अशोक मिश्र
भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले तीन दिनों से जारी युद्ध को लेकर बहुत सारी बातें कही जा रही है। युद्ध कोई बच्चों का खेल नहीं है। युद्ध के दौरान खून बहता है, जानें जाती हैं, संपत्ति तबाह हो जाती है। और जब युद्ध खत्म होता है, तो उपलब्धि के नाम पर मिलते हैं, टूटे फूटे घर, तबाह कर दिए गए खेत, सैनिकों की विधवाओं की चीखें, अनाथ हुए बच्चों की कराहें, मारे गए नागरिकों के शोक संतप्त परिवार और विजेता होने के दंभ से हंसती खिलखिलाती सत्ता। सच कहा जाए, तो केवल विजयी होने के भाव के अलावा युद्ध से हासिल कुछ नहीं होता है।
प्राचीनकाल में जब युद्ध होते थे, तो उसके लिए राजा-महाराजा की कामुकता या राज्य विस्तार की लालसा जिम्मेदार होती थी। एक राजा अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हजारों सैनिकों की बलि चढ़ा देता था। दोनों ओर के हजारों सैनिक मारे जाते थे। लेकिन आज युद्ध के न केवल मायने बदल गए हैं, बल्कि उसमें बाजार का हस्तक्षेप भी बढ़ गया है। यह बात सौ फीसदी सही है कि पाकिस्तान ने भारत के सिर पर युद्ध थोप दिया है।
पिछले कई सालों से युद्ध को टालते आ रहे भारत को मजबूर कर दिया गया है कि वह अपना हथियार उठाकर युद्ध के मैदान में आ खड़ा हो। इतने से भी अगर पाकिस्तान की बुद्धि के दरवाजे खुल जाएं, तो बेहतर है। वैसे जब भारत के सिर पर युद्ध थोप ही दिया गया है, तो उसे ठीक से निपटा देना चाहिए, ताकि भविष्य में वह अपने देश से घुसपैठिए या आतंकवादियों को भेजने की जुर्रत न कर सके। वैसे भी पिछले तीन दिनों में भारत ने जो सबक सिखाया है, पाकिस्तान को हमेशा याद रखना चाहिए। जरूरत पड़ी तो यह पाठ आगे भी दोहराया जाता रहेगा। सन 1971 की मार वह भूल गया है। यही वजह है कि वह पिछले कुछ वर्षों से नापाक हरकतें करता चला आ रहा है।
भारतीय सेना की वीरता और साहस का मुरीद हर भारतवासी है। दुनिया की किसी भी सेना का मुकाबला करने की हिम्मत और क्षमता हमारी सेना में है।भारतीय सेना बेजोड़ है। इसके बावजूद यह नहीं कहा जा सकता है कि युद्ध अच्छे होते हैं। युद्ध हमेशा बुरे थे और भविष्य में भी बुरे ही रहेेंगे। पहले और अब के युद्ध में अंतर सिर्फ इतना है कि सामंती युग में राजा की इच्छा से युद्ध होते थे, वर्तमान युग में बाजार देशों को मजबूर कर देता है कि वह एक दूसरे से युद्ध करें। इन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे युद्ध की बात करें, तो जिन आतंकियों ने हमारे देश के 26 निर्दोष नागरिकों की निर्मम हत्या की, उन आतंकियों को पाल-पोस कौन रहा है। स्वाभाविक है कि पाकिस्तान का ही नाम लिया जाएगा, जो बिल्कुल सच भी है। लेकिन पाकिस्तान को इन आतंकियों को पालने-पोसने के लिए धन कौन मुहैया करा रहा था।
कंगाल पाकिस्तान इन आतंकियों को हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराने के लिए धन कहां से पा रहा था? यह वही देश हैं जो आज पूरी दुनिया के चौधरी बने घूम रहे हैं।
कह रहे हैं कि हमें भारत-पाकिस्तान युद्ध से क्या लेना-देना है। यह दुनिया के धनी और अपने को चौधरी कहने वाले देशों की ही करामात है कि एक तरफ तो वह आतंकियों को पैदा करते हैं, उनको चोरी-छिपे धन मुहैया कराते हैं। फिर इन आतंकियों और इनसे प्रभावित होने वाले देशों को अपना हथियार बेचते हैं। अगर पूरी दुनिया में शांति स्थापित हो जाए, आतंकवाद खत्म हो जाए, तो चीन, अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस आदि देशों की फैक्ट्रियों में उत्पादित ड्रोन्स, मिसाइलों और किस्म-किस्म के लड़ाकू विमानों को कौन पूछेगा।
अपने यहां कबाड़ हो चुके हथियारों को महंगे दामों पर वह भारत, पाकिस्तान, नेपाल, अफ्रीकी देश और अविकसित देशों को बेचकर अपना रोकड़ा टेंट में रखकर दुनिया को शांति का उपदेश देते हैं। युद्ध इन हथियारों के व्यापारी देशों के लिए बड़े फायदेमंद साबित होते हैं। युद्ध के नाम पर इनका कारोबार चलता रहता है। अगर कहीं कोई देश युद्ध नहीं करना चाहता है, तो ये हथियारों के व्यापारी ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देते हैं जिससे मजबूर होकर उस देश को युद्ध में उतरना पड़ता है।