा कि क्या लूं? तभी मेरी नजर एक बुजुर्ग पर पड़ी। वह भूख से तड़प रहा था। मैंने फल के पैसे से खाना खरीदा और उस बुजुर्ग को खिला दिया। 

खाना खाने के बाद उस बुजुर्ग ने जिस तरह सच्चे मन से मुझे आशीर्वाद दिया, वह मुझे किसी अमरफल से कम नहीं लगा। अब आप बताइए, मैंने कोई गलत किया। पिता ने गदगद होकर कहा, बेटा, तुमने बहुत अच्छा काम किया।



Wednesday, May 14, 2025

पादप प्रजातियों का वर्गीकरण करने वाले लीनियस

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

पेड़ पौधों की प्रजातियों का वर्गीकरण करने वाले कार्ल लीनियस का जन्म दक्षिण स्वीडन में 23 मई 1707 को हुआ था। वह एक वनस्पति शास्त्री, चिकित्सक और जीवविज्ञानी थे। बचपन में वह काफी आर्थिक तंगी के दौर से गुजरे। उनके पास शिक्षा हासिल करने की कोई उचित व्यवस्था भी नहीं थी। 

उस पर वह स्वीडन के एक जाने माने डॉक्टर की बेटी मेरियम से प्यार कर बैठे और उससे विवाह करना चाहते थे। डॉक्टर के पास उन्होंने विवाह का प्रस्ताव भी भेजा, लेकिन मेरियम ने विवाह करने से इनकार कर दिया। इसके बाद लीनियस ने अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया। उनकी रुचि पादपों में थी। वह पादपों के बारे में अध्ययन करने लगे। 

एक दिन उनकी मुलाकात थर्मामीटर का आविष्कार करने वाले एंडर्स सेल्सियस के भतीजे ओलेफ सेल्सियस से हुई। ओलेफ खुद भी एक वैज्ञानिक थे। उन्होंने लीनियस की हालत और प्रतिभा को देखते हुए उन्हें रहने खाने और आगे की पढ़ाई पूरी करने की सुविधा प्रदान करने का आश्वासन दिया, तो वह उनके प्रस्ताव को ठुकरा नहीं सके। लीनियस ने उपसाला विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई पूरी की और धीरे-धीरे उनकी ख्याति बढ़ने लगी। उनकी ख्याति एक वनस्पति विज्ञानी के रूप में होने लगी। 

बाद में उन्हें उपसाला विश्वविद्यालय में ही प्रोफेसर की नौकरी मिल गई। दुनियाभर में ख्याति मिलने के बाद डॉक्टर ने खुद आगे बढ़कर अपनी बेटी मेरियम का विवाह लीनियस से करवा दिया। 10 जनवरी 1778 को जब लीनियस की मृत्यु हुई, उस समय यूरोप के वह सबसे ख्याति प्राप्त वनस्पतिशास्त्री थे। मरणोपरांत स्वीडन सरकार ने एक दस क्रोनर का नोट निकाल जिसके एक तरफ उनका चित्र छपा हुआ था और दूसरी तरफ उपसाला विश्वविद्यालय का दृश्य था।

Tuesday, May 13, 2025

नर्सिंग आंदोलन की जन्मदात्री फ्लोरेंस नाइटिंगेल

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

फ्लोरेंस नाइटिंगेल यही नाम है उस महिला का जिसे आधुनिक नर्सिंग आंदोलन की जन्मदात्री माना जाता है। दया, ममता और सेवा का प्रतिरूप मानी जाने वाली इस महिला को ‘द लेडी विद द लैंप’ कहा जाता है। 12 मई 1820 में ब्रिटेन के उच्च परिवार में जन्मी नाइटिंगेल ने जब सेवा का व्रत लिया, तो उनके परिवार वालों ने काफी विरोध किया। इनकी मां फ्रांसिस नाइटिंगेल को चिकित्सा का अच्छा खासा ज्ञान था। 

यही वजह है कि इनके घर में मरीजों की भीड़ लगी रहती थी। नर्सिंग सेवा के क्षेत्र में फ्लोरेंस का सबसे बड़ा योगदान क्रीमिया युद्ध के दौरान माना गया। क्रीमिया युद्ध से पहले घायल सैनिकों की देखभाल और सुरक्षा पर कम ही ध्यान दिया जाता था। लेकिन जब क्रीमिया युद्ध में फ्लोरेंस ने सेवा का काम संभाला तो वह सभी घायल सैनिकों की चिकित्सा करतीं, उनकी मलहम पट्टी करतीं, उनकी जरूरतों का ध्यान रखती थीं। 

वह रात्रि में भी एक लैंप लेकर घायल सैनिकों की सेवा सुश्रुषा करती रहती थीं। इनकी जीवन भर की सेवाओं को सम्मान करते हुए 1869 में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने रायल रेडक्रास से सम्मानित किया था। लेकिन फ्लोरेंस के जीवन का पहला मरीज एक कुत्ता था। बचपन में फ्लोेरेंस को काली खांसी और खसरा हो गया था। तो उन्हें बच्चों के साथ खेलने की इजाजत नहीं थी। 

वह जंगल जा सकती थीं। रोज वह जंगल जाती, तो रोजर नामक गड़रिये को पशु चराती देखतीं। एक दिन उन्होंने पाया कि रोजर का कुत्ता कैप उसके साथ नहीं है। उन्होंने पता किया, तो मालुम हुआ कि कुछ लड़कों ने पत्थर मारकर कैप को घायल कर दिया है। यह सुनकर वह कैप को घर लाईं और उसकी मलहम पट्टी की। कुछ दिन बाद वह ठीक हो गया। कैप को ठीक देखकर उन्हें काफी सुकून मिला।

Monday, May 12, 2025

दृढ़ इच्छा शक्ति से सब कुछ किया जा सकता है

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

विल्मा ग्लोडियन रुडोल्फ का जन्म 21 जून 1940 को अमेरिका के टेनेसी में हुआ था। जब विल्मा चार साल की थी, तो उसको निमोनिया और काला ज्वर हो गया था जिसकी वजह से उसके पैर को लकवा मार गया। उसकी मां ने कई डॉक्टरों को दिखाया। डॉक्टरों ने कहा कि अब विल्मा कभी नहीं चल सकेगी। विल्मा का परिवार गरीब था, लेकिन उसकी मां विचारों की धनी थी। 

मां ने विल्मा को ढाँढस बँधाया और कहा कि विल्मा तुम भी चल सकती हो, यदि चाहो तो! विल्मा की इच्छा-शक्ति जाग्रत हुई। उसने डॉक्टरों को चुनौती दी। उसने अपने लकवाग्रस्त पैर को हिलाना-डुलाना शुरू कर दिया। नौ साल की उम्र में विल्मा उठकर बैठ गई। 13 साल की उम्र में उसने पहली बार एक दौड़ प्रतियोगिता में भाग लिया, लेकिन हार गयी। फिर लगातार तीन प्रतियोगिताओं में हारी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। 

15 साल की उम्र में टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी में जाकर उसने एड टेम्पल नामक कोच से कहा कि आप मेरी क्या मदद करेंगे। मैं दुनिया की सबसे तेज धाविका बनना चाहती हूँ। कोच टेम्पल ने कहा कि तुम्हारी इस इच्छा शक्ति के सामने कोई बाधा टिक नहीं सकती, मैं तुम्हारी मदद करूँगा। 1960 की विश्व-प्रतियोगिता ओलम्पिक में वह भाग लेने आयी। उसका मुकाबला विश्व की सबसे तेज धाविका जुत्ता हैन से हुआ। 

कोई सोच नहीं सकता था कि एक अपंग बालिका वायु वेग से दौड़ सकती है। वह दौड़ी और एक, दो, तीन प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त कर 100 मीटर, 200 मीटर तथा 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। उसने यह साबित कर दिया कि एक अपंग व्यक्ति दृढ़ इच्छा शक्ति से सब कुछ कर सकता है। हर सफलता की राह कठिनाइयों के बीच से गुजरती है।

Sunday, May 11, 2025

अहिंसा परमो धर्म: हमारी नीति , पर शठे शाठ्यम समाचरेत भी

अशोक मिश्र

पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से 12 हजार करोड़ डॉलर का कर्ज हथियाने में कामयाब हो ही गया। दुनिया जानती है कि जिस क्लाइमेट रेजिलिएंस लोन प्रोग्राम के तहत पाकिस्तान को यह नया लोन दिया जा रहा है, वह प्रोग्राम कभी धरातल पर उतरेगा ही नहीं। इसमें से ज्यादातर पैसा उन संगठनों पर खर्च किया जाएगा जिनके पांच प्रमुख कर्ताधर्ताओं को नौ मई को भारत एक ही झटके में निपटा चुका है। जिनके जनाने में पाकिस्तान की मिलिट्री के बड़े-बड़े अधिकारी शामिल हुए और शरीफ सरकार ने बड़ी शराफत के साथ शोक जताया। इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड के कार्यकारी बोर्ड की बैठक भारत ने पाकिस्तान को नया फंड देने का भरपूर विरोध किया, लेकिन भारत का पक्ष सुना नहीं गया। आईएमएफ बोर्ड में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे परमेश्वरन अय्यर ने पाकिस्तान को दिए जाने वाले 1.3 बिलियन डॉलर के ऋणों पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि इस पर दोबारा विचार किया जाए। पाकिस्तान को मिलने वाला पैसा आतंक को बढ़ावा देने में इस्तेमाल हो सकता है। लेकिन आईएमएफ ने भारत के अनुरोध को मानने से इनकार कर दिया था।

आईएमएफ बोर्ड में देश पाक को लोन मिलने का विरोध कर सकते थे, उन्होंने जानबूझकर चुप रहना और समर्थन देना जरूरी समझा। इसमें उनका क्या हित था, इसकी समीक्षा जरूरी है। 

भारत की यह आशंका बिल्कुल सही है कि इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड से मिलने वाले लोन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया जाएगा। आतंकवाद की नर्सरी में नए-नए
आतंकी तैयार किए जाएंगे, फिर उनके दिमाग में जेहाद का कचरा भरा जाएगा और उन्हें येन केन प्रकारेण भारत की सरजमीं पर भेज दिया जाएगा। वह यहां आकर या तो फौज की गोलियों का निशाना बनेंगे या फिर किसी अमानवीय घटना को अंजाम देते हुए मारे जाएंगे। उन आतंकियों का अंतिम परिणाम निश्चित है। इसके बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है।

हमारे देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या दूसरे बड़े नेता जब भी किसी देश में जाते हैं, तो उस देश की सरकार बड़े गर्व से कहती है कि अमुक राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या राजनेता महात्मा बुद्ध के देश से आए हैं। बुद्ध पूरी दुनिया में सबसे बड़े ब्रांड आज भी हैं। दुनिया के कई देशों में बौद्ध राष्ट्रीय धर्म के रूप में प्रचलित है। भारत में भले ही बौद्ध कम संख्या में रह गए हों, लेकिन कई देशों महात्मा बुद्ध को भगवान के रूप में पूजने वाले कम नहीं हैं। ढाई हजार साल बाद भी महात्मा बुद्ध के सत्य, अहिंसा और मानव प्रेम की तूती पूरी दुनिया में बजती है। पूरी दुनिया महात्मा बुद्ध के आगे झुकती है। महात्मा बुद्ध ने शाक्यों और कोलियों के बीच रोहिणी नदी के जल बंटवारे को लेकर पैदा हुए विवाद के चलते अपना घर त्याग दिया था। 

दरअसल, कोलिय और शाक्य दोनों उनके अपने थे। दोनों में आपस में रिश्तेदारी भी थी, लेकिन खेतों की सिंचाई और पेयजल के लिए दोनों समुदायों को रोहिणी नदी के पानी की ज्यादा से ज्यादा जरूरत थी और इसी बात को लेकर दोनों राज्यों में आपस युद्ध होता रहता था। महात्मा बुद्ध ने युद्ध रोकने का प्रयास किया और युद्ध में भाग लेने से इनकार कर दिया। गणराज्य के नियमों के मुताबिक उन्हें गणराज्य के नियम भंग के अपराध में उनके परिवार को फांसी दी जा सकती थी, संपत्ति जब्त की जा सकती थी या देश निकाला दिया जा सकता था। 

राजपुत्र होने के नाते वह चाहते तो सजा से बच सकते थे, लेकिन उन्होंने घर त्याग का विकल्प चुना। उसके बाद रोहिणी नदी का बंटवारा वैसे ही हुआ जैसा बुद्ध चाहते थे। हमारा देश महात्मा बुद्ध को पूजता है। अहिंसा हमारा परम धर्म है, लेकिन पिछले तीन-चार दिन में पूरी दुनिया को बता दिया कि हम शठे साठ्यम समाचरेत की नीति का भी पालन करते हैं। भारत ने सदियों से लेकर आज तक किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं किया।लेकिन जिसने भी आंख दिखाने की कोशिश की उसकी आंख फोड़ने में भी तनिक भी संकोच नहीं हुआ। हालांकि भारत-पाक में सीजफायर की अभी-अभी खबर आई है।

रूप को अच्छा माना जाए या गुण को

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

चाणक्य के कई नाम बताए जाते हैं। उनमें से कौटिल्य और विष्णुगुप्त काफी प्रचलित है। यह भी माना जाता है कि चणक के पुत्र होने की वजह से चाणक्य नाम को काफी ख्याति मिली। कहा तो यह भी जाता है कि उन्होंने महाप्रतापी नंद वंश का नाश किया था। 

चाणक्य ने ही अजापाल यानी भेड़बकरियां चराने वाले चंद्रगुप्त मौर्य को प्रजापाल यानी कि राजा बनाया था। चाणक्य ने अर्थशास्त्र नामक ग्रंथ की रचना की थी जिसमें राजनीति, अर्थ, समाज, कृषि और शासन व्यवस्था आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। चाणक्य अपने समय के किंग मेकर थे। वह चाहते थे तो खुद राजा बन सकते थे, लेकिन उन्होंने समाज के सबसे निचले पायदान पर आने वाले चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उन्होंने प्रधानमंत्री का पद भी बड़ी मुश्किल से स्वीकार किया था। 

वह नगर के बाहर एक कुटिया में रहते थे। एक बार चंद्रगुप्त अपनी पत्नी के साथ चंद्रगुप्त की कुटिया पर पहुंचे। उन्होंने चाणक्य से कहा कि यह बताइए, रूप और गुण में से किसको चुनना चाहिए। रूप को अच्छा माना जाए या गुण को? यह सुनकर चाणक्य मुस्कुराए और बोले, महाराज! मैं आपको दो गिलास पानी देता हूं। इसे पीकर बताइए कि कौन सा पानी अच्छा और मीठा लगा आपको। 

इसके बाद उन्होंने सोने के घड़े से एक गिलास पानी निकाला और दूसरे गिलास में काली मिट्टी से बने घड़े से पानी निकाला। चंद्रगुप्त ने दोनों गिलासों का पानी पिया और बोले, काली मिट्टी वाले घड़े का पानी मीठा और ठंडा था। सोने के घड़े वाला पानी कोई खास नहीं था। यह सुनकर महारानी ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने आपकी बात का जवाब दे दिया है। रूप की जगह गुण ही देखना चाहिए। काली मिट्टी से बना घड़ा उतना सुंदर नहीं है जितना सोने से बना घड़ा सुंदर है, लेकिन काली मिट्टी के घड़े का पानी मीठा और ठंडा है। यह सुनकर सम्राट चंद्रगुप्त चुप रह गए।

Saturday, May 10, 2025

सिवाय पीड़ा के युद्ध से हासिल कुछ नहीं होता

अशोक मिश्र

भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले तीन दिनों से जारी युद्ध को लेकर बहुत सारी बातें कही जा रही है। युद्ध कोई बच्चों का खेल नहीं है। युद्ध के दौरान खून बहता है, जानें जाती हैं, संपत्ति तबाह हो जाती है। और जब युद्ध खत्म होता है, तो उपलब्धि के नाम पर मिलते हैं, टूटे फूटे घर, तबाह कर दिए गए खेत, सैनिकों की विधवाओं की चीखें, अनाथ हुए बच्चों की कराहें, मारे गए नागरिकों के शोक संतप्त परिवार और विजेता होने के दंभ से हंसती खिलखिलाती सत्ता। सच कहा जाए, तो केवल विजयी होने के भाव के अलावा युद्ध से हासिल कुछ नहीं होता है।
प्राचीनकाल में जब युद्ध होते थे, तो उसके लिए राजा-महाराजा की कामुकता या राज्य विस्तार की लालसा जिम्मेदार होती थी। एक राजा अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हजारों सैनिकों की बलि चढ़ा देता था। दोनों ओर के हजारों सैनिक मारे जाते थे। लेकिन आज युद्ध के न केवल मायने बदल गए हैं, बल्कि उसमें बाजार का हस्तक्षेप भी बढ़ गया है। यह बात सौ फीसदी सही है कि पाकिस्तान ने भारत के सिर पर युद्ध थोप दिया है।
पिछले कई सालों से युद्ध को टालते आ रहे भारत को मजबूर कर दिया गया है कि वह अपना हथियार उठाकर युद्ध के मैदान में आ खड़ा हो। इतने से भी अगर पाकिस्तान की बुद्धि के दरवाजे खुल जाएं, तो बेहतर है। वैसे जब भारत के सिर पर युद्ध थोप ही दिया गया है, तो उसे ठीक से निपटा देना चाहिए, ताकि भविष्य में वह अपने देश से घुसपैठिए या आतंकवादियों को भेजने की जुर्रत न कर सके। वैसे भी पिछले तीन दिनों में भारत ने जो सबक सिखाया है, पाकिस्तान को हमेशा याद रखना चाहिए। जरूरत पड़ी तो यह पाठ आगे भी दोहराया जाता रहेगा। सन 1971 की मार वह भूल गया है। यही वजह है कि वह पिछले कुछ वर्षों से नापाक हरकतें करता चला आ रहा है।
भारतीय सेना की वीरता और साहस का मुरीद हर भारतवासी है। दुनिया की किसी भी सेना का मुकाबला करने की हिम्मत और क्षमता हमारी सेना में है।भारतीय सेना बेजोड़ है। इसके बावजूद यह नहीं कहा जा सकता है कि युद्ध अच्छे होते हैं। युद्ध हमेशा बुरे थे और भविष्य में भी बुरे ही रहेेंगे। पहले और अब के युद्ध में अंतर सिर्फ इतना है कि सामंती युग में राजा की इच्छा से युद्ध होते थे, वर्तमान युग में बाजार देशों को मजबूर कर देता है कि वह एक दूसरे से युद्ध करें। इन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे युद्ध की बात करें, तो जिन आतंकियों ने हमारे देश के 26 निर्दोष नागरिकों की निर्मम हत्या की, उन आतंकियों को पाल-पोस कौन रहा है। स्वाभाविक है कि पाकिस्तान का ही नाम लिया जाएगा, जो बिल्कुल सच भी है। लेकिन पाकिस्तान को इन आतंकियों को पालने-पोसने के लिए धन कौन मुहैया करा रहा था।
कंगाल पाकिस्तान इन आतंकियों को हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराने के लिए धन कहां से पा रहा था? यह वही देश हैं जो आज पूरी दुनिया के चौधरी बने घूम रहे हैं।
कह रहे हैं कि हमें भारत-पाकिस्तान युद्ध से क्या लेना-देना है। यह दुनिया के धनी और अपने को चौधरी कहने वाले देशों की ही करामात है कि एक तरफ तो वह आतंकियों को पैदा करते हैं, उनको चोरी-छिपे धन मुहैया कराते हैं। फिर इन आतंकियों और इनसे प्रभावित होने वाले देशों को अपना हथियार बेचते हैं। अगर पूरी दुनिया में शांति स्थापित हो जाए, आतंकवाद खत्म हो जाए, तो चीन, अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस आदि देशों की फैक्ट्रियों में उत्पादित ड्रोन्स, मिसाइलों और किस्म-किस्म के लड़ाकू विमानों को कौन पूछेगा।

अपने यहां कबाड़ हो चुके हथियारों को महंगे दामों पर वह भारत, पाकिस्तान, नेपाल, अफ्रीकी देश और अविकसित देशों को बेचकर अपना रोकड़ा टेंट में रखकर दुनिया को शांति का उपदेश देते हैं। युद्ध इन हथियारों के व्यापारी देशों के लिए बड़े फायदेमंद साबित होते हैं। युद्ध के नाम पर इनका कारोबार चलता रहता है। अगर कहीं कोई देश युद्ध नहीं करना चाहता है, तो ये हथियारों के व्यापारी ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देते हैं जिससे मजबूर होकर उस देश को युद्ध में उतरना पड़ता है।

चाफेकर बंधुओं की मां और सिस्टर निवेदिता


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जब हम चाफेकर बंधु कहते हैं तो उसमें बालकृष्ण हरि चाफेकर, वासुदेव हरि चाफेकर और दामोदर हरि चाफेकर का नाम आता है। यह तीनों भाई क्रांतिकारी थे। इन तीनों भाइयों ने पूना के ब्रिटिश प्लेग कमिश्नर वाल्टर चार्ल्स रैंड की हत्या कर दी थी। असल में उन दिनों पूना में प्लेग फैला हुआ था। प्लेग कमिश्नर महामारी के बहाने हिंदुस्तानियों पर कई तरह से अत्याचार कर रहा था। 

वह हिंदुस्तानियों से बहुत ज्यादा घृणा करता था। उससे पूना की जनता काफी परेशान थी। इसलिए एक दिन चाफेकर बंधुओं ने अपने मित्र महादेव विनायक रानाडे के साथ मिलकर वाल्टर चार्ल्स रैंड और उसके अंगरक्षक आयर्स्ट को गोलियों से भून दिया। आयर्स्ट तो वहीं मारा गया, लेकिन तीन दिन बाद रैंड भी मर गया। इस अपराध के लिए तीनों चाफेकर भाइयों और महादेव विनायक रानाडे को फांसी पर लटका दिया गया। 

इस घटना के बाद पूरे देश में क्रांतिकारियों के प्रति लोगों में सहानुभूति पैदा हो गई। स्वामी विवेकानंद के निर्देश पर उनकी शिष्या सिस्टर निवेदिता शहीदों की मां को सांत्वना देने के लिए उनके घर गईं। सिस्टर निवेदिता ने सोचा था कि उनके घर में शोक का वातावरण होगा। 

शहीद की मां शोकाकुल होंगी क्योंकि उनके तीनों पुत्रों को फांसी दे दी गई है। अब उनके बुढ़ापे का सहारा कौन होगा। लेकिन जब शहीदों के घर पर पहुंची, तो उनकी मां ने दरवाजे पर हाथ जोड़कर स्वागत कियाा। यह देखकर निवेदिता की आंखों में आंसू आ गए। उनकी आंखों में आंसू देखकर मां ने कहा कि आपने तो मोह माया को त्याग दिया है, फिर यह आंसू क्यों? मुझे गर्व है कि मेरे बेटे शहीद हो गए। 

अफसोस सिर्फ इस बात का है कि देश पर चढ़ाने के लिए एक और बेटा नहीं है। यह सुनकर निवेदिता अपने को रोक नहीं पाईं और उन्होंने रुंधे गले से यही कहा कि जिस देश में आप जैसी मां होगी, उस देश का कोई बाल बांका नहीं कर सकता है।

Friday, May 9, 2025

दमित्री मेंडेलीव ने पूरा किया मां का सपना

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुणों के आधार पर आवर्त सारिणी बनाने वाले रूसी रसायनज्ञ दमित्री इवानोविच मेंडेलीव ने अपने बचपन में काफी संघर्ष किया। मेंडेलीव का जन्म साइबेरिया के टोबोल्स्क में 8 फरवरी 1834 में हुआ था। यह अपने माता-पिता के 14 जीवित बच्चों में से अंतिम थे। जब मेंडेलीव छोटे ही थे, तभी इनके पिता किसी कारणवश अंधे हो गए थे, इसके एकाध साल बाद उनकी मृत्यु भी हो गई।

उन दिनों उनकी मां मारिया मेंडेलीव ने अपनी कांच की छोटी सी फैक्ट्री को संभाला और अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दिया। जल्दी ही उनकी समझ में आ गया कि यदि बच्चों को अच्छी शिक्षा देनी है, तो उन्हें साइबेरिया को छोड़ना होगा। उन्हीं दिनों कांच की फैक्ट्री में आग भी लग गई। इसलिए उन्होंने कांच की फैक्ट्री को बेच दिया और सेंट पीटसबर्ग आ गईं। 

दमित्री पढ़ने में काफी तेज थे, लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से किसी अच्छे स्कूल में वह पढ़ नहीं पा रहे थे। दमित्री और उनके सभी भाइयों को सेंट पीटसबर्ग में अच्छे स्कूलों में उनकी मां मारिया मेंडेलीव ने भर्ती करा दिया। लेकिन बदकिस्मती ने यहां भी दमित्री का साथ नहीं छोड़ा। कुछ साल बाद उनकी मां का भी देहांत हो गया। दमित्री बहुत दुखी हुए। 

दुनिया में मां ही सबसे बड़ा सहारा थी। लेकिन समय सारे घावों को भर देता है। दमित्री ने भी मां की कही हुई बातों को याद किया। उनकी मां कहा करती थी कि मैंने तुम्हारे लिए अपनी सारी संपत्ति सिर्फ इसलिए स्वाहा कर दी ताकि तुम दुनिया की सबसे बड़ी संपत्ति ज्ञान हासिल कर सको। इसके बाद दमित्री ने खूब मन लगाकर पढ़ाई की। धीरे-धीरे वह रूस का ही नहीं, दुनिया के सबसे बड़े रसायनज्ञ बन गए। 

उनकी बनाई तत्वों की आवर्त सारिणी आज भी रसायन विज्ञान पढ़ने वालों का मार्ग दर्शन करती है। उन्होंने अपनी मां का हर सपना पूरा करके ही दम लिया।

Thursday, May 8, 2025

कबीर की तरह खरी बात कहते थे संत दादू

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

संत दादू दयाल को राजस्थान का कबीरदास कहा जाता है। वह कबीरदास के पुत्र कमाल की भक्ति परंपरा में माने जाते हैं। संत दादू का जन्म 1544 को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ था, लेकिन इनकी कर्मभूमि राजस्थान ही रही। कबीरदास की तरह खरी बात करना, इनका स्वभाव था। संत दादू और कबीरदास के जन्म की कथा में भी साम्यता पाई जाती है। 

कहते हैं कि लोदीराम नगर में एक नागर ब्राह्मण को नदी में बहता हुआ एक बच्चा मिला। वह ब्राह्मण पुत्र विहीन था। वह उसे अपने घर ले आया और बेटे की तरह पालन पोषण किया। बारह साल की उम्र में वह घर छोड़कर संन्यासी होना चाहते थे तो उनके मां-बाप ने संत दादू दयाल की शादी करा दी। आखिर सात साल के बाद वह घर छोड़कर संन्यासी हो ही गए। धीरे-धीरे उनकी ख्याति पूरे राजस्थान में फैल गई। 

लोग उनके शिष्य बनने के लिए दूर-दूर से आने लगे। राजस्थान की किसी रियासत का एक दारोगा भी उनका शिष्य बनना चाहता था। वह दादू दयाल से मिलने के लिए निकला। रास्ते में उसने एक व्यक्ति से पूछा कि संत दादू कहां मिलेंगे। वह आदमी चुप रहा। इस पर दारोगा को गुस्सा आ गया। दारोगा ने उस व्यक्ति को धमकाते हुए दोबारा दादू के बारे में पूछा। फिर भी वह आदमी चुप रहा। 

इस पर उसने उस व्यक्ति से मारपीट की। मारपीट के बाद दारोगा आगे बढ़ गया। थोड़ी दूर जाने पर एक व्यक्ति से उसकी मुलाकात हुई, तो दारोगा ने उससे संत दादू के बारे में पूछा। उस व्यक्ति ने कहा कि मैं भी उनसे मिलने जा रहा हूं। जिधर से तुम आए हो, उसी ओर उनका आश्रम है। कुछ देर बाद दोनों आश्रम पहुंचे। वहां खड़े एक व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए उस आदमी ने कहा कि यही तो हैं संत दादू। 

उस आदमी को देखकर दारोगा बड़ा शर्मिंदा हुआ क्योंकि थोड़ी देर पहले उसने इन्हें ही पीटा था। उन्हें देखकर दारोगा संत दादू के पैरों पर गिर पड़ा और क्षमा मांगी।



Wednesday, May 7, 2025

हम अभी तक नहीं उतार पाए जातीय उच्चता की गुदड़ी

अशोक मिश्र

केंद्र सरकार ने जाति जनगणना कराने की स्वीकृति दे दी है। केंद्र सरकार के इस फैसले का विपक्षी दलों ने स्वागत किया है। जाति जनगणना कब होगी और इसका प्रारूप क्या होगा? इस बारे में विचार किया जाएगा। जाति जनगणना के बाद आने वाली रिपोर्ट को किस तरह लागू किया जाएगा? यह भी अभी अंधेरे में है। मोटे तौर पर यही कहा जा रहा है कि जिन जातियों की जैसी भागीदारी होगी, उसी हिसाब से उनके कार्यक्षेत्र में हिस्सेदारी दी जाएगी। लेकिन इस संबंध में एक आशंका है। जब सभी जातियों के लोगों की गिनती हो जाएगी, जातियों में भी उपजातियों का वर्गीकरण हो जाएगा, तो सभी जातियां अपनी संख्या के हिसाब से हिस्सेदारी मांगेंगी, उस समय क्या हालात होंगे? क्या ऐसी स्थिति में जातीयता का जहर और गाढ़ा नहीं हो जाएगा?

वैसे भी राजनीतिक दलों ने अपनी करनी से देश में जातीयता और धार्मिकता का जहर घोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसकी एक बानगी सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने पंजाब के एडिशनल सेशन जज प्रेम कुमार के मामले में सुनवाई के दौरान समाज के सामने पेश कर दी है। सुप्रीमकोर्ट ने जज प्रेम कुमार के मामले की सुनवाई करते हुए ओपन कोर्ट में कहा कि उपेक्षित समुदाय वाला अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर जज बना, तो ऊंचे समुदाय वालों से बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने षड्यंत्र रचकर उपेक्षित समुदाय के प्रेम कुमार की ईमानदारी को ही संदिग्ध करवा दिया और उन्हें बर्खास्त करवा दिया गया। दरअसल, सुप्रीमकोर्ट की यह टिप्पणी समाज के सामने एक सवाल बनकर खड़ी है कि जब समाज में सबसे सम्मानित और विश्वनीय पद पर बैठे प्रेम कुमार की ईमानदारी और निष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लगाकर उन्हें न्यायिक सिस्टम से हटाने की कोशिश की जा सकती है, ऐसी स्थिति में समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों को यह व्यवस्था कैसे न्याय दिला पाएगी? कैसे उन्हें उनकी भागीदारी के हिसाब से सिस्टम में समाहित किया जा सकेगा।

बता दें कि सेशन जज प्रेम कुमार के पिता मोची का काम करते थे और उनकी मां मजदूरी करके परिवार के भरण पोषण में सहायता करती थीं। समाज में मोची का काम करने वाले व्यक्ति को कितना सम्मान मिलता है, यह बताने की जरूरत नहीं है। अपनी मेहनत, लगन और समाज में कुछ बनकर दिखाने की लालसा ने उन्हें जज बना दिया, लेकिन यह बात पढ़े-लिखे और ऊंचे समुदाय के लोगों को यह रास नहीं आया कि उपेक्षित समुदाय का व्यक्ति उनके बराबार बैठे, उनकी ही तरह सम्मान पाए। ऐसा हर तरह के न्यायालय में होता है, कार्यपालिका या विधायिका में होता है, यह नहीं कहा जा सकता है। कार्य जगत के हर क्षेत्र में ऐसी प्रवृत्ति के लोग मौजूद हैं, ऐसा कहना भी गलत होगा। अच्छे और बुरे लोग समाज के हर क्षेत्र, हर समुदाय और हर समूह में मिल जाएंगे। कुछ लोगों के आचरण और व्यवहार के आधार पर सबको अच्छा या बुरा नहीं कहा जा सकता है।

लेकिन व्यावहारिक जीवन में जातीयता का दंभ गाहे-बगाहे दिख ही जाता है। कहीं कोई किसी आदिवासी के सिर पर पेशाब कर जाता है, तो कहीं निचली जाति के दूल्हे की बारात को अपने घर के सामने से पैदल जाने पर मजबूर कर दिया जाता है। समाज के सबसे निचले तबके की लड़कियों के साथ छेड़खानी, दुराचार करने वाला ऊंचे समुदाय का व्यक्ति खुलेआम घूमता है और कई बार दंड से भी बच जाता है।

सच तो यह है कि हम अभी जातीय उच्चता की भावना से मुक्त नहीं हो पाए हैं। शहरों में भले ही उच्चता की भावना कम दिखाई देती हो, लेकिन गांवों में यह भावना अक्सर लड़ाई झगड़ों के दौरान दिखाई दे जाती है। यह भी सही है कि कानून के भय ने लोगों को समान व्यवहार करने पर मजबूर कर दिया है, लेकिन दिल में यह भावना कहीं न कहीं दबी रह गई है जो समय-समय पर सामने आ ही जाती है। ऐसी स्थिति में जाति जनगणना के क्या परिणाम होंगे, कह पाना मुश्किल है।

संत बोला, मैं मालिक हूं कोई मुझे खरीदेगा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों का गुलाम नहीं होता है, अपनी कामनाओं को काबू में रखता है, उसे विषय भोग की इच्छा नहीं रहती है, वह पूरी तरह मस्त और परम स्वतंत्र होता है। वह न तो किसी का दास होता है और न ही किसी का मालिक। वह स्वयं अपना मालिक होता है। उसे कोई दास भी नहीं बना सकता है। एक बार की बात है। अरब देश में एक संत रहता था। वह अपने में ही मस्त रहता था। 

जो कोई उससे राय मशविरा करने आता, तो वह जो भी उचित होता, वह बता देता। लोग उसके पास खाने-पीने को रख जाते, वह उसी में संतुष्ट रहता था। जरूरत पड़ने पर वह हर किसी की मदद करता था। इस वजह से लोग भी उसे बहुत मानते थे। एक दिन वह कहीं जा रहा था। रेगिस्तानी इलाके में संत को मस्ती से गाते-झूमते देखकर लोगों को गुलाम बनाकर बेचने वाले गिरोह ने सोचा कि यह तो बड़ा हट्टा कट्टा है। यदि उसे पकड़कर बाजार में बेचा जाए, तो इसकी अच्छी कीमत मिलेगी। 

थोड़ी दूर जाने के बाद गिरोह के लोगों ने संत को घेर लिया। संत ने कोई विरोध नहीं किया। उसे अच्छी तरह से बांध दिया गया। उसने कोई विरोध नहीं किया। गिरोह के लोग उसे लेकर बाजार में गए, तब भी वह मस्ती से गुनगुना रहा था। गिरोह के लोग आश्चर्य में थे कि यह कैसा आदमी है, जो विरोध नहीं कर रहा है। गिरोह के मुखिया ने जोरदार आवाज लगाई-एक हट्टा कट्टा गुलाम है, कोई खरीदेगा। 

यह सुनकर संत ने उससे भी जोरदार आवाज में कहा, मैं अपनी इंद्रियों को गुलाम बना चुका हूं। मैं मालिक हूं। कोई मालिक खरीदेगा। यह सुनकर बाजार में आए हुए लोग समझ गए कि यह कोई बड़ा ज्ञानी पुरुष है। लोगों ने गिरोह के आदमियों को घेर लिया और मारने-पीटने लगे। संत ने उन्हें अलग किया और उन्हें जाने देने को कहा। यह सुनकर गिरोह को अपनी गलती का पता चला। उन्होंने संत से माफी मांगी और कभी ऐसा न करने का वायदा किया।

Tuesday, May 6, 2025

उपन्यास सौ साल का एकांत को मिला नोबेल

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

गेब्रियल गार्सिया मार्केस को वन हंड्रेड इयर ऑफ सॉलीट्यूड के लिए साहित्य का नोबल पुरस्कार दिया गया था। इस किताब को लिखने में उन्हें डेढ़ साल लगा था। पुस्तक जब तक पूरी नहीं हो गई, तब तक वह एक ही कमरे में रहे और उपन्यास पूरा होने के बाद ही वह बाहर आए। डेढ़ साल तक उनकी पत्नी मर्सिडीज सारा घर संभालती रहीं। गार्सिया का जन्म 6 मार्च 1927 को कोलंबिया में हुआ था। 

गार्सिया और उनकी पत्नी की प्रेम कहानी भी बड़ी रोचक है। गार्सिया को मर्सिडीज से तब प्यार हो गया था, जब वह खुद बारह साल के थे और उनकी पत्नी नौ साल की थीं। जब उन्हें एक विदेशी संवाददाता के रूप में यूरोप भेजा गया, तो मर्सिडीज ने उनके बैरेंक्विला लौटने का इंतजार किया।  लेकिन उन्होंने मर्सिडीज से शादी 31 साल की उम्र में की थी।  

उनका प्रथम कहानी-संग्रह लीफ स्टार्म एंड अदर स्टोरीज 1955 में प्रकाशित नो वन नाइट्, टु द कर्नल एंड अदर स्टोरीज और आइज आॅफ ए डॉग श्रेष्ठ कहानी संग्रह है। गार्सिया मार्केज ने कोलंबिया के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई करते हुए एक पत्रकार के रूप में अपना करियर शुरू किया। गार्सिया मार्केज जीवन भर एक प्रतिबद्ध वामपंथी रहे, जो समाजवादी मान्यताओं का पालन करते रहे। 

1991 में, उन्होंने चेंजिंग द हिस्ट्री ऑफ अफ्रीका प्रकाशित किया, जो अंगोलन गृह युद्ध और बड़े दक्षिण अफ्रीकी सीमा युद्ध में क्यूबा की गतिविधियों का एक सराहनीय अध्ययन था। उन्होंने फिदेल कास्त्रो के साथ घनिष्ठ मित्रता बनाए रखी। कई बातों में असहमत होने पर उन्होंने कास्त्रों की आलोचना की। महान साहित्यकार गार्सिया मार्केज का 17 अप्रैल 2014 को 87 वर्ष की आयु में मेक्सिको सिटी में निमोनिया से निधन हो गया।

Monday, May 5, 2025

पाणिनि पर आचार्य उपवर्ष को हुआ गर्व

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं पाणिनि। कहते हैं कि इनका जन्म गांधार के शलातुर गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम पणिन और माता का नाम दाक्षी था। पाणिनी जब बड़े हुए तो उन्होंने उपवर्ष के गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण की। माना जाता है कि पाणिनि ने ही संस्कृत भाषा के व्याकरण को सूत्रबद्ध किया और उसे एक नई दिशा दी। 

पाणिनि की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और चार हजार सूत्र हैं। इस पुस्तक में व्याकरण के अलावा तत्कालीन समाज का भी परिचय मिलता है। अष्टाध्यायी में समाज, भूगोल, पाक शास्त्र और राजनीतिक व्यवस्थाओं के बारे में भी जानकारी मिलती है। पाणिनि के बारे में एक किस्सा बहुत मशहूर है। कहते हैं कि एक दिन गुरुकुल के आचार्य उपवर्ष ने उन्हें कुछ याद करने को दिया। 

उन्हें पाठ याद नहीं हुआ। दूसरे दिन जब उपवर्ष ने पाणिनि से पाठ के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि गुरुजी, काफी प्रयास करने के बाद भी पाठ याद नहीं हुआ। तब उपवर्ष ने सजा देने के लिए उनसे हाथ फैलाने को कहा। जब उपवर्ष ने उनकी हथेली पर निगाह दौड़ाई तो उन्होंने सजा नहीं दी। पाणिनि ने दूसरे दिन पाठ याद करके सुना दिया। तब पाणिनि ने आचार्य से पूछा कि आपने उस दिन मुझे सजा क्यों नहीं दी? 

तब उपवर्ष बोले कि मैंने तुम्हारी हथेलियों को देखकर जान लिया था कि तुम्हारे हाथ में विद्या की रेखा है ही नहीं। तुम आगे भी नहीं पढ़ पाओगे। यह सुनकर पाणिनि ने पास में पड़ा पत्थर उठाया और हथेली पर गहरी रेखा बनाते हुए कहा कि गुरु जी, अब तो बन गई विद्या की रेखा। उसके बाद पाणिनि ने लगन से विद्या हासिल करनी शुरू की। एक दिन ऐसा आया जब उपवर्ष को अपने शिष्य पाणिनि पर गर्व हुआ।