Friday, October 31, 2025

संत एकनाथ को क्रोध दिला पाना असंभव

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

रामचरित मानस जैसा महाकाव्य रचने वाले गोस्वामी तुलसीदास की ही तरह महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत एकनाथ का जन्म भी मूल नक्षत्र में हुआ था। एकनाथ के भी माता-पिता का इनके जन्म के बाद निधन हो गया था। कहा जाता है कि मूल नक्षत्र में पैदा होने वाले बालक के माता-पिता पर घोर विपत्ति आती है। संत एकनाथ ने महाराष्ट्र के सबसे चर्चित संत ज्ञानेश्वर की परंपरा को ही आगे बढ़ाया। 

इनके पितामहं भानुदास भी बहुत बड़े संत थे। संत एकनाथ ने भावार्थ रामायण और भागवत जैसे ग्रंथ की रचना की थी। वह पैठण में रहते थे। जब संत एकनाथ की ख्याति महाराष्ट्र में बढ़ने लगी, तो कुछ लोगों को यह अच्छा नहीं लगा। ऐसे लोग हर पल एकनाथ का बुरा करने का प्रयास करने लगे। इसके बावजूद संत एकनाथ अपनी साधना में लगे रहे। 

एक दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति ने उनकी ख्याति से चिढ़कर घोषणा की कि जो संत एकनाथ को गुस्सा दिला देगा, तो उसे दो स्वर्ण मुद्राएं दी जाएंगी। दो स्वर्ण मुद्राओं की लालच में एक गरीब किंतु बेरोजगार ब्राह्मण तैयार हो गया। वह एकनाथ के घर गया। उस समय एकनाथ पूजा कर रहे थे। वह युवक जाकर एकनाथ की गोद में बैठ गया। उसने सोचा कि ऐसा करने से एकनाथ को क्रोध आ जाएगा। लेकिन एकनाथ ने हंसते हुए कहा कि भैया! तुम से मिलकर अत्यंत आनंद आ गया। तुम्हारा प्रेम तो विलक्षण है। 

दोपहर में जब एकनाथ की पत्नी गिरिजा देवी भोजन परोसने लगीं, तो युवक उनकी पीठ पर चढ़ गया। एकनाथ ने कहा कि देखो, ब्राह्मण को गिरा मत देना। तब उनकी पत्नी ने हंसते हुए कहा कि बेटा हरि को पीठ पर लादकर काम करने का अभ्यास है, तो ब्राह्मण को कैसे गिरने दूंगी। यह सुनकर  युवक समझ गया कि इस दंपति को क्रोध दिलाना असंभव है। उसने दोनों से क्षमा मांगी और अपने घर चला गया। 

अरावली पर्वत शृंखला में फिर होने लगे अवैध निर्माण?

अशोक मिश्र

दो दिन बाद शादियों का सीजन शुरू होने वाला है। एक नवंबर से देश में शादियां होनी शुरू हो जाएंगी। वैसे तो इसमें कोई खास बात नहीं है। खास बात यह है कि जून महीने में अरावली क्षेत्र में जिन 240 से अधिक अवैध निर्माणों को तोड़ा गया था, उनमें ज्यादातर बैंक्विट हाल, मैरिज गार्डन, रिसॉर्ट और फार्म हाउस थे। कुछ लोगों ने वहां पर अपने घर भी बना लिए थे। शादियों का सीजन नजदीक आने से पहले ही लोगों ने बैंक्विट हाल और मैरिज गार्डन की रिपेयरिंग और पुनर्निमाण शुरू कर दिया है। 

ध्वस्त किए गए मैरिज गार्डन, बैंक्विट हाल और रिसॉर्ट को दोबारा खड़ा करने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है। इसके बावजूद स्थानीय प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की है। जून में सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर अरावली क्षेत्र में अवैध निर्माणों को गिराया गया था। अरावली पर्वत शृंखला के प्रतिबंधित क्षेत्र में कुछ भाजपा नेताओं, अधिकारियों और उद्योगपतियों के अवैध रूप से रिसॉर्ट, बैंक्विट हॉल और मैरिज गार्डन्स बना रखे थे। सुप्रीमकोर्ट कई बार इन्हें तोड़ने का आदेश दे चुका था।  

सुप्रीमकोर्ट ने जब राज्य सरकार को कटु शब्दों में अरावली क्षेत्र को अवैध कब्जे से मुक्त कराने और कार्रवाई रिपोर्ट उसके सामने पेश करने का आदेश दिया, तो मजबूरन स्थानीय निकाय को कार्रवाई करनी पड़ी और 240 से अधिक अवैध निर्माणों को ध्वस्त करना पड़ा। यहां तक आने वाले रास्तों को भी खोद दिया गया था, लेकिन अवैध निर्माण करने वालों ने बाद में इसे धीरे-धीरे पाटना शुरू कर दिया था। बता दें कि अरावली वन क्षेत्र में पंजाब भू-संरक्षण अधिनियम 1900 की धारा चार और पांच लागू होती है। 

इस अधिनियम के मुताबिक, अरावली क्षेत्र से सटे चार गांवों अनंगपुर, अनखीर, मेवला महाराजपुर और लकड़पुर के जंगलों में किसी प्रकार का पक्का या कच्चा निर्माण नहीं किया जा सकता है। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हुआ। भूमाफियाओं ने स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से लोगों को जमीनें बेच दीं। खरीदने वालों ने इन जमीनों पर अपनी जरूरत के मुताबिक अवैध निर्माण खड़े कर दिए। किसी ने फार्म हाउस बनाया, तो किसी ने बैंक्विट हाल। किसी ने अधिक लाभ कमाने के लिए मैरिज गार्डन बनाकर अरावली पर्वतमाला को संकट में डालना शुरू किया। जब कुछ लोगों ने इसकी शिकायत की, तो उनकी बात पर प्रशासन ने ध्यान ही नहीं दिया। 

नतीजतन लोगों को विभिन्न अदालतों की शरण लेनी पड़ी। सुप्रीमकोर्ट ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाया और अवैध निर्माण को ढहाने का सख्त आदेश स्थानीय निकायों को दिया। जून में जब अवैध निर्माण गिराए जा रहे थे, तब भी कुछ लोगों ने इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे। बहरहाल, स्थानीय निकायों को इस मामले में ध्यान देना चाहिए और सुप्रीमकोर्ट के आदेश का पूरी तरह पालन करना चाहिए।



Thursday, October 30, 2025

ललिता शास्त्री ने सादगी से गुजारा जीवन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बारे में यह सभी जानते हैं कि वह अत्यंत सादगी पसंद थे। वह महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे जिसकी वजह से वह हमेशा खादी के ही वस्त्र पहनते थे। वह सादगी और ईमानदारी से जीवन यापन करने में विश्वास रखते थे। 

शास्त्री जी का जन्म एक कायस्थ परिवार में हुआ था। वह कांग्रेस के लोकप्रिय नेताओं में शुमार किए जाते थे। उनकी पत्नी का नाम ललिता देवी था। बताया जाता है कि ललिता देवी का जन्म 11 जनवरी 1910 को एक संपन्न परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही काफी अमीरी में पली-बढ़ी थीं। उनके पिता शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर थे। 

मिर्जापुर में उनके पिता की अच्छी खासी संपत्ति थी। उनका परिवार उन दिनों मोटरकार रखने की हैसियत में था। इससे उनकी अमीरी का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब ललिता देवी विवाह योग्य हुईं, तो उनके पिता की इच्छा थी कि वह अपनी बेटी का विवाह ऐसे युवक से करें जो पढ़ा लिखा हो। संयोग से ललिता की मां रामदुलारी देवी अपने मायके मिर्जापुर आईं, तो उनके कुछ परिचितों ने लाल बहादुर शास्त्री से ललिता के विवाह का प्रस्ताव रखा। रामदुलारी देवी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 

16 मई 1928 को लाल बहादुर शास्त्री का विवाह ललिता देवी के साथ हुआ था। शास्त्री जी ने विवाह के समय किसी प्रकार का दहेज लेने से मना करते हुए कहा कि वह अपनी पत्नी को दो खादी की साड़ियों में ही स्वीकार करेंगे। लेकिन ललिता के पिता ने अपनी बेटी को रेशमी साड़ियों के साथ बहुत सारा सामान विवाह में दिया। शादी के कुछ महीनों बाद शास्त्री ने अपनी पत्नी से कहा कि तुम खादी की साड़ी पहना करो। ललिता ने पति की इच्छा मानकर इसके बाद जीवन भर खादी की साड़ी पहनी।

सड़कों पर आवारा घूमते कुत्ते बन रहे लोगों के लिए मुसीबत

अशोक मिश्र

कुछ महीने पहले सुप्रीमकोर्ट ने आवारा कुत्तों के संदर्भ में विभिन्न राज्यों सहित दिल्ली सरकार के लिए आदेश जारी किया था कि रैबीज वाले कुत्तों सहित सभी कुत्तों को शहर के बाहर छोड़ दिया जाए। इन कुत्तों की नसबंदी की जाए, ताकि इनकी लगातार बढ़ती जनसंख्या को काबू किया जा सके। सुप्रीमकोर्ट के फैसले को लेकर कुछ संगठनों ने तब बहुत हायतौबा मचाई थी। 

मजबूरन सुप्रीमकोर्ट को अपना संशोधित आदेश जारी करना पड़ा। सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि टीकाकरण और नसबंदी के बाद कुत्तों को उनके उसी स्थल पर छोड़ा जाए, जहां से उन्हें उठाया गया था। कुत्तों की सार्वजनिक स्थानों पर फीडिंग पर भी रोक लगा दी गई। यह आदेश दिल्ली-एनसीआर के अलावा पूरे देश में लागू होगा। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मामले में अपना अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। सुप्रीमकोर्ट के आदेश का कितना पालन हुआ या नहीं, यह तो अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है। 

फिरोजपुर झिरका में स्थानीय निकाय के अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा पांच बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। फिरोजपुर झिरका में एक पागल कुत्ते ने पांच बच्चों को बुरी तरह नोच डाला है। पागल कुत्ते का शिकार हुए बच्चे डेढ़ से सात साल की आयु के हैं। हरियाणा के कई जिलों में पागल कुत्तों का आतंक बढ़ता जा रहा है। अकसर देखने में यह आता है कि सड़कों पर आवारा घूमने वाले कुत्ते स्कूल से आते-जाते बच्चों पर हमला करके उन्हें घायल कर देते हैं। कई बार तो यह झुंड बनाकर राहगीरों पर हमला कर देते हैं। उन्हें घायल कर देते हैं। आवारा कुत्तों का शिकार हुए लोग सरकारी और निजी अस्पतालों का चक्कर काटने पर मजबूर हो जाते हैं। 

बात अगर फिरोजपुर झिरका वाले में ही की जाए, तो काफी समय से एक कुत्ते के पागल हो जाने की खबरें स्थानीय निकाय के अधिकारियों को मिल रही थी, लेकिन उचित कार्रवाई करने की कोशिश नहीं की गई। फिरोजपुर झिरका के एसडीएम लक्ष्मी नारायण का कहना है कि नगर पालिका सचिव को कई बार पत्र लिखकर आवारा कुत्तों के बारे में चेताया गया था, लेकिन सचिव ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसकी वजह से पांच बच्चों को एक पागल कुत्ते के काटने का शिकार होना पड़ा। 

यदि सचिव ने उचित समय पर कार्रवाई की होती, तो पांच बच्चों को यह पीड़ा नहीं झेलनी पड़ती। हरियाणा के लगभग सभी जिलों का यही हाल है। हर शहर और गांव में आवारा कुत्ते जरूर दिखाई पड़ जाते हैं। शाम ढलते ही यह कुत्ते राह चलते लोगों के लिए परेशानी का कारण बन जाते हैं। लोग सड़कों पर पैदल चलते हुए डरते हैं। यदि सरकार इन आवारा कुत्तों की नसबंदी करके छोड़ दे, तो इनकी संख्या में भारी कमी आ सकती है और  लोगों को ऐसी परिस्थितियों से छुटकारा मिल जाता।

Wednesday, October 29, 2025

हरियाणा की सैनी सरकार ने किया पीएमजेएवाई नीतियों में बदलाव

अशोक मिश्र

आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) की नीतियों में हरियाणा सरकार ने बदलाव किया है। अब पीएमजेएवाई के अंतरगत आने वाले लोग 11 बीमारियों का इलाज निजी अस्पतालों में नहीं करा सकेंगे। इन ग्यारह बीमारियों में  कूल्हा या घुटना बदलना, हरनिया, कान के पर्दे का आपरेशन, अपेंडिक्स का आपरेशन शामिल है। इसके अलावा टॉंसिल, गले की समस्याओं जैसे कई और समस्या से पीड़ित लोगों का इलाज निजी अस्पतालों में नहीं होगा। 

सरकार ने इन रोगों के इलाज पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए यह कदम उठाया है। पीएमजेएवाई के लाभार्थियों को अब तक प्रदेश के 650 निजी अस्पतालों में इलाज कराने की सुविधाएं मिल रही थीं। सरकारी आंकड़ा बताता है कि प्रदेश में लगभग सात सौ सरकारी अस्पताल हैं। इन सरकारी अस्पतालों में 119 किस्म की बीमारियों का इलाज होता था। नए सरकारी आदेश के बाद इन बीमारियों की संख्या 130 हो जाएगी। वैसे सरकार पीएमजेएवाई पर खर्च होने वाली रकम को घटना चाहती है और सरकारी चिकित्सा तंत्र का पूर्ण उपयोग करना चाहती है, यह किसी भी मायने में गलत नहीं है। 

हर सरकार को यह हक हासिल है कि वह अपने खर्चों की समीक्षा करे और जरूरत के मुताबिक उसमें कटौती करे। लेकिन प्रदेश सरकार का यह फैसला कुछ मामलों में विचार की मांग करता है। प्रदेश के सात सौ सरकारी अस्पतालों की दशा का भी राज्य सरकार को ध्यान में रखना चाहिए। सवाल यह है कि जिन ग्यारह किस्म की बीमारियों का इलाज निजी अस्पतालों की जगह सरकारी अस्पताल में कराने का आदेश दिया गया है, उस हालत में सरकारी अस्पताल क्या यह बोझ उठाने को तैयार हैं। सरकारी अस्पताल में वह सभी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं जो निजी अस्पताल मुहैया कराते हैं। 

सरकारी अस्पतालों की हालत यह है कि चिकित्सा और आपरेशन में काम आने वाली मशीनें या तो हैं नहीं या अगर हैं, तो वह किसी कबाड़ की तरह अस्पताल के किसी कोने में पड़ी हुई हैं। कहीं मशीने हैं, तो उनको संचालित करने वाले टेक्नीशियन नहीं है। कहीं डॉक्टर नहीं हैं, तो कहीं चिकित्सा कर्मी नहीं। नर्स हैं, तो अटेंडेंट नहीं हैं। कहीं लैब नहीं है, तो कहीं चिकित्सा के उपकरण का अभाव है। ऐसी स्थिति में जब सरकारी अस्पतालों में नई चिकित्सा का बोझ बढ़ेगा, तो क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। 

अव्यवस्था और चिकित्सा कर्मियों की कमी की वजह से पहले से ही कराह रहे सरकारी अस्पतालों के सिर पर पड़ने वाला नया बोझ वे कितना संभाल पाएंगे, यह तो समय ही बताएगा। वैसे तो यह फैसला सरकार ने कुछ सोच समझ कर ही लिया होगा, लेकिन सरकारी अस्पतालों पर बढ़ने वाले बोझ को भी ध्यान में रखना चाहिए था।

Sunday, October 19, 2025

गृहस्थ जीवन में बिठाना होगा सामंजस्य

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

संत कबीरदास भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन वह समाज को बहुत गहराई से समझते थे। दार्शनिक जगत में भी उनका बेहतरीन दखल था। वह पाखंड को बहुत नापसंद करते थे। यही वजह है कि कई सौ साल पहले रची गई उनकी कविताएं आज भी समाज का मार्गदर्शन करती है। 

एक बार की बात है। एक युवक उनसे यह मार्गदर्शन लेने आया कि उसे विवाह करके गृहस्थ आश्रम में जाना चाहिए या संन्यासी हो जाना चाहिए। कबीरदास ने किसी प्रकार का प्रवचन देने की जगह उसे व्यावहारिक रूप से समझाने की बात सोची। उस समय दोपहर था। उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज देते हुए कहा कि दीपक जला लाओ। उनकी पत्नी ने सहज भाव से दीपक जलाकर उनके पास रख दिया। 

थोड़ी देर बीतने के बाद उनकी पत्नी दो गिलास में दूध लाकर दोनों को दे दिया। कुछ देर बात उनकी पत्नी ने कबीरदास से पूछा कि दूध मीठा है या और चीनी लाऊं। तब तक युवक थोड़ा दूध पी चुका था। उसने पाया कि दूध में चीनी की जगह नमक डाला गया था। कबीरदास ने बड़े शांत भाव से कहा कि नहीं, दूध मीठा है। यह सुनकर युवक आश्चर्यचकित रह गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि खारे दूध को कबीरदास मीठा क्यों बता रहे हैं। 

तब कबीरदास ने उस युवक से कहा कि यदि तुम गृहस्थ जीवन में ऐसी स्थितियों का सामना कर सकते हो, तो विवाह कर लो। मेरी पत्नी जानती थी कि भरपूर उजाला है, लेकिन मेरे कहने पर वह दीपक जला लाई। उसने कुछ नहीं पूछा। यदि मैं उससे कहता कि दूध में नमक पड़ा है, तो उसे अच्छा नहीं लगता। उसकी कमियों को बड़ी सहजता से मैंने स्वीकर कर लिया। जीवन में दोनों को एक दूसरे के साथ ऐसे ही रहना होगा।

आइए! दीपावली पर हम मन के तिमिर को मिटाने का संकल्प लें

अशोक मिश्र

आज दीपावली है। दरअसल, दीप पर्व ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ को चरितार्थ करने का उत्सव है। अंधकार से प्रकाश की ओर चलने का संकल्प लेने का अवसर है दीपावली। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रकाश है क्या? ऊर्जा का एक परिवर्तित रूप है प्रकाश। एक विशेष किस्म की ऊर्जा ही प्रकाश है। और ऊर्जा किसमें? चेतन में, अचेतन (यानी जड़) में यानी समस्त पदार्थ में। इस संपूर्ण प्रकृति के प्रत्येक अंग, उपांग में ऊर्जा मौजूद है। 

इसका एक निहितार्थ यह हुआ कि संपूर्ण प्रकृति में जो कुछ भी है, वह ऊजार्वान है। इसी ऊर्जा के कारण के कारण प्रकृति में गति है। प्रकृति का निर्माण भी पदार्थ और गति से हुआ है। गतिमय पदार्थ और पदार्थ में गति। और अंधकार क्या है? प्रकाश का न होना अंधकार है। जब किसी पदार्थ में एक विशेष किस्म की ऊर्जा अनुपस्थित होती है, तब अंधकार होता है। अंधकार और प्रकाश पदार्थ के बिना नहीं हो सकते। अभौतिक नहीं हो सकते, अपदार्थिक नहीं हो सकते। प्रकृति विज्ञानी कहते हैं कि संपूर्ण प्रकृति की ऊर्जा का योग शून्य होता है। 

जब हमारे वैज्ञानिक कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, इसका एक मतलब यह भी है कि इस प्रकृति में कहीं न कहीं किसी जगह पर उतना ही तापमान घट रहा है क्योंकि इस संपूर्ण ब्रह्मांड में सभी तरह की ऊर्जा नियत है, निश्चित है। न उसे घटाया जा सकता है, न बढ़ाया जा सकता है। यह हमारी पृथ्वी या ब्रह्मांड के किसी हिस्से में हो सकता है, पृथ्वी से बाहर भी हो सकता है। यही प्रकृति की द्वंद्वात्मकता है। अंधकार और प्रकाश एक दूसरे के पूरक हैं। 

इस प्रकृति में जितना महत्व प्रकाश का है, उतना ही महत्व अंधकार का भी है। अंधकार उतना भी बुरा नहीं होता है, जितना हम समझते हैं। अंधकार के बिना प्रकाश का कोई महत्व नहीं है। संख्या एक का महत्व तभी तक है, जब तक संख्या दो मौजूद है। इस दीप पर्व पर हम संपूर्ण जगत को प्रकाशित तो करें, लेकिन तिमिर के महत्व को भी न भूलें। भारतीय दार्शनिक जगत में महात्मा बुद्ध ने ‘अप्प दीपो भव’ कहकर प्रकाश और तिमिर को पारिभाषित किया। उन्होंने कहा कि अपना प्रकाश खुद बनो। इसका एक तात्पर्य यह भी हुआ कि अपने भीतर प्रकाश पैदा करो। भीतर तम है, प्रकाश की आवश्यकता है। 

तम किसका है? अज्ञानता का है, रूढ़ियों का है, अंध विश्वासों का है, सामाजिक, राजनीतिक वर्जनाओं का है। पाबंदियों का है। इन्हें दूर करने के लिए महात्मा बुद्ध कहते हैं कि अप्प दीपो भव। इसका एक दूसरा तात्पर्य यह हुआ कि अपना आदर्श खुद बनो। आज दीप पर्व पर हमें यही संकल्प लेना है कि हम अपनी अज्ञानता रूपी अंधकार से मुक्ति पाएं। अंध विश्वास से दूर रहें। लोगों के कल्याण की भावना ही हमारा अभीष्ट हो। दीपावली समस्त संसार के लिए शुभ हो।

सुकरात के अमीर मित्र का भौंड़ा प्रदर्शन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

कुछ लोग अपनी धन-संपदा का भौंडा प्रदर्शन करने में ही अपनी शान समझते हैं। पुराने समय में जमींदार या धनी लोग समाज से किसी प्रकार के आयोजन में जब बुलाए जाते थे, तो पहली बात वह अपने किसी प्रतिनिधि को भेज दिया करते थे। यदि किसी कारणवश उन्हें जाना भी पड़ा, तो अपनी संपन्नता का प्रदर्शन करने से नहीं चूकते थे। 

यदि सामूहिक रूप से भोज का आयोजन किया जाए, तो वह विशेष बर्तन जैसे सोने-चांदी से बने बर्तन में ही खाना पसंद करते थे। पहनावे में भी उनके अमीरी झलकती थी। यूनान के महान दार्शनिक सुकरात के समय में भी कुछ लोग ऐसा ही करते थे। पता नहीं,यह कथा कितनी सही है, लेकिन कही जाती है। 

सुकरात के एक मित्र को अपनी अमीरी का प्रदर्शन करने का बड़ा शौक था। वह कहीं भी जाते थे, तो अपने साथ एक नौकर ले जाते थे जो उनके खाने-पीने के बर्तन साथ लेकर चलता था। वह अपने बर्तन के अलावा किसी दूसरे के बर्तन में खाते-पीते नहीं थे। सुकरात को अपने मित्र की यह आदत पसंद नहीं थी, लेकिन मित्रता की वजह से उन्हें कटु वचन कहना नहीं चाहते थे। 

एक दिन सुकरात ने अपने उस मित्र को खाने पर आमंत्रित किया। जैसे ही मित्र सुकरात के घर पहुंचा, वह उसे पुरुषों की भीड़ में ले गए। उनके नौकर को दरवाजे पर ही रोक दिया गया। उसी समय लोगों के लिए खाना परोस दिया गया। साधारण थाली में अपने सामने खाना देखकर मित्र असहज हो गया, लेकिन लोगों के अनुरोध करने पर खाना पड़ा। खाना खाने के बाद उनका मित्र जब विदा होने लगा, तो सुकरात अपने मित्र की थाली में खाना लेकर पहुंचे और कहा कि महिलाओं ने सोचा कि तुम इस थाली में अपने परिवार के लिए खाना लेकर जाओगे। इसलिए यह खाना औरतों ने भिजवाया है। यह सुनकर मित्र बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने यह आदत छोड़ दी।

किसानों, गरीबों और महिलाओं की हितचिंतक सैनी सरकार

अशोक मिश्र

हरियाणा की सैनी सरकार ने एक साल पूरे कर लिए हैं। अभी दो दिन पहले राज्य सरकार ने एक साल में पूरे किए गए 64 संकल्पों यानी वायदों की सूची भी जारी की है। एक तरह से इस सूची के माध्यम से सैनी सरकार ने अपने एक साल का हिसाब-किताब पेश किया है। सूची में यह भी बताया गया था कि लगभग साठ वायदों पर काम तेजी से चल रहा है। इन वायदों के भी बहुत जल्दी पूरे हो जाने की संभावना है। 

सरकार का दावा है कि उसने पिछले एक साल में किसानों की आय को बढ़ाने वाली नीतियों पर विशेष ध्यान दिया है। सैनी सरकार अपने आपको किसान, गरीब, युवा और महिलाओं के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध बता रही है। राज्य सरकार ने शुक्रवार को ही बुढ़ापा पेंशन में दो सौ रुपये प्रतिमाह की बढ़ोतरी की है। अब बुजुर्गों को पेंशन के रूप में 32 सौ रुपये मिलेंगे। सरकार का कहना है कि वह देश में सबसे ज्यादा राशि बुढ़ापा पेंशन में दे रही है। जहां तक किसानों की बात है, यह सही है कि प्रदेश में किसानों की 24 फसलों की खरीद एमएसपी पर हो रही है। इसके चलते किसानों को अपनी उपज का वाजिब दाम मिल रहा है। फसल बेचने के दो दिन बाद ही किसानों के खाते में उनके पैसे आ जाते हैं। 

पिछले 11 फसल सीजन में 12 लाख किसानों के खाते में 1.54 लाख करोड़ रुपये डाले गए हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश सरकार किस तरह किसानों की आय बढ़ाने और उन्हें सुविधाएं प्रदान करने की कोशिश कर रही है। प्रदेश सरकार ने वंचित रह गई अनुसूचित जातियों को उनका अधिकार दिलाने की दिशा में भी काफी सराहनीय कार्य किया है। सरकार के ही प्रयास से सरकारी नौकरियों, पंचायत और स्थानीय चुनावों में भागीदारी सुनिश्चित की जा सकी है। 

पिछड़ा वर्ग बी को पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों में आरक्षण सैनी सरकार ने प्रदान किया है। सरपंच पद पर पांच प्रतिशत और अन्य पदों पर जनसंख्या का पचास प्रतिशत आरक्षण देना, सबसे बड़ा काम है। शुक्रवार को ही गरीबों को सौ-सौ गज के 8029 प्लाट वितरित किए गए हैं। किसी भी व्यक्ति यह सपना होता है कि उसका भी एक घर हो। वह अपने घर को अपनी मनमर्जी के मुताबिक सजाए, अपने हिसाब से उसमें रहे। यह सौभाग्य हासिल करने में कम से कम गरीब लोग कम ही सफल होते हैं। 

ऐसी स्थिति में यदि सस्ते दाम पर कोई सरकार गरीबों को प्लाट या मकान दिला दे, तो इससे बढ़कर सराहनीय कार्य और क्या हो सकता है। पिछले एक साल में विभिन्न आवास योजनाओं के माध्यम से प्रदेश के 77 हजार से अधिक परिवारों को यह लाभ दिया गया है। दीन दयाल लाडो लक्ष्मी योजना के माध्यम से प्रदेश सरकार नारी शक्ति को मजबूत करने जा रही है। लक्ष्मी योजना से महिलाएं स्वावलंबन की ओर अग्रसर होंगी।

Saturday, October 18, 2025

गांधी का सत्याग्रह निकला अचूक हथियार


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका से भारत आने के बाद पहले देश और यहां के लोगों के रहन-सहन आदि का अध्ययन करने का फैसला किया। उन्होंने शहर से लेकर गांव-देहात की पदयात्राएं कीं, भारत की कमियों और खूबियों को अच्छी तरह से समझा। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस में काम करना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्हें यह समझ में आ गया कि भारत के लोगों को कैसे जगाना होगा। उन्हें आजादी के लिए कैसे प्रेरित करना होगा, ताकि अहिंसा के रास्ते से आजादी हासिल हो सके। उन्होंने सत्याग्रह करने का फैसला किया। सत्याग्रह करने का विचार महात्मा गांधी को भारत से नहीं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका से मिला था। एक बार की बात है। महात्मा गांधी रेलगाड़ी से डरबन से प्रिटोरिया जा रहे थे। उनके पास पहले दर्जे का टिकट था। वह गाड़ी में बैठे हुए थे, तभी एक अंग्रेज अफसर आया। उसने महात्मा गांधी को तीसरे दर्जे में जाकर बैठने को कहा। महात्मा गांधी ने कहा कि उनके पास पहले दर्जे का टिकट है। लेकिन अंग्रेज नहीं माना। उसने महात्मा गांधी को जबरदस्ती प्लेटफार्म पर धक्का देकर उतार दिया। महात्मा गांधी को बहुत बुरा लगा। एक बार उन्होंने सोचा कि यह अपमान सहने से बेहतर है कि वह अपना काम अधूरा ही छोड़कर वापस लौट जाएं। क्या वह अपमान सहने के लिए ही पैदा हुए हैं? लेकिन उनकी अंतरात्मा ने कहा कि उन्हें इसका प्रतिरोध करना चाहिए। वह जाकर वेटिंग रूम में बैठ गए। उनका ओवरकोट और सामान गाड़ी में रह गया था। इसके बाद उन्होंने अफ्रीका में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया। जिसके कारण वह दक्षिण अफ्रीका में बहुत मशहूर हो गए और हुकूमत को कई मामलों में पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।



खुलेआम उड़ाई जा रही ग्रेप वन पाबंदियों की धज्जियां

अशोक मिश्र

कुछ ही दिनों में सर्दियां आ जाएंगी। हलकी सर्दी पड़ने लगी है। इसके बावजूद हरियाणा के कुछ जिलों में प्रदूषण की समस्या काफी गंभीर हो गई है। दिल्ली और हरियाणा सरकार ने अभी से सावधानी बरतनी शुरू कर दी है। दिल्ली एनसीआर में ग्रेप वन लागू कर दिया गया है। तीन दिन बाद दीपावली है। दीपावली पर वैसे भी प्रदूषण अपनी चरम सीमा पर होता है। 

हालांकि सुप्रीमकोर्ट ने कुछ दिनों के लिए ग्रीन पटाखों को जलाने की इजाजत दी है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश में लोग ग्रीन पटाखे ही खरीदेंगे और उसको चलाएंगे। ग्रीन पटाखों की आड़ में प्रदूषित करने वाले पटाखे भी खरीदे-बेचे जाएंगे। इसे रोक पाना सरकार के वश में नहीं है। दिल्ली सरकार ने तो प्रदूषण कम करने के लिए कृत्रिम बरसात कराने की पूरी तैयारी कर ली है। 

यदि दिल्ली में जरूरत महसूस की गई, तो कृत्रिम बरसात भी कराई जा सकती है। हरियाणा में जो एहतियातन कदम उठाए जा सकते हैं, वह सरकार उठा रही है और भविष्य में भी उठाएगी। सबसे पहले तो राज्य सरकार ने पराली को जलाने से रोकने के लिए प्रत्येक पचास किसानों पर एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति की है, ताकि खेतों में जलने वाली पराली पर ध्यान रखा जा सके। यदि कोई किसान पराली जलाता हुआ पाया जाए, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सके। वैसे प्रदेश सरकार ने धान की कटाई करने वाले कम्बाइन हार्वेस्टर्स पर सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट यूनिट लगवाना अनिवार्य कर दिया है। 

यदि कोई कंबाइन हार्वेस्टर मालिक इस आदेश का उल्लंघन करता हुआ पाया गया तो उसका हार्वेस्टर जब्त कर लिया जाएगा। इतना ही नहीं, हार्वेस्टर संचालक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वैसे जो किसान अपने खेत की पराली को नहीं जलाएंगे, उन किसानों को ईनाम भी दिया जाएगा। इससे पराली को खेतों में न जलाने की प्रेरणा मिलेगी। राज्य के कई जिलों में निर्माण कार्यों की वजह से भी प्रदूषण गहराता जा रहा है। कहीं पर सड़क निर्माण हो रहा है, तो कहीं पर कई मंजिली इमारतों का निर्माण किया जा रहा है। यह सब कुछ उन क्षेत्रों में भी हो रहा है जिन जिलों में ग्रेप वन लागू है।  

ग्रेप वन वाले जिलों में ढाबों, रेस्टोरेंट आदि में भट्टी खुलेआम जल रही है। कोई उसकी जांच करने वाला नहीं है। कई बड़े उद्योगों में भी कोयले का उपयोग हो रहा है, लेकिन सरकारी आदेश के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। यह भी सही है कि कुछ इलाकों में ऐसे उद्योगों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। इसके बावजूद यह यही है कि पूरे प्रदेश में प्रदूषण के चलते सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में सांस, हृदय और त्वचा संबंधी बीमारियों के शिकार मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इन  रोगियों में बच्चे और बूढ़ों की संख्या काफी है। सबसे ज्यादा प्रदूषण का प्रभाव इन्हीं लोगों पर दिखाई देता है।

Friday, October 17, 2025

रेखाएं बोलेंगी, तभी चित्र बन पाएगा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

लियो नार्डो दा विंची केवल एक चित्रकार ही नहीं थे, वह महान वैज्ञानिक, ड्राफ्ट्समैन, सिद्धांतकार, इंजीनियर और मूर्तिकार भी थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1452 को इटली के विंसी शहर में हुआ था। दा विंची के माता-पिता ने इनके पैदा होने के एक साल बाद अलग हो गए थे और अलग-अलग विवाह कर लिया था। 

विंची का बचपन काफी परेशानियों के बीच बीता। 14 साल की उम्र में विंची ने फ्लोरेंस के एक ख्याति प्राप्त मूर्तिकार का स्टैंड ब्वाय बन गया था। यही से उनमें चित्रकला और मूर्तिकला में रुचि पैदा हुई थी। एक बार की बात है। उन्हें इटली के एक गिरिजाघर की दीवारों पर चित्र बनाने का काम दिया गया। 

उन्होंने यह काम स्वीकार कर लिया। वह गिरिजाघर जाते और कुछ देर दीवारों को देखने के बाद वह लोगों के चेहरों को गौर से देखने लगते। ऐसा काफी दिनों तक चला। कुछ लोगों को लगा कि विंची आलसी हो गए हैं। वह काम करना नहीं चाहते हैं। कुछ लोगों ने इसकी शिकायत राजा से कर दी। राजा ने लियोनार्डो को दरबार में बुलाया और चित्र बनाने में हो रही देरी का कारण पूछा। 

विंची ने मुस्कुराते हुए कहा कि रेखाएं तब तक नहीं बोलेंगी, जब तक मैं उन्हें समझ न लूं। मैं कोई आलसी नहीं हूं, धैर्यवान हूं। राजा उनकी बात को समझ गया। उसने लियोनार्डो को अपनी इच्छा से काम करने को स्वतंत्र कर दिया। इस काम में कई साल लग गए। लेकिन जब उनका चित्र पूरा हुआ, तो पूरा मिलान शहर आश्चर्यचकित रह गया। उनके चित्र की एक-एक रेखाएं बोलती सी लग रही थीं। चित्र के हर चेहरे पर रंगों की नहीं, बल्कि जीवन की गति थी। वैसे लियोनार्डो का सबसे अनमोल कृति द लास्ट सपर मानी जाती है।

चल रहा कर्ज देने के नाम पर अवैध वसूली का व्यापार

अशोक मिश्र

मकान, दुकान या दूसरी जरूरतों आदि के लिए लोगों को ऋण देने वाली निजी कंपनियां पिछले काफी दिनों से लोगों का शोषण कर रही हैं। कुछ फाइनेंस कंपनियों ने तो इसे लोगों को डरा धमकाकर अवैध वसूली का धंधा बना लिया है। वैसे तो आमौतर पर चिटफंड फाइनेंस कंपनियां लोगों से विभिन्न योजनाओं के नाम पर पैसे जमा कराती हैं। जब किसी इलाके में एक मोटी रकम जमा हो जाती है, तो कंपनी के पदाधिकारी और कर्मचारी रफूचक्कर हो जाते हैं। 

फंस जाता है बेचारा स्थानीय निवासी जिसको आगे करके फाइनेंस कंपनियां लोगों को अपने जाल में फंसाती हैं। लेकिन हरियाण और दिल्ली में कुछ अलग ही किस्म की धोखाधड़ी की गई है। फाइनेंस कंपनियों की धोखाधड़ी के शिकार साढ़े पांच सौ से ज्यादा लोग बताए जा रहे हैं। इन लोगों ने एक निजी फाइनेंस कंपनी से लोन लिया था। इसके लिए एक स्थानीय व्यक्ति को मध्यस्थ बनाया गया था। उस आदमी ने रेहड़ी, ठेले वालों को दो हजार से पचास हजार रुपये तक ऋण दिलाया। 

ऋण देते समय दो ब्लैंक चेकों पर हस्ताक्षर करवाकर कंपनी ने जमा करा लिया। लोन मिलने के बाद मध्यस्थ ने एक कर्मचारी को नौकर रखकर ऋण लेने वालों से छह सौ रुपये रोज के हिसाब से वसूले और कंपनी में जमा कर दिया। सारा लोन चुकता होने के बाद भी कंपनी ने मनमानी रकम भरकर चेकों को बैंक में जमा करा दिया। जब बैंक ने उचित बैलेंस न होने की वजह से चेक बाउंस कर दिया, तो कंपनी ने देनदारों के खिलाफ मुकदमा कर दिया। अब सारा कर्ज चुकाने के बावजूद 550 से अधिक लोग कोर्ट के चक्कर काटने पर मजबूर हैं। 

मजे की बात यह है कि फाइनेंस कंपनी न तो कहीं रजिस्टर्ड है और न ही कंपनी इनकम टैक्स भरती है। पीड़ितों ने दिल्ली अपराध शाखा में इसकी शिकायत भी की, मामले की जांच चल रही है। हरियाणा में ही नहीं, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड जैसे तमाम राज्यों में फाइनेंस उपलब्ध कराने के नाम पर बहुत सारी फर्जी कंपनियां चल रही हैं। केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद चिटफंड कंपनियों पर शिकंजा कसा गया है। कई चिटफंड कंपनियां न केवल बंद हुई हैं, बल्कि जनता से ठगी करने वालों को गिरफ्तार भी किया या है। वे सलाखों के पीछे हैं और अपनी करनी का फल भोग रहे हैं। 

इसके बावजूद चिटफंड कंपनियों ने लोगों को ठगने के लिए थोड़ा रूप बदल लिया है। निजी कंपनिया फाइनेंस करते समय अपने सारे नियम कायदे कानूनों की पूरी जानकारी नहीं देती हैं। इसके बाद वसूली शुरू करते हैं। तयशुदा रकम से कहीं ज्यादा की वसूली करने के बाद भी पीड़ित को  कई तरह से धमकाया जाता है। बैंकिंग कंपनियां तो मार्शलों के माध्यम से कर्ज लेने वालों को फोन पर या घर पर जाकर डराती धमकाती हैं। कई बार लोग परेशान होकर गलत कदम भी उठा लेती हैं।

Thursday, October 16, 2025

राजा ने ज्योतिषी को कारागार में डलवा दिया

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

किसी सज्जन आदमी को धोखा देना बहुत आसान है, लेकिन उस धोखे को ज्यादा दिन तक कायम रखना या ज्यादा दिनों तक धोखा दे पाना आसान नहीं है। एक न एक दिन पोलपट्टी जरूर खुल जाती है। जो व्यक्ति धोखा खाता है, वह भविष्य में किसी की मदद आदि नहीं करता है क्योंकि वह सोचता है कि अगला व्यक्ति भी धोखेबाज है। ऐसे में कई बार सच्चे आदमी पर भी लोग विश्वास नहीं कर पाते हैं। 

एक बार की बात है। एक राजा के दरबार में एक ठग आया। उसने चिकनी चुपड़ी बातों से राजा को प्रभावित कर लिया। उसने ऐसा जाहिर किया कि मानो वह बहुत बड़ा ज्योतिषी हो। राजा ने उसकी बातों से प्रभावित होकर उसे राज ज्योतिषी का पद दे दिया। हालांकि राजा के मंत्री ने इसका विरोध भी किया, लेकिन राजा ने मंत्री की बात नहीं सुनी। यह देखकर मंत्री चुप रह गया। 

कुछ दिन बाद राजा को खबर मिली कि पड़ोसी राजा उस पर हमला करने वाला है। उसने राज ज्योतिषी से पड़ोसी राजा को पराजित करने का  उपाय पूछा। राज ज्योतिषी बने ठग ने कहा कि एक कुंतल कोयला जलाने के बाद जितना धुआं बने, उतना लोहा मुझे दे दीजिए। मैं एक दिव्यास्त्र बना दूंगा जिससे कोई भी आपको पराजित नहीं कर पाएगा। राजा और दरबारी उसकी बात सुनकर चकित रह गए। 

तब मंत्री ने कहा कि एक कुंतल कोयला जलाने पर जितनी राख बचेगी, उसको तौलने पर जो कमी आएगी, उतना ही धुआं निकलेगा। यह सुनकर राज ज्योतिषी चुप रह गया। तब मंत्री ने कहा कि एक उपाय यह है कि यदि राज ज्योतिषी एक जलता हुआ कोयला हाथ पर रख लें, तो राज्य सुरक्षित रहेगा। यह सुनकर ठग राजा के पैरों पर गिर पड़ा और माफी मांगी। राजा ने उसे क्षमा करने की जगह कारागार में डलवा दिया।

वन विभाग से अनुमति लिए बिना पेड़ काटने पर लगी रोक

अशोक मिश्र

हरियाणा का पर्यावरण खराब होता जा रहा है। इसकी वजह प्रदेश में हर साल घटता वन क्षेत्र माना जा रहा है। पिछले दो साल में प्रदेश में 14 वर्ग किमी वन क्षेत्र घटा है। वन क्षेत्र घटने का कारण अवैध पेड़ों की कटाई को माना जा रहा है। वन माफिया अरावली वन क्षेत्र से लेकर अन्य जगहों पर भी पेड़ों की अवैध कटान कर रहे हैं। कई बार यह अवैध कटान संबंधित विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों की मिलीभगत से होता है, तो कई बार वह सचमुच अवैध कटान से अनभिज्ञ होते हैं।  

इसके अलावा कई मामलों में यह भी देखा गया है कि सड़कों को चौड़ा करने के लिए बाधा बनने वाले पेड़ों को काटना मजबूरी हो जाती है। इसकी वजह से भी वन क्षेत्र घटता जाता है। राज्य में कुल वन क्षेत्र 3307.28 वर्ग किमी है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7.48\प्रतिशत है। इसमें से वन क्षेत्र 3.65 प्रतिशत है। अरावली पर्वत शृंखला पर पेड़ों की कटाई इतनी ज्यादा हुई है कि अवैध कटान को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को भी मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा है। अरावली क्षेत्र में अवैध खनन माफियाओं की वजह से वन क्षे घट रहा है। 

यह माफिया केवल अवैध खनन ही नहीं करते हैं, बल्कि पेड़-पौधों को भी काट ले जाते हैं। हरियाणा सरकार की नई वन परिभाषा की वजह सेभी वन क्षेत्र घटने की आशंका है। सैनी सरकार की नई वन नीति के मुताबिक, पांच हेक्टेयर  से कम क्षेत्र में उगे पेड़-पौधों और झाड़ियों को वन नहीं माना जाएगा। इस नई नीति के चलते पांच हेक्टेयर से कम वन क्षेत्र उगे पेड़-पौधों को लकड़ियों की तस्करी और व्यापार करने वाले काट ले जाएंगे। ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है। 

अब हरियाणा सरकार ने अवैध वन कटान और पेड़-पौधों को कटने से बचाने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। ऐसा प्रयोग दिल्ली सरकार पहले भी कर चुकी है। प्रदेश सरकार ने नई एडवायजरी जारी करते हुए कहा कि अब राज्य के सरकारी और निजी संस्थानों में उगे पेड़ को काटने से पहले वन विभाग की अनुमति लेनी होगी। निजी संस्थानों में उगे पेड़ों को इससे पहले बिना वन विभाग की अनुमति लिए काट लेते थे। यह एडवायजरी प्रदेश के सभी जिलों में भेजी जा चुकी है। 

यह आदेश भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया है। प्रदेश सरकार एनजीटी के आदेश पर गाइड लाइन बनाने की तैयारी कर रही है। वन क्षेत्र को बढ़ाने के लिए वन विभाग हर साल प्रयास करता है। हर साल लाखों पौधे रोपे जाते हैं, लेकिन इसके बावजूद प्रदेश का वन क्षेत्र घटता जा रहा है। इसका कारण यह है कि पौध रोपण के बाद उनकी देखरेख नहीं की जाती है। आधे से ज्यादा रोपे गए पौधे सूख जाते हैं और बाकी बचे पौधों में से कुछ को लावारिस पशु चर जाते हैं। कुछ ही पौधे सुरक्षित रह पाते हैं।

Wednesday, October 15, 2025

सैनिक! तुम मेरा घोड़ा ले जाओ

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

इंसान बड़ा नहीं होता है, उसका किरदार बड़ा होता है। दुनिया में जितने भी महापुरुष या महान लोग हुए हैं, उनके जीवन वृत्तांत को यदि खंगाला जाए, तो पता चलता है कि वह जन्म से महान नहीं थे, लेकिन जीवन संघर्ष में आगे बढ़ने के दौरान वह महान हुए। उनका किरदार महान हुआ। 

उन्होंने लोगों की भलाई या सुख-दुख का ध्यान रखा। जरूरत पड़ने पर उन्होंने लोगों की मदद की। ऐसी ही एक घटना नेपोलियन बोनापार्ट के जीवन की मिलती है। नेपोलियन का उदय फ्रांस क्रांति के दौरान ही हुआ था। जब फ्रांस क्रांति पूरी तरह से अराजकता की ओर बढ़ रहा था, तब आगे बढ़कर नेपोलियन ने फ्रांस की शासन सत्ता की बागडोर संभाल ली थी। 

कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि यदि फ्रांस क्रांति न हुई होती, तो शायद नेपोलियन का उदय नहीं हुआ होता। एक बार की बात है। नेपोलियन की सेनाएं युद्ध लड़ रही थीं। नेपोलियन अपने शिविर में बैठा हुआ आगे की रणनीति पर विचार कर रहा था कि तभी एक सैनिक सेनापति का संदेश लेकर उसके पास पहुंचा। सैनिक काफी दूर से आाया था। 

नेपोलियन के शिविर के पास पहुंचते-पहुंचते थकान से चूर घोड़ा गिरा और उसने दम तोड़ दिया। नेपोलियन ने सेनापति का पत्र पढ़ा और तुरंत जवाब लिखकर सैनिक को देते हुए कहा कि तुम्हारा घोड़ा तो मर चुका है। ऐसा करो, मेरा घोड़ा ले जाओ। यह संदेश तुरंत पहुंचना जरूरी है। सैनिक ने कहा कि आपके यह कहने से मैं फख्र महसूस कर रहा हूं। लेकिन मैं आपके घोड़े को कैसे ले जा सकता हूं। नेपोलियन ने कहा कि दुनिया में कोई ऐसा पद या वस्तु नहीं है जिसे साधारण व्यक्ति अपने पौरुष से हासिल न कर सके। यह सुनकर सैनिक हतप्रभ रह गया।

राहुल गांधी की मेहनत पर पानी फेर देते हैं कांग्रेस के गुटबाज नेता

अशोक मिश्र

इस बात में कोई शक नहीं है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी पूरे देश में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को एकजुट करने और जनाधार बढ़ाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं को यह सख्त निर्देश दे रखा है कि वह अपने मतभेदों और मनमुटाव को उचित मंच पर उठाएं। जनता में पार्टी की छवि खराब नहीं होनी चाहिए। इसके बावजूद कहीं न कहीं आपसी मतभेद कांग्रेस में उभर ही आते हैं। 

सात अक्टूबर को चंडीगढ़ में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह के दायित्व ग्रहण समारोह में जिस तरह भीड़ जुटी और नेताओं ने भाग लिया, उससे लगा कि प्रदेश नेतृत्व गुटबाजी और आपसी मनमुटाव को खत्म करने में सफल हो गया है। दायित्व ग्रहण समारोह में न केवल भूपेंद्र सिंह हुड्डा मौजूद रहे, बल्कि रणदीप सुर्जेवाला ने भी शिरकत की। कुमारी सैलजा उन दिनों विदेश यात्रा पर थीं, लेकिन उनके गुट के नेता भी समारोह में शामिल रहे। इस समारोह में जिस तरह परस्पर विरोधी माने जाने वाले नेताओं और उनके समर्थकों की जुटान हुई, उससे लगा था कि कांग्रेस नेतृत्व सभी गुटों को एक झंडे के नीचे लाने में सफल हो गई। 

लेकिन चरखी-दादरी में हुई घटना ने इस मान्यता की धज्जियां उड़ा दीं। आईपीएस वाई पूरन कुमार की आत्महत्या मामले के विरोध में कांग्रेस ने प्रदर्शन किया था। इससे पहले कांग्रेस ने एक बैठक का आयोजन किया था। इस प्रदर्शन में नेताओं को अपनी-अपनी बात रखनी थी। रासीवासिया धर्मशाला में आयोजित बैठक में बाढ़हा से पूर्व विधायक सोमवीर का भाषण खत्म होने के बाद पूर्व संसदीय सचिव श्याम सिंह को बोलना था। लेकिन मानकावास के पूर्व सरपंच राज करण बीच में ही बोलने लगे। 

इससे श्याम सिंह और राज करण के समर्थक आपस में भिड़ गए। दोनों पक्षों ने न केवल एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी की, बल्कि गालियां भी दीं। इन नेताओं और उनके समर्थकों ने इस बता का भी ख्याल नहीं रखा कि कार्यक्रम स्थल पर महिलाएं भी मौजूद हैं और उनके सामने गाली गलौज नहीं करनी चाहिए। इस घटना के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को यह कहना पड़ा कि पार्टी में बढ़ती अनुशासनहीनता से निपटने के लिए अनुशासन कमेटी बनाई जाएगी और जो भी अनुशासन भंग करता हुआ पाया जाएगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। 

सवाल यह है कि सार्वजनिक स्थल पर एक दूसरे के खिलाफ गालियां बकने वाले कांग्रेस नेताओं को इस बात का ख्याल नहीं रह जाता है कि इससे पार्टी की छवि खराब हो रही है। पार्टी के ऐसे नेता और कार्यकर्ता आपस में गालीगलौज और एकदूसरे के खिलाफ बयान देकर राहुल गांधी की सारी मेहनत पर पानी फेर देते हैं। इन गुटबाज और गालीबाज नेताओं और कार्यकर्ताओं की वजह से ही कांग्रेस आगे नहीं बढ़ पा रही है।

Tuesday, October 14, 2025

पुत्र और पुत्री में भेदभाव क्यों करते हो

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

प्रकृति ने स्त्री और पुरुष दो प्रकार के जीवों की रचना की है। वैसे तो इंसानों में थर्ड जेंडर भी पाए जाते हैं, लेकिन विज्ञान मानता है कि गर्भ धारण के वक्त कुछ ऐसी अप्रत्याशित कारण पैदा हो जाते हैं जिसकी वजह से थर्ड जेंडर का जन्म होता है। इस स्थिति पर किसी का कोई वश भी नहीं है। लेकिन जो लोग स्त्री और पुरुष या बेटा-बेटी में भेद करते हैं, वह सुखी नहीं रह पाते हैं। इस संबंध में एक बड़ी रोचक घटना बताई जाती है। 

कहा जाता है कि किसी राज्य में एक संत रहते थे। वह लोगों के बीच भेदभाव रहित जीवन जीने की प्रेरणा दिया करते थे।  उनके पास जो भी अपनी समस्याएं लेकर आता था, वह उसका समाधान बता दिया करते थे। लोग उनके निस्वार्थ भाव से की गई सेवाओं का बड़ा सम्मान किया करते थे। एक बार की बात है। एक अमीर व्यापारी उनके पास आया और बोला-महाराज! वैसे तो मेरे पास अथाह धन संपत्ति है। 

संतान भी है। मेरी दो पुत्रियां है, लेकिन मेरे एक बेटा नहीं है। इस वजह से मेरा मन अशांत रहता है। आप ही बताएं मैं क्या करूं? संत ने पूछा कि आपको बेटा क्यों चाहिए? व्यापारी ने उत्तर दिया कि पुत्र न होने से लोगों को मोक्ष नहीं मिलता है। संत ने पूछा कि तुमने किसी ऐसे आदमी को देखा है कि उसे पुत्र न होने की वजह से मोक्ष न मिला हो। 

व्यापारी ने कहा कि मैंने ऐसा सुना है। तब संत बोले कि सुनी सुनाई बातों पर आप विश्वास क्यों करते हैं। मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जिनके पुत्र होते हुए भी वह दुखी हैं। यदि तुम अपनी दोनों पुत्रियों को अच्छी शिक्षा दो, तो वह आपको बेटे से ज्यादा गौरवान्वित करेंगी। यह सुनकर व्यापारी की आंखें खुल गई। उसने तब से पुत्र-पुत्री में भेदभाव न करने का संकल्प लिया।

दीपावली पर मिट्टी के दीये खरीदें कारीगरों के घरों में भी करें उजाला

अशोक मिश्र

पांच पर्वों के समूह में दीपावली सबसे ज्यादा मायने रखती है। धनतेरस से शुरू होने वाला पर्व भैया दूज पर जाकर खत्म होता है। दीपावली की रात गांव से लेकर शहर तक जगमगाते हैं। सच कहा जाए तो दीपावली शब्द दीप+ अवलि से मिलकर बना है। इसका मतलब है दीप मालिकाएं, दीपों की पंक्तियां। दीप सभी जानते हैं कि मिट्टी से बनाए जाते हैं। कहा जाता है कि चौदह साल का वनवास काटकर जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे, तो इस खुशी में अयोध्या के निवासियों ने अपने घरों को दीपक जलाकर खुशी मनाई थी। 

दीपावली उसी परंपरा की द्योतक है। दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीपक की बहुत मान्यता है। सदियों से हमारे देश में मिट्टी के दीपक ही उपयोग में लाए जाते रहे हैं। सामान्य दिनों में भी घर में रोशनी करने के लिए मिट्टी के दीए ही जलाए जाते रहे हैं। तब लालटेन या बिजली जैसी सुविधाएं नहीं थीं। सामाजिक परंपराएं और व्यवस्थाएं ऐसी थी कि मिट्टी के खिलौने, दीपक, घड़ा और अन्य चीजें बनाकर प्रजापति परिवार गांव और शहर वालों को उपलब्ध कराता था। बदले में समाज उनकी समस्त जरूरतों की पूर्ति करता था। 

वह भी अन्य लोगों की तरह सुखी और संपन्न जीवन व्यतीत करते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अब लोग बिजली की छालरें और अन्य वस्तुओं का उपयोग करते हैं जिसकी वजह से अब मिट्टी के दीयों की खरीदारी बहुत कम हो गई है। दो-तीन दशक पहले प्रजापति परिवार करवाचौथ के बाद ही मिट्टी के खिलौनों और दीपक को बनाने का काम शुरू कर देते थे। गांवों और शहरों में प्रजापति परिवार इस काम में जुट जाता था। लाखों दीये बनाकर वह बेचते थे। इसके साथ मिट्टी के रंग बिरंगे खिलौने भी भारी संख्या में बेच लेते थे। 

इसके उनका गुजारा चल जाता था। तब मिट्टी के लिए भी ग्राम पंचायत या खेत मालिक को कीमत नहीं देनी पड़ती थी। लोग सहयोगवश अपने खेत से मिट्टी निकालने की इजाजत दे देते थे। यह लोग तालाब की मिट्टी का भी उपयोग किया करते थे। लेकिन अब दीये बनाने के लिए एक ट्राली मिट्टी के लिए उन्हें तीन से चार हजार रुपये देने पड़ते हैं। एक मिट्टी का दीया बनाने में औसतन तीस से चालीस पैसे की लागत आती है। इसको बेचने पर भी मुश्किल से पंद्रह बीस पैसे का मुनाफा होता है। 

हर साल दीपावली के अवसर पर मिट्टी के दीयों और खिलौनों की मांग घटती जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण चीन और अपने देश में बनने वाली बिजली की लड़ियां और अन्य सजावट के सामान हैं। हरियाणा के प्रजापतियों ने सरकार से उन्हें विशेष पैकेज देने की मांग की है। यदि सरकार उन्हें विशेष पैकेज दे दे, तो उनकी दशा में सुधार आ सकता है। केंद्र और प्रदेश सरकार जब स्वदेशी अपनाने की अपील कर रही है, ऐसी स्थिति में चाइनीज लड़ियों की जगह मिट्टी के दीये खरीदकर इनकी हालत सुधारी जा सकती है।

Monday, October 13, 2025

क्रोध के चलते माला सूख गई

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

उभय भारती जिन्हें देवी भारती भी कहा जाता है, का विवाह मंडन मिश्र से हुआ था। उभय भारती का जन्म मिथिला क्षेत्र के भटपुरा गांव में एक मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। देवी भारती की बड़ी बहन का नाम मंदना मिश्रा बताया जाता है, जो कुमारिला भट्ट की शिष्या थीं। 

कुमारिला भट्ट की यह दोनों बहनें भतीजी या बहन बताई जाती हैं। कुमारिला भट्ट ने ही देवी भारती का विवाह महिषी गांव के मंडन मिश्र से करवाया था। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र का बिहार के सहरसा जिले के महिषी गांव में एक बार शास्त्रार्थ हुआ था। यह शायद आठवीं शताब्दी की घटना है। शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच सोलह दिनों तक शास्त्रार्थ चला। 

इस दौरान अद्वैत सिद्धांत पर दोनों में से कोई हार मानने को तैयार नहीं था। अपने ज्ञान और विद्वता की वजह से देवी भारती को इस शास्त्रार्थ का निर्णायक बनाया गया था। इसी बीच किसी काम से देवी भारती को किसी काम से जाना पड़ा। अब जब निर्णायक ही न हो, तो शास्त्रार्थ कैसे चलेगा। 

देवी भारती ने इसका भी उपाय निकाला। उन्होंने दो मालाएं मंगवाई और एक-एक दोनों को पहनाने के बाद कहा कि हार-जीत का फैसला यह माला करेगी। इसके बाद देवी भारती चली गईं। काफी देर बाद जब लौटकर आईं तो उन्होंने दोनों मालाओं का निरीक्षण किया और शंकराचार्य को विजेता घोषित कर दिया। लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। 

उन्होंने कहा कि मंडन मिश्र के गले की माला सूख गई थी, इसका मतलब जब यह हारने लगे थे, तो इनको क्रोध आ गया था। इस वजह से माला सूख गई। हालांकि बाद में भारती ने भी शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया और कामशास्त्र पर सवाल पूछे। शंकराचार्य ने परकाया प्रवेश के जरिये कामशास्त्र पर ज्ञान प्राप्त किया और भारती को भी हराया।

फिर खराब होने लगी हवा, दीपावली पर पटाखे जलाने से करें परहेज


अशोक मिश्र

मानसून हरियाणा से विदा हो चुका है। वैसे तो निकट भविष्य में अब प्रदेश में बरसात की कोई संभावना नहीं है। बरसात खत्म होने के बाद भी काफी दिनों तक वायु की गुणवत्ता ठीक ठाक रहती है, ऐसा एकाध दशक पहले तक माना जाता था। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। बरसात होने पर भले ही प्रदूषण का स्तर काफी घट जाता हो, लेकिन बरसात खत्म होने के कुछ ही घंटे या दिन बाद वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है। इन दिनों दिल्ली और एनसीआर सहित हरियाणा के लगभग सभी जिलों में प्रदूषण बढ़ने लगा है। 

वैसे तो लगभग पूरे साल दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण का स्तर खराब की श्रेणी में ही रहता है, लेकिन बरसात के विदा होने के तुरंत बाद ही वायु गुणवत्ता सूचकांक का बढ़ जाना चिंताजनक है। शनिवार को दिल्ली के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक दो सौ से ऊपर ही रहा। फरीदाबाद के बल्लभगढ़ में भी शनिवार को एक्यूआई 258 तक पहुंच गया था जो एक्यूआई के खराब होने का सूचक है। यही हाल प्रदेश के लगभग सभी शहरों का है। अभी से अगर एक्यूआई 250 से ऊपर जा रहा है, तो आने वाले दिनों में क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। सात-आठ दिन बाद दीपावली है। 

इस बार सुप्रीमकोर्ट भी पटाखे जलाने में छूट देने के मूड में दिखाई दे रहा है। ऐसी स्थिति में पटाखों की वजह से कितना प्रदूषण फैलेगा, इसका सहज आकलन किया जा सकता है। पिछले कुछ दिनों से हरियाणा में हवा की रफ्तार धीमी हो जाने से प्रदूषण के कण एक जगह पर स्थिर होने लगे हैं। इसकी वजह से कई इलाकों में बहुत ज्यादा प्रदूषण है। नतीजा यह हो रहा है कि हृदय और अस्थमा के रोगियों की परेशानी बढ़ रही है। अस्पतालों में जुकाम, अस्थमा, हृदय और त्वचा रोग संबंधी मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। प्रदेश के सरकारी अस्पताल प्रदूषण जनित रोगियों से भरे पड़े हैं। 

प्राइवेट अस्पतालों में भी ऐसे रोगियों की भरमार है। यह स्थिति बताती है कि दस-पंद्रह दिन बाद हालात और भी बिगड़ने वाले हैं। संतोष की बात यह  है कि हरियाणा में इस बार पराली जलाने की घटनाएं बहुत मामूली हुई हैं। बढ़ते प्रदूषण में किसानों की भागीदारी बिल्कुल न के बराबर है। सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण के लिए वाहनों से निकला धुआं जिम्मेदार है। 

सड़कों पर दौड़ते वाहनों से निकलने वाला धुआं अब लोगों के लिए मुसीबत का कारण बनता जा रहा है। वायु प्रदूषण लोगों के लिए साइलेंट किलर जैसा है। इसके बावजूद लोग प्रदूषण को लेकर सतर्क नहीं हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में लोगों से बस यही अपील की जा सकती है कि वह दीपावली पर कम से कम पटाखों को चलाएं। यदि जलाना ही हो, तो ग्रीन पटाखे ही जलाएं। पटाखा कम जलाकर जहां वह अपने पैसों की बचत करेंगे, वहीं वह पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाने से बच जाएंगे।

Sunday, October 12, 2025

मौत के डर ने दुबला कर दिया

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

राजा कृष्ण देव राय का जन्म 17 जनवरी 1471 ईस्वी में हुआ था। वह विजयनगर के सबसे चर्चित महाराज थे। वह स्वयं कवि और ज्ञानी पुरुष थे, लेकिन उनके दरबार में विद्वानों को बहुत ज्यादा संरक्षण प्राप्त था। तेलुगू भाषा के आठ कवि इनके दरबार की शोभा बढ़ते थे जिन्हें अष्टदिग्गज कहा जाता है। स्वयं कृष्णदेवराय खुद आंध्रभोज के नाम से प्रसिद्ध थे। इनकी भी प्रतिभा अद्वितीय थी। 

उनके शासनकाल में विजयनगर की प्रजा बहुत खुशहाल और समृद्ध रही थी। जिस समय राजा कृष्णदेव राय ने सिंहासन संभाला था, उस समय राज्य की दशा बहुत डांवाडोल थी। पड़ोसी राजा इनके राज्य को हड़पने की फिराक में रहते थे, लेकिन धीरे-धीरे कृष्ण देव राय ने अपने शासन को न केवल मजबूत किया, बल्कि शत्रुओं का दमन भी किया। एक बार की कथा है। 

राजा कृष्णदेव राय अपने स्वास्थ्य को लेकर लापरवाह हो गए। इसका नतीजा यह हुआ कि वह थोड़े मोटे होने लगे। राजवैद्य ने उनको बढ़ते वजन को लेकर चेताया भी, लेकिन वैद्य की सलाह का उल्लंघन करने लगे। वैद्य ने उन्हें कई तरह से अच्छा-बुरा समझाया, लेकिन वह नहीं माने। आखिर में वैद्य ने यह बात तेनालीराम को बताई तो उन्होंने एक उपाय बताया। एक दिन एक ज्योतिषी राज दरबार में आया और उसने कहा कि राजा की मौत एक महीने में हो जाएगी। 

राजा ने उस ज्योतिषी को कारागार में डालने का आदेश सुनाया ताकि भविष्यवाणी गलत साबित होने पर मौत की सजा दी जाए। महीना भर बीतने के बाद राजा ने ज्योतिषी को दरबार में बुलाया। तब ज्योतिषी ने कहा कि महाराज! अपना चेहरा देखिए। राजा ने आईना देखा, तो वह काफी दुबले हो गए थे। तब राजवैद्य ने सारी हकीकत बताई। तब राजा ने ज्योतिषी को विदा करने के साथ लापरवाही न करने की शपथ ली।

हरियाणा में हर दिन तीन पैदल यात्री होते हैं सड़क हादसों का शिकार

अशोक मिश्र 
सड़क पर चलना पिछले कुछ दशक से असुरक्षित होता जा रहा है। सड़क पर पैदल चलने वाले से लेकर भारी वाहन चालक तक सुरक्षित नहीं हैं। कब और कहां कोई तेज रफ्तार वाहन लोगों को रौंदता हुआ गुजर जाए, इसका कोई भरोसा नहीं है। हरियाणा में पिछले कुछ वर्षों से सड़क हादसों की संख्या में बढ़ोतरी ही हुई है। तेज रफ्तार गाड़ियां न केवल चालक और उसमें बैठी सवारियों के लिए जान लेवा हैं, बल्कि उनके आसपास से गुजर रही गाड़ियों और पदयात्रियों के लिए भी जानलेवा हैं। जो लोग रोमांच के चक्कर में तेज गाड़ी चलाते हैं और हादसा होने पर जिस वाहन से टकराते हैं, उसमें बैठी सवारियों की जान भी जोखिम में डालते हैं। 
कई बार सड़क हादसों का कारण सड़कों की स्थिति, फुटपाथ पर किए गए कब्जे और लावारिस घूमते पशु होते हैं। कब और कहां लावारिस पशु अचानक गाड़ी के सामने आ जाएं कोई नहीं जानता है। राज्य में बहुत सारे सड़क हादसों का कारण यही लावारिस पशु होते हैं। वैसे सैनी सरकार ने कई बार सड़कों को पशुविहीन करने की घोषणा की है, लेकिन अभी तक उन घोषणाओं को अमलीजामा नहीं पहुंचाया जा सका है। 
 यदि राज्य की सड़कों को पशुविहीन करने के साथ उनकी दशा सुधार दी जाए, तो सड़क हादसों की संख्या में कमी लाई जा सकती है। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि हरियाणा में प्रतिदिन तीन पदयात्रियों और हर दूसरे दिन एक साइकिल सवार को अपनी जान गंवानी पड़ती है। एक अनुमान के अनुसार हर साल राज्य में बारह सौ पैदल चलने वालों और दो सौ साइकिल सवारों की सड़क हादसों में मौत हो जाती है। सरकारी आंकड़ा बताता है कि साल 2023 में 10,463 सड़क हादसों में 4968 लोगों की मौत हुई थी। 
वहीं, 2024 में सड़क हादसों में थोड़ी कमी आई थी। इस साल 9806 सड़क हादसे हुए थे जिसमें 4689 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। वहीं 7914 लोग बुरी तरह घायल हुए थे। इसमें कुछ लोग तो आजीवन अपंग हो गए थे। पैदल चलने वालों और साइकिल सवारों को सड़क हादसों से बचाने के लिए सरकार ने संवेदनशील स्थानों पर पैदल पार पथ बनाने की योजना बनाई है, ताकि ऐसे लोगों को सुरक्षित रखा जा सके। 
 योजना के अनुसार, शहरों में अधिक भीड़भाड़ वाले स्थानों, धार्मिक स्थलों, बाजार, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशनों के पास फुटपाथ का आडिट करके यहां पैदल यात्रियों को सुरक्षा प्रदान की जाएगी। इन सभी स्थानों पर जो कमियां हैं, उन्हें दूर किया जाएगा। इतना ही नहीं, फुटपाथ पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। सैनी सरकार ने राज्य की सड़कों की दशा और दिशा सुधारने का फैसला किया है। ऐसा करके प्रदेश में होने वाले हादसों पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जाएगा।

Saturday, October 11, 2025

लक्ष्य से भटके, तो सफलता रहेगी दूर

प्रतीकात्मक चित्र
बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अगर व्यक्ति अपने लक्ष्य से न भटके, तो उसका सफल होना निश्चित है। यदि लक्ष्य से तनिक भी ध्यान भटका, तो सफलता के निकट होने पर भी सफलता नहीं मिलती है। सफलता व्यक्ति के साहस, लगन और कार्य पर निभर करती है। इस संबंध में एक बहुत ही रोचक कथा है। 

किसी राज्य में एक राजा था। वह राज्य काफी अमीर था। वहां के लोग काफी खुशहाल और मानवप्रेमी थे। राज्य के लोग आपस में मिलजुलकर रहते थे और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की सहायता किया करते थे। लेकिन उस राज्य में एक ही दुख था कि राजा के कोई संतान नहीं थी। 

जब राजा बूढ़ा होने लगा, तो उसे राज्य के उत्तराधिकारी की चिंता हुई। उसने सभी तरह के उपाय आजमाए, लेकिन उसे किसी भी प्रकार से सफलता नहीं मिली। आखिरकार उसने तय किया कि अपनी संतान की आशा छोड़ करके किसी योग्य व्यक्ति को गोद लेना चाहिए और उसे राजा घोषित कर देना चाहिए। उसने मंत्री को बुलाकर मुनादी करवाई कि जो भी व्यक्ति कल उससे आकर मिलेगा, मैं उसे अपने राज्य का एक भाग दे दूंगा। 

तब मंत्री ने कहा कि ऐसे तो कई लोग आकर मिलेंगे, यदि सबको राज्य दे दिया गया, तो राज्य टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। अगले दिन राजा ने अपने बगीचे में मेला लगवा दिया। तरह-तरह के नाच गाने का प्रबंध था। खाने-पीने का बढ़िया प्रबंध किया गया था। 

लोग राजा की बात भूलकर मेले का आनंद लेने लगे। एक युवक घर से ठान कर आया था कि वह राजा से जरूर मिलेगा। उसने सभी बाधाओं को पार करते हुए राजमहल में प्रवेश किया। राजा ने उस युवक को अपना उत्तराधिकारी बना दिया क्योंकि उसे सिर्फ अपना लक्ष्य याद रहा। वह मेले के लालच में नहीं पड़ा।

हरियाणा के प्रशासनिक तंत्र का दो खेमों में बंटना चिंताजनक

अशोक मिश्र

हरियाणा वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई पूरण कुमार की आत्महत्या एक दुखद घटना है। इस मामले में जो भी आरोपी हैं, उनकी जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी गई है। जो दोषी पाया जाए, उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए। लेकिन इस दुखद घटना के बाद का परिदृश्य चिंताजनक है। घटना को लेकर ब्यूरोक्रेसी से लेकर राजनीतिक हलके में माहौल गरम है। 

घटना ने पूरे प्रशासनिक तंत्र को झकझोरकर रख दिया है। सात अक्टूबर को आईजी वाई पूरण कुमार ने आत्महत्या से पहले पत्र लिखकर प्रदेश के 14-15 पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर दलित होने के कारण उन्हें परेशान करने का आरोप लगाया। उन्होंने जिस तरह रोहतक एसपी नरेंद्र बिजारणिया से लेकर डीजीपी शत्रुजीत कपूर सहित आईपीएस और आईएएस पर जातीय आधार पर परेशान करने और गाली-गलौज करने का आरोप लगाए हैं, वह आश्चर्यजनक है। 

हरियाणा के इतिहास में यह पहला मौका है, जब किसी मामले में चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी सहित 14 पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर मामला दर्ज हुआ है। अपने पत्र में पूरण कुमार ने जिस तरह थोक के भाव आरोप लगाया है, उनके आरोपों पर सहज विश्वास नहीं हो रहा है। नौकरशाही पर भ्रष्टाचार के आरोप तो आए दिन लगते ही रहते हैं। लेकिन पत्र में जो आईजी वाई पूरण कुमार ने लिखा है, उस पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। पूरा महकमा हाथ धोकर किसी एक अधिकारी के पीछे पड़ जाए और सरकार और मीडिया को इसकी भनक तक न लगे, विश्वसनीय नहीं लगता है। 

हो सकता है कि एकाध अधिकारियों ने उनके साथ बुरा व्यवहार किया भी हो। किसी मुद्दे को लेकर बहस या गाली-गलौज भी हुई हो, लेकिन पूरा प्रशासनिक तंत्र उनके खिलाफ था, इस पर कौन विश्वास करेगा। उनके साथ ज्यादती हो रही थी, तो वह अदालत की शरण में भी जा सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा करने की जगह आत्महत्या की राह चुनी। आत्महत्या के बाद उपजे हालात की वजह से आईपीएस, आईएएस, एचसीएस अधिकारी दो गुटों में बंट गए हैं। प्रशासनिक हलकों में यह भी चर्चा है कि बुधवार की रात चंडीगढ़ में दलित अधिकारियों ने एक गुप्त बैठक भी की है। 

यदि इस मामले को जल्दी से जल्दी सुलझाया नहीं गया, तो प्रशासनिक तंत्र में जो गांठ पड़ेगी, उसका प्रभाव न केवल कामकाज पर पड़ेगा, बल्कि जनहित के कार्य भी प्रभावित होंगे। वैसे प्रदेश की विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को तूल देने में लगी हुई हैं। उन्होंने मुद्दे को एक अवसर की तरह लपक लिया है। अब वह दलित बनाम सवर्ण की आड़ में प्रदेश सरकार पर हमलावर हैं। शोषण और उत्पीड़न के चलते दलित अधिकारी की आत्महत्या से बेहतरीन मुद्दा उन्हें और कहां मिल सकता है।

Friday, October 10, 2025

हमेशा अच्छे लोगों की संगति करना

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हकीम लुकमान का जिक्र कुरान में भी आया है। वैसे भी
चिकित्सा क्षेत्र में हकीम लुकमान का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। वह अरब देशों में सबसे बड़े वैद्य माने जाते थे। वैसे तो अरबी, फारसी और तुर्की साहित्य में हकीम लुकमान के बारे में बहुत सारी कहानियां प्रचलित हैं। हालांकि इन कहानियों में से कुछ ही सच्ची हो सकती हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि लुकमान की मौत के बाद उनके बारे में बहुत सारी कहानियां जोड़ दी गई थीं। 

वैसे भी लुकमान का जन्म इस्लाम के आगमन से पूर्व का माना जाता है। यही वजह है कि कुरान में उनका जिक्र है। कहा जाता है कि हकीम लुकमान जब बूढ़े हो गए और उन्हें लगा कि अब उनका अंतिम समय आ गया है, तो उन्होंने अपने बेटे को आखिरी शिक्षा देने की सोची। वैसे वह हकीमी विद्या अपने बेटे को सिखा चुके थे। लेकिन उसे सांसारिक ज्ञान देने की जरूरत वह समझते थे। 

इसलिए मरने से पहले उन्होंने अपने बेटे को बुलाया और कहा कि बेटा! तुम कोयले और चंदन के टुकड़े ले आओ। बेटे को अपने पिता की बात बहुत अटपटी लगी, लेकिन उसे पिता का आदेश मानना ही था। वह रसोई में गया और उसने कोयले का टुकड़ा उठा लिया। संयोग से घर में चंदन का भी टुकड़ा मिल गया। वह लेकर पिता के पास पहुंचा, तो उन्होंने कहा कि इसे फेंक दो। 

जब बेटा फेंकने चला, तो उसे रोकते हुए कहा कि तुम्हारे हाथ में कालिख लगी है या नहीं। बेटे ने कहा कि लगी है। तब हकीम ने कहा कि बुरे लोगों की संगति कोयले की तरह होती है। जीवन भर बुराई पीछा नहीं छोड़ती है। वहीं चंदन पकड़ने वाला हाथ महक रहा होगा। सज्जन पुरुष चंदन की तरह होते हैं। हमेशा सज्जन लोगों से ही मित्रता करना। इसके बाद लुकमान ने आंखें मूंद ली।

हरियाणा में जापान करेगा पूंजी निवेश, हजारों युवाओं को मिलेगा रोजगार

अशोक मिश्र

किसी देश या प्रदेश का विकास इस बात पर निर्भर करता है, उस देश या प्रदेश में पूंजी निवेश की क्या स्थिति है? पूंजी निवेश भी कोई भी उद्योगपति तभी करता है, जब देश या प्रदेश में कानून व्यवस्था और सड़कों की स्थिति उसके अनुकूल हो। नौकरशाही उद्योगों के विकास में  रुचि रखती हो या फिर शासन भी पूंजी निवेश के लायक प्रदेश में माहौल पैदा करके उद्योगपतियों का विश्वास जीत चुका हो। हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी का तीन दिवसीय जापान दौरा काफी हद तक सफल रहा। 

इस दौरे की सफलता ने यह बात साबित कर दी कि सीएम जापान के पूंजीपतियों को यह विश्वास दिलाने में सफल रहे कि प्रदेश की औद्योगिक नीतियां, मजबूत बुनियादी ढांचा और कानून व्यवस्था के चलते माहौल सुरक्षित और पूंजी निवेश के अनुकूल है। तीन दिवसीय जापान दौरे के बाद यह तस्वीर साफ हो गई है कि निकट भविष्य में बड़े पैमाने पर राज्य में औद्योगिक, कृषि और तकनीकी विकास के लिए भारी पैमाने पर जापान से पूंजी निवेश होगा। सीएम के नेतृत्व में गए उच्च प्रतिनिधिमंडल ने पांच हजार करोड़ रुपये से अधिक पूंजी निवेश के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। जापान भारत का बहुत पुराना मित्र देश रहा है। 

सदियों पहले से ही जापान के लोग भारत आते-जाते रहे हैं। यहां से भी बहुत सारे पर्यटक मौर्य शासन के दौरान गए हैं। महात्मा बुद्ध को भगवान की तरह पूजने वाला देश जापान आज शिक्षा, तकनीक, विज्ञान और उद्योग के मामले में बहुत आगे है। बौद्ध धर्म जापान का राष्ट्रीय धर्म है। इससे भारत और जापान के बीच के प्रगाढ़ संबंधों को समझा जा सकता है। आजादी की लड़ाई के दौरान भी जापान के ही सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन हो पाया था। इतना ही नहीं, सन 1980 में जापान ने गुरुग्राम में मारुति उद्योग से भारत में निवेश की शुरुआत की थी। 

हरियाणा राज्य के प्रति जापानी उद्योगपतियों को विश्वास बहुत पहले से ही कायम रहा है। पिछले एक दशक में यह विश्वास और मजबूत हुआ है। यही वजह है कि सीएम सैनी की यात्रा के दौरान जापान में 4400 करोड़ रुपये से अधिक दस समझौतों पर दोनों देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। जापान की अग्रणी कंपनियों में शुमार की जाने वाली एयर वायर, टीएएसआई, नम्बूब, डैंसो, सोजिल्ज, निसिन जैसी लगभग एक दर्जन कंपनियों ने हरियाणा में पूंजी निवेश के लिए रुचि दिखाई है। 

जापानी निवेशकों के सामने सीएम सैनी यह इच्छा भी व्यक्त कर चुके हैं कि प्रदेश में बनने वाले दस एमआईटी में से एक में जापान की ही कंपनियां पूंजी निवेश करें, ताकि कम से कम एक एमआईटी मिनी जापान जैसी दिखे। इससे जापान और हरियाणा के लोग एक दूसरे की सभ्यता और संस्कृति को भली भांति समझ भी सकेंगे।

Thursday, October 9, 2025

हड्डियां टूटने के बाद भी हार नहीं मानी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

एक बहुत पुरानी फारसी कहावत है कि हिम्मते मर्दा मददे खुदा। कहते हैं कि जो आदमी अपनी कोशिश करना नहीं छोड़ता है, उसकी मदद खुदा भी करता है। खुदा या ईश्वर उन्हीं का साथ देता है जो प्रयास करना नहीं छोड़ते हैं। इस बात को साबित किया अमेरिकन धाविका बेट्टी राबिनसन्स ने। 

उन्होंने अपने जीवन में तमाम परेशानियां झेलीं, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। नतीजा यह हुआ कि वह अमेरिका की महान धाविका बनीं। बेट्टी राबिनसन्स का जन्म 23 अगस्त 1911 को अमेरिका में हुआ था। जब वह 15 साल की थीं, तो उन्हें स्कूल से घर आने-जाने के लिए ट्रेन पकड़ना पड़ता था। एक दिन वह स्कूल से लेट हो गईं, तो ट्रेन पकड़ने के लिए उन्होंने दौड़ना शुरू किया। संयोग से  उनके पीछे उनके अध्यापक चार्ल्स प्राइज भी आ रहे थे। 

वह खुद एक एथलीट रह चुके थे। बेट्टी को दौड़ते देखकर उन्हें लगा कि यदि वह प्रशिक्षण हासिल करे, तो बेहतरीन रनर हो सकती है। उन्होंने प्रशिक्षण दिया और नतीजा यह हुआ कि 30 मार्च 1928 को सौ मीटर रेस की चैंपियन हेलेन फिल्की को मुकाबले में दूसरे स्थान पर रहीं, लेकिन जल्दी ही उसने फिल्की को हरा दिया। बेट्टी ने उसी साल एम्सटर्डम ओलिंपिक के लिए क्लालीफाई भी कर लिया और सौ मीटर दौड़ में वह अमेरिका की पहली ओलिंपिक स्वर्ण पदक विजेता बनीं। 

लेकिन सन 1931 में किस्मत ने उनके साथ बड़ा भद्दा मजाक किया। हवाई यात्रा के दौरान हुए हादसे में उनकी पैर और बांह की हड्डियां टूट गईं। डॉक्टरों ने कहा कि अब वह चल नहीं पाएंगी। लेकिन बेट्टी ने हार नहीं मानी। पहले उन्होंने चलना शुरू किया, फिर दौड़ना। चार साल बाद बर्लिन ओलिंपिक में फिर दौड़ी और दूसरा स्वर्ण पदक हासिल किया। अमेरिका के खेल जगत में उनका नाम बड़े सम्मान से आज भी लिया जाता है।

हरियाणा ने कायम की सबसे कम पराली जलाने की मिसाल

अशोक मिश्र

हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर में जैसे-जैसे ठंड बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे प्रदूषण की समस्या भी बढ़ती जाती है। पिछले कई वर्षों का अनुभव बताता है कि जब प्रदेश में कोहरा गिरने लगता है, तब प्रदूषण की समस्या और गहरा जाती है। ठंड के दिनों में हरियाणा ही नहीं, बल्कि पूरा उत्तर भारत प्रदूषण की चपेट में आ जाता है। अभी राज्य में प्रदूषण की स्थिति अन्य वर्षों की अपेक्षा संतोषजनक कही जा सकती है, लेकिन भविष्य में हालात ऐसे ही रहेंगे, ऐसी उम्मीद कम ही है। 

इसी आशंका को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के कृषि एवं कल्याण मंत्री श्याम सिंह राणा ने संबंधित विभाग के अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा है कि वह इस बार भी पराली जलाने के मामले में पूरी निगरानी रखें और पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए। यदि कोई किसान अपने खेत में पराली जलाता हुआ पाया गया, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। 

इतना ही नहीं, उसको मंडियों में दो सीजन अनाज बेचने के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। इस स्थिति से बचने के लिए मंत्री राणा ने किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए पूरे प्रदेश 9036 नोडल अधिकारियों को तैनात किए हैं। यह नोडल अधिकारी गांवों में तैनात किए गए हैं जो गांव के किसानों पर अपनी नजर रखेंगे। यदि कोई किसान पराली जलाता पाया गया, तो उसके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई करेंगे। प्रत्येक नोडल अधिकारी के जिम्मे गांव के पचास किसान होंगे। यदि किसान और संबंधित अधिकारी समन्वय स्थापित करके काम करें, तो न केवल वायु की गुणवत्ता सुधारी जा सकती है, बल्कि किसानों को भी फायदा पहुंचाया जा सकता है। 

प्रदेश सरकार ने पराली न जलाने वाले किसानों को प्रति एकड़ अच्छी खासी रकम देने का भी प्रावधान किया है। प्रदेश सरकार ने किसानों को धान की सीधी बिजाई के लिए आठ हजार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से अनुदान देने का भी प्रावधान कर रखा है। सीधी बिजाई वाली धान की फसल पर बीमारी का प्रकोप भी कम होता है। किसान को लाभ भी अच्छा होता है। फसल अवशेष प्रबंधन भी सहजता से हो सकता है। वैसे संतोष की बात यह है कि पिछले साल की अपेक्षा इस साल पराली जलाने की घटना में 95 प्रतिशत की कमी आई है। 

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल अक्टूबर में पूरे राज्य में पराली जलाने की 150 घटनाएं प्रकाश में आई थीं, लेकिन इस बार अक्टूबर के पहले हफ्ते में केवल सात घटनाएं पराली जलाने की पता चली हैं। हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे प्रदेशों में पिछले साल और इस साल भी सबसे कम पराली जलाने की घटनाएं सामने आई हैं। यह एक अच्छी मिसाल कायम की है हरियाणा ने।

गायन को ही भक्ति मानते थे पंडित छन्नूलाल मिश्र

अखिलेश मिश्र

आयरलैंड में भारत के राजदूत

स्व. पंडित छन्नूलाल मिश्र से मेरा साक्षात्कार केवल एक बार ही हुआ था, जब भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् के महानिदेशक के रूप में 2019 में वाराणसी यात्रा के बीच पंडित जी के प्रति उनकी अप्रतिम भारतीय संगीत साधना और संस्कृति की आजीवन सेवा के लिए कृतज्ञता और आभार व्यक्त करने गया था बनारसी फक्कड़पन की अनौपचारिता के आकर, मैं अपनी अर्धांगिनी रीति के साथ अपने बाल्यकाल के मित्र ललित कुमार मालवीय और उनकी धर्मपत्नी  को साथ लेकर मुलाकात का समय पूर्व निर्धारित किये बिना ही पंडित छन्नूलाल मिश्र के आवास पर आ धमका। चारों बिन बुलाये, अपरिचित अतिथियों का पंडित जी ने अत्यन्त सहजता एवं  आत्मीयता स्वागत किया और स्नेहपूर्वक अपने पारिवारिक अक्षयपात्र से सबके लिए बनारसी कचौड़ी और गुलाबजामुन भी प्रस्तुत किया। कुछ सुनने की इच्छा व्यक्त करने पर छन्नूलाल ने डाँटते हुए सा कहा, अरे, खाना हो या गाना दोनों ही उचित समय और स्थिति में, श्रद्धापूर्वक, शांतचित्त होने पर शोभा देते हैं। मनमाने समय और तरीके से, जब-तब, जो कुछ भी, मनमर्जी से खाना और गाना उचित नहीं। 

फिर मैंने ट्रैक-2 डिप्लोमेसी को अपनाया और समसामयिक सांस्कृतिक परिवेश और परिवर्तन,  उनकी अपनी प्रेरणास्पद जीवन यात्रा, संगीत की अनेक विधाओं और विविध कथ्य विषयों पर उनकी अदभुत पकड़ तथा तुलसी, कबीर की रचनाओं; हिंदी, भोजपुरी, अवधी, ब्रजभाषा के साहित्य तथा शिव, राम और कृष्ण भक्ति भावनाओं को जनसामान्य के कल्याण के लिए प्रस्तुत करने में अभूतपूर्ण सफलता पर परिचर्चा प्रारम्भ  की। इस चर्चा में लगभग डेढ़ घंटे कैसे बीत गए कुछ पता ही नहीं चला। बिन मांगे ही पंडित जी से उनके कई लोकप्रिय रामचरित मानस के दोहे-चौपाइयों के साथ चैती, कजरी, होरी आदि के टुकड़े भी सस्वर सुनने का सौभाग्य मिल गया। वे मधुर स्वर अभी तक अत:करण में संचित हैं।

पंडित जी गायकी की प्रगल्भता के पीछे उनकी दार्शनिकता,  लोक साहित्य का  गम्भीर ज्ञान रहा है। उनकी यह दृढ़ मान्यता थी कलाओं में, विषेशत: संगीत को शास्त्रीय, अर्द्धशास्त्रीय, ग्राम्य  और वनवासी श्रेणियों; भाषाओं और बोलियों; विविध शैलियों के स्वरूप के आधार पर; खंडित कर उनमें भेद, ऊँच-नीच आरोपित करना अनुचित है। कोरी अज्ञानता और मानसिक क्षुद्रता का द्योतक है। भारतीय पारम्परिक संस्कृति और सामाजिक चेतना में समस्त पुरुषार्थों की प्राप्ति के उपाय, सभी प्रकार की सृजनशक्ति, भौतिक संरचनायें और बौद्धिक सर्जना, साहित्य, संगीत, कला, आध्यात्मिक चिन्तन-मनन की प्रक्रियाएं परस्पर निर्भर, जालवत  जुड़ी-बुनी हुई हैं। वे सभी प्रभाव से, पूरे समाज को, विभिन स्तरों पर  ओत-प्रोत  किये हुए हैं। यह ऐक्य-परिदृश्य भारत की पारम्परिक लौकिक दैनन्दिन जीवन यापन में सबसे स्पष्ट रूप से अनुभव होता है। दुर्भाग्य से अंग्रेजी शासकों द्वारा थोपी गई मैकाले की अंग्रेजी-शिक्षा ने भारतीय समाज में शताब्दियों से चली आ रही सर्व समावेशी, सौहार्द्रपूर्ण और साहचर्य की प्रवृत्ति को छिन्न भिन्न कर, अलग-अलग, छोटी-छोटी, परिधियों में घेर रखा है। 

गायन भी भारतीय ऋषियों और तत्वदर्शियों के लिए केवल कंठ और मुख तक सीमित नहीं है, बल्कि उसके चार स्तरों की परिकल्पना की गई है परा, पश्यन्ती, मध्यमा और वैखरी। इनमें केवल अंतिम स्तर पर, 'वैखरी' में ही, ध्वनि 'मुखरित' होकर श्रव्य बनती है। शेष प्रथम तीन स्तिथियां आतंरिक हैं, जहाँ न भाषा का भेद होता है और न शास्त्रीय-लोक सांगीतिक लक्षणों का; न उत्तरी-दक्षिणी गायन पद्धतियों, न ही विविध घरानों की गायन परम्पराओं और अभिव्यक्ति की शैलियों (जैसे ख्याल, कजरी, चैती, ठुमरी आदि) के नाम पर ही विभेद करने की कोई सम्भावना रहती है। परा-स्वरूप में तो सब एकमेवं अद्वितीयं की वास्तविकता ही विद्यमान होती है।

इसी कारण पंडित जी जब अपनी मस्ती में रमकर स्वान्त:सुखाय जब भी गाते थे, चाहे अवधी, हिंदी, भोजपुरी, ब्रज या संस्कृत में; चाहे किसी भी रस को मूल मानकर आरम्भ करें, धीरे-धीरे अंदर डूबते-डूबते सभी अन्तत: एकरस और एकभाव, भक्तिमय हो जाते थे।

यद्यपि जन्म का मृत्यु के साथ अटूट, अपरिहार्य सम्बन्ध है किन्तु सत्य-साधकों और भक्तों को शरीर की नश्वरता को लेकर भय नहीं होता क्योंकि उनके परोपकार-प्रेरित कृतित्व के यशःकाय को जरा-मृत्यु की त्रासदी नहीं सताती। जैसे जलबिन्दु अपनी लघुता के कारण क्षणिक अस्तित्व वाला होता हुआ भी जब महासागर में मिलकर विशालता और अमृतत्व  प्राप्त करता है उसी प्रकार एक भक्त, साधक भी घट के नाश होने पर घटाकाश के अनन्त-आकाश में मिल जाने की तरह देह की सीमा को त्याग कर शिव-सायुज्य में सच्चिदानंद की सातत्य का अनुभव करता है।

सभी भारतीयों, विषेशतः बनारस के संगीत प्रेमियों की ओर से, जिनके सबके लिए  पंडित छन्नूलालमिश्र जी' अपने परिवार के सदस्य जैसे ही थे', उनकी स्मृति-शेष और प्रेरणास्पद अक्षयकीर्ति को सादर प्रणाम और हार्दिक श्रद्धांजलि।

बूंद समाना समुंद में जानत है सब कोई,

समुंद समाना बूंद में बूझे विरला कोई।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

Wednesday, October 8, 2025

नहीं मांगी इब्राहिम खान गार्दी ने माफी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

इब्राहिम खान गार्दी का जीवन वतनपरस्ती और वफादारी की एक बेमिसाल  गाथा की तरह है। उनकी मृत्यु 14 जनवरी 1764 को ईरानी लुटेरे अहमदशाह अब्दाली की कैद में हुई थी। अब्दाली ने उनके शरीर के टुकड़े करवा दिए थे। गार्दी ने पांडिचेरी के फ्रांसीसी गवर्नर डे ला गार्डे टू डे बुस्सी से सैन्य प्रशिक्षण हासिल किया था। वह फ्रेंच भाषा के भी जानकार हो गए थे। इब्राहिम गार्दी सबसे पहले निजाम हैदराबाद के यहां काम करते थे। 

निजाम हैदराबाद की कुल सेना दो हजार सैनिकों की थी। लेकिन सन 1760 में उन्होंने मराठा साम्राज्य के पेशवा की सेना में काम करना मंजूर कर लिया। वह तोपखाने के इंचार्ज के साथ-साथ दस हजार सैनिकों के सेनापति बनाए गए। पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को ईरानी लुटेरे अहमदशाह अब्दाली के हाथों करारी शिकस्त मिली और गार्दी को ईरानी सेना ने गिरफ्तार कर लिया। 

एक दिन गार्दी को अब्दाली के सामने पेश किया गया। अब्दाली ने गार्दी से पूछा कि तुमने निजाम हैदराबाद की नौकरी क्यों छोड़ दी। गार्दी ने जवाब दिया कि उनका व्यवहार उचित नहीं था। तब अब्दाली ने कहा कि तुमने मुसलमान होकर फिरंगी जुबान सीखी और मराठों का साथ दिया। तुम्हें माफ कर दूंगा अगर तुम माफी मांग लो। गार्दी ने पूछा कि मैं किस बात की माफी मांगूं? 

अब्दाली को गुस्सा आया, उसने कहा कि तुम जानते हो किसके सामने खड़े हो? गार्दी का तीखा जवाब था-ईरानी लुटेरे के सामने। अब्दाली ने कहा कि अफसोस है कि तुमने मुसलमान होकर जिंदगी बर्बाद कर ली। गार्दी का जवाब था कि जो अपने मुल्क से विश्वासघात करे, बेगुनाहों का खून बहाए, वह मुसलमान हो ही नहीं सकता है। यह जवाब सुनकर अब्दाली बहुत क्रोधित हुआ। इसके बाद इब्राहिम खान गार्दी को मार दिया गया।

दायित्व ग्रहण समारोह में एकता का संदेश देने में कांग्रेसी सफल

अशोक मिश्र

हरियाणा कांग्रेस इस बार एकता का संदेश देने में सफल रही। चंडीगढ़ में नवनियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह के दायित्व ग्रहण समारोह में जैसी आशा थी, सभी गुटों के नेता और कार्यकर्ता शामिल हुए। अच्छी बात यह है कि जब से राव नरेंद्र सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा हुई है, तब से एकाध को छोड़कर किसी ने भी कांग्रेस हाईकमान के फैसले पर कोई टीका टिप्पणी नहीं की है। 

निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष उदयभान को जब प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, तब हुड्डा गुट को छोड़कर कांग्रेस के दूसरे गुटों ने खूब टीका टिप्पणी की थी। तब यह भी सवाल उठाया गया था कि उदयभान अपनी कार्यकारिणी बना भी पाएंगे या नहीं? अपने पूरे कार्यकाल में उदयभान सिर्फकहने को प्रदेश अध्यक्ष बनकर रह गए थे। ठीक से कार्यकारिणी भी गठित नहीं कर पाए थे। 

इस बार कांग्रेस हाईकमान ने सभी जिला अध्यक्षों की नियुक्ति पहले ही कर दी है। इसके लिए बाकायदा लोगों से आवेदन मांगे गए और उनमें से जिसका कद और जनता में पकड़ सबसे अच्छा माना गया, उसे जिला अध्यक्ष नियुक्त किया जा चुका है। अब कांग्रेस अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह को अपनी कार्यकारिणी गठित करनी है। सोमवार को चंडीगढ़ में प्रदेश अध्यक्ष के दायित्व ग्रहण समारोह में जिस तरह लोगों की भीड़ जुटी, उससे इस बात का संकेत मिलता है कि कांग्रेस के नेताओं ने गुटबाजी से होने वाले नुकसान को अच्छी तरह से समझ लिया है। 

दायित्व ग्रहण समारोह में पूर्व सीएम और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा, प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह, कांग्रेस महासचिव और राज्यसभा सदस्य रणदीप सुर्जेवाला के साथ-साथ निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष उदयभान भी मौजूद रहे। जहां तक कुमारी सैलजा की बात है, वह इन दिनों विदेश यात्रा पर हैं। उनका कार्यक्रम पहले से ही तय था। लेकिन उनके गुट के समझे जाने वाले विधायक और अन्य नेता भी इस समारोह में मौजूद रहे। 

इसका एक कारण यह भी माना जा सकता है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने हरियाणा विधानसभा में पराजय मिलने के बाद ही कड़े शब्दों में राज्य के नेताओं से गुटबाजी से बाज आने की चेतावनी दी थी। हरियाणा कांग्रेस की जब भी बात उठी, उन्होंने यही कहा कि जिसको कांग्रेस में रहना है, वह रहे, नहीं तो निकल जाए। जो भी कांग्रेस में रहेगा, उसे अनुशासन में ही रहना होगा। 

कांग्रेसियों में यह जो एकता दिखाई दे रही है, वह राहुल गांधी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की कठोर चेतावनी का भी असर हो सकता है। हां, कैप्टन अजय यादव, पूर्व विधायक राव दान सिंह और पूर्व विधानसभा स्पीकर कुलदीप शर्मा जरूर समारोह से नदारद रहे। इनके समारोह में न आने से कोई विशेष फर्क पड़ने वाला नहीं है।

Tuesday, October 7, 2025

कोई नहीं आ पाया गड्ढे से बाहर

 अशोक मिश्र

हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि संघे शक्ति कलयुगे। कलयुग में एकता में ही शक्ति निहित है। यदि इंसान मिलकर काम करे, तो वह विपरीत परिस्थितियों को भी अनुकूल बना सकता है। मिलकर रहने से अपने साथ-साथ दूसरों के विकास का भी मौका मिलता है। लेकिन अपनी क्षुद्रताओं में फंसा हुआ व्यक्ति इन सब बातों पर कहां गौर कर पाता है। यही वजह है कि उसे जीवन में वह स्थान हासिल नहीं होता है, जो उसे मिलना चाहिए। 

इस संबंध में एक बड़ी रोचक कथा है। एक राजा के मन में यह विचार आया कि वह अपने राज्य के प्रतिभाशाली लोगों की पहचान करे। राजा काफी दयालु और प्रजापालक था। वह प्रतिभावान लोगों की मदद भी बहुत करता था। उसने अपनी इच्छा जब अपने मंत्री को बताई, तो मंत्री ने कहा कि वैसे तो अपने राज्य में प्रतिभाशाली लोगों की कमी नहीं है, लेकिन वह एक दूसरे की टांग खींचते हैं जिससे कोई सफल नहीं होता है। 

राजा ने इस बात पर असहमति जताई तो मंत्री ने कहा कि वह साबित कर देगा। मंत्री ने अगले दिन एक बड़े से मैदान में बहुत बड़ा गड्ढा खुदवाया और उसमें बीस प्रतिभावान लोगों को उतार दिया। मंत्री ने घोषणा की कि इन बीस लोगों में से जो बाहर आ जाएगा, उसे आधा राज्य दे दिया जाएगा। प्रतियोगिता शुरू हुए सुबह से शाम हो गई, लेकिन कोई बाहर नहीं आ पाया। राजा उस कौतुक को देखकर आश्चर्य चकित हुआ। 

बाद में सीढ़ी लगाकर सबको बाहर निकाला गया। तब मंत्री ने कहा कि देखा महाराज! ऐसा ही होता है। जैसे ही कोई बाहर आने को होता था, बाकी उन्नीस लोग उसकी टांग पकड़कर गड्ढे में खींच लेते थे। यदि यह लोग चाहते तो आपस में सलाह करके किसी एक को बाहर आने दे सकते थे और पुरस्कार आपस में बांट सकते थे। राजा अपने मंत्री की बात मान गया। उसने किसी को पुरस्कार नहीं दिया और सबको लौटा दिया।

दबे पांव हरियाणा में फैलता जा रहा कैंसर का खतरा

अशोक मिश्र

हरियाणा में कैंसर के मामले बढ़ते जा रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक हर दो घंटे में एक कैंसर रोगी की मौत हो रही है। पुरुष में मुंह और महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा और स्तन कैंसर प्रमुख है। सबसे चिंताजनक बात यह पता चला है कि बच्चों में भी कैंसर पाया जाने लगा है। कैंसर पीड़ित बच्चों में रोग का पता तब चलता है, जब वह खतरनाक स्थिति में पहुंच जाता है। 

आमतौर पर लोगों में यह धारणा फैली हुई है कि बच्चों को कैंसर जैसी घातक बीमारी नहीं होती है। अपनी इसी गलत धारणा के चलते वह बच्चे का वजन घटने, पेट में दर्द होने जैसी कई तरह की समस्याओं को मामूली समझकर टालते रहते हैं। बच्चे का गंभीरता से जांच नहीं करवाते हैं। ऐसी स्थिति में जब रोग गंभीर हो जाता है, तब वह डॉक्टर के पास पहुंचते हैं। ऐसी स्थिति में रोगी का उपचार बहुत कठिन हो जाता है। हरियाणा में सबसे ज्यादा कैंसर रोगी बच्चे और वयस्क मेवात क्षेत्र में पाए जा रहे हैं। 

इसमें भी सबसे ज्यादा बच्चे और वयस्क ब्लड कैंसर यानी ल्यूकेमिया के पाए गए हैं। इस तरह के रोगियों में लगातार बुखार, एनीमिया, शरीर में गांठें उभरना, अचानक वजन का घटने जैसे लक्षण उभरते हैं। लोग बच्चों और वयस्कों में इस तरह के लक्षण उभरने पर गंभीरता से नहीं लेते हैं। दरअसल, हरियाणा में सबसे ज्यादा कैंसर रोगियों के मिलने के पीछे जल और वायु प्रदूषण प्रमुख कारण हैं। 

राज्य में सबसे ज्यादा कैंसर  रोगी यमुना नदी बेल्ट में पाए गए हैं। फरीदाबाद और घग्गर नदी बेल्ट के सिरसा, फतेहाबाद, कैथल, नूंह और अंबाला जिलों में यह बीमारी तेजी से फैल रही है। पिछली फरवरी में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर एक टास्क फोर्स गठित किया गया था। फोर्स ने यमुना और घग्गर नदी में जगह-जगह सैंपल लिए थे। इन सैंपलों की जांच करने पर टास्क फोर्स ने नदी जल में जहरीले तत्व पाए थे। यह जहरीले तत्व इंसान की सेहत के लिए बेहद खतरनाक हैं। 

नदियों में औद्योगिक घरानों से डाला गया केमिकल लोगों को जीवन पर भारी पड़ता जा रहा है। कल-कारखाने अपने यहां से निकलने वाला औद्योगिक कचरा सीधे नदियों में डाल रहे हैं। नदियों का पानी ही फसलों की सिंचाई से लेकर पीने में उपयोग किया जा रहा है। शोधित करने के बावजूद कुछ न कुछ विषैला केमिकल पानी में रह ही जाता है। यही विषैला पानी लोगों के जीवन को खतरे में डाल रहा है। इससे अलावा लोगों की अव्यवस्थित जीवनशैली, पर्यावरण की समस्याएं और जागरूकता की कमी के कारण भी पांच में से एक पुरुष और आठ में से एक महिला को कैंसर का खतरा है। तंबाकू का सेवन (धूम्रपान या गुटखा) कैंसर का सबसे प्रमुख कारण है, जो लगभग 40 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार है।

हमला करके सारे नोबल पुरस्कार छीन न लें ट्रंप

व्यंग्य

अशोक मिश्र

कल उस्ताद गुनाहगार चौराहे पर मिल गए। थोड़े उदास से लग रहे थे। मैने उन्हें आवाज दी, लेकिन उन्होंने सुना नहीं। वह अपने में ही खोए हुए भागे चले जा रहे थे। मैंने अपनी चाल बढ़ाते हुए आखिरकार उन्हें घेर ही लिया। मुझे देखते ही वह अचकचा उठे। मैंने लपककर उनके चरण स्पर्श किए, तो वह गदगद हो उठे। तपाक से बोले, तुम्हें भी साहित्य का नोबल पुरस्कार मिले। मैं उनकी बात सुनकर चौंक उठा। 

मैंने पूछ ही लिया-‘उस्ताद! तुम्हें भी का क्या मतलब है। किसी और को भी नोबल पुरस्कार मिलने जा रहा है क्या? वैसे उस्ताद, एक बात बता दूं। मुझे कोई नोबल-वोबल मिलने वाला नहीं है। अरे, आज तक किसी गली-कूचे की साहित्यिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक संस्था ने मुझे दो कौड़ी का पुरस्कार देने योग्य नहीं समझा, तो भला नोबल-शोबल की बात ही क्या कही जाए। लेकिन एक बात बताइए क्या सचमुच अपने देश में किसी को नोबल पुरस्कार मिलने जा रहा है क्या?’

मेरी बात सुनकर उस्ताद मुजरिम के चेहरे की उदासी थोड़ी छंटी। वह होंठों को तनिक वक्र कर मुस्कुराए और बोले, नोबल पुरस्कार वाले मुझे जेबतराशी (पाकेटमारी) की कला के लिए नोबल देना चाहते हैं। लेकिन मैं लेना नहीं चाहता हूं। बीस साल पहले मैंने नोबल वालों से गुजारिश की थी कि वह उस्ताद मुजरिम जैसे जेबतराश की कला का सम्मान करते हुए उन्हें नोबल दिया जाए, लेकिन तब यही नोबल वाली कमेटी ने बहुत नाक-भौं सिकोड़ा था। 

अब वह मुझे जेबतराशी का नोबल पुरस्कार मुझे देना चाहते हैं। उस्ताद मुजरिम जैसे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ जेब तराश के आगे मुझ जैसे मामूली आदमी की क्या बिसात है। जब हमारे उस्तादों के उस्ताद मुजरिम को नोबल नहीं दिया, तो अब नोबल लेने मेरा ठेंगा जाए। इतना कहते हुए उस्ताद गुनाहगार हांफने लगे।

मैंने तत्काल उनके पांव पकड़ लिया। कहा, अरे उस्ताद! ऐसा जुर्म मत कीजिए। जेबतराश कला को उच्चतम ऊंचाई तक ले जाने वाले दुनिया के एकमात्र उस्ताद आप ही बचे हैं। उस्ताद मुजरिम भी अब नहीं रहे। कम से कम आप तो इस कला को उसका सम्मान दिला दीजिए। एक आप हैं कि नोबल आपके हाथों में धरा जा रहा है और एक ट्रंप है जो शांति का नोबल छीन लेना चाहता है। 

ट्रंप दुनिया भर में घूम-घूमकर यह कहते फिर रहे हैं कि मैंने सात युद्ध रुकवा दिए हैं। भारत-पाक में सीजफायर करवा दिया है। अब उसकी बात को कोई सुन भी नहीं रहा है। एक ही चुटकुले पर कोई कितनी बार हंसेगा। लेकिन नहीं, ट्रंप नोबल दे दो, नोबल दे दो की रट लगाए हुए हैं। जिस दिन नोबल पुरस्कार बांटे जाएंगे, मुझे तो भय है कि उस दिन ट्रंप अपने लड़ाकू विमानों में सैनिक भेजकर सारे पुरस्कार छिनवा न ले और कह दे कि सारे मेडल मेरे हैं और मैं ही रखूंगा।

मेरी बात सुनते ही गुनाहगार ने मुंह बिचकाते हुए कहा कि ट्रंपवा तो लुच्चा है। हां, ऐसा कर सकता है। वैसे उसकी आत्मा तब तक शरीर नहीं छोड़ने वाली है जब तक उसे नोबल पुरस्कार मिल नहीं जाता है। मुझे तो डर इस बात का है कि कहीं ऐसा न हो, नोबल पुरस्कार कमेटी के लोगों पर टैरिफ लगा दे। नोबल कमेटी वालों ने सांस लिया, तो उस पर 35 प्रतिशत टैरिफ, यह वह हाजत के लिए गए तो उस पर 22 प्रतिशत टैरिफ लगेगा। भले ही यह सारी क्रियाएं वह अपने ही देश में करें। 

यदि वह बीयर खरीदते हैं, तो उस पर 45 प्रतिशत टैरिफ, वाइन पर 48 प्रतिशत टैरिफ। कहने के मतलब है कि नोबल कमेटी वालों के खाने, पीने, रहने और अन्य क्रियाओं पर भी वह टैरिफ लगा सकता है। वह तो एकदम पगलैट है। पगलैटी में वह पूरी दुनिया का नुकसान तो कर ही रहा है, अमेरिका को भी गहरे गड्ढे में धकेल रहा है। मैंने उस्ताद गुनाहगार का हाथ पकड़कर चाय की ठेली पर लाया और कहा, छोड़िए न ट्रंप को। नोबल पुरस्कार कब मिल रहा है? उस्ताद ने कहा, कभी नहीं। मैंने मना कर दिया है चौर्य नोबल पुरस्कार लेने से।

Monday, October 6, 2025

पहले जमीन को तो जान लो

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अबू अब्दल्लाह मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज्मी ईरान के बहुत प्रख्यात भूगोलवेत्ता, भूगर्भशास्त्री और गणितज्ञ थे। उनका जन्म 780 ईस्वी में हुआ माना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने अपनी पुस्तक में भारतीय अंकों और दशमलव प्रणाली का जिक्र किया है। इसके बाद ही अरब देशों में भारतीय अंकों और दाशमिक मान प्रणाली का प्रचलन हुआ। 

यह भी कहा जाता है कि एलजेब्रा की शुरुआत भी इन्होंने की थी। यह अपने समय में जोतिष का ज्ञान रखने वाले सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति थे। इनके जीवन की एक बड़ी रोचक घटना बताई जाती है। कहते हैं कि यह तारों की गति देखकर जीवन के बारे में बता दिया करते थे। एक बार रात में वह तारों को देखते हुए कहीं जा रहे थे। वह तारों को देखने में इतने मगन थे कि उन्हें सामने पड़ने वाले गड्ढे का भी ध्यान नहीं रहा। 

वह तारों को देखने की झोंक में बड़े से गड्ढे में जा गिरे।  रात का समय दूर-दूर तक कोई इंसान नहीं था। वह रात भर ‘मुझे गड्ढे से बाहर निकालो’ की गुहार लगाते रहे। लेकिन किसी ने उनकी आवाज नहीं सुनी। आसपास कोई होता, तब न सुनते। सुबह उस रास्ते से बुजुर्ग महिला गुजरी, तो उसने उनकी गुहार सुनी। वह किसी तरह उनको निकालने का प्रयास करती रही। 

काफी मशक्कत के बाद वह गड्ढे से बाहर निकल पाए। उन्होंने शुक्रिया कहा। फिर उस बुजुर्ग महिला से बोले, मैं तारों को देखकर किसी के भी जीवन के बारे में बता सकता हूं। तब उस बुजुर्ग महिला ने कहा कि जो आदमी जमीन में बना गड्ढा नहीं देख पाया, वह तारों को देखकर भला क्या बता पाएगा। पहले जमीन को तो जान लो। अल-ख़्वारिज्मी को यह बात चुभ गई। उन्होंने जमीन के बारे में जानना शुरू किया और एक दिन वह ईरान के सबसे बड़े भूगर्भशास्त्री बन गए। महिला की एक बात ने उनका जीवन बदल दिया।