बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
फ्रांस के महान साहित्यकार थे विक्टर मैरी ह्यूगो। कहा जाता है कि 1885 में जब उनकी मृत्यु हुई, तब वह 83 साल के थे। उनकी शव यात्रा में इतने लोग शामिल हुए थे कि उस सदी में दुनिया के किसी भी व्यक्ति की शवयात्रा में उतने लोग शामिल नहीं हुए थे। ह्यूगो ने 16 साल की उम्र में कविता लिखकर अच्छी खासी ख्याति अर्जित कर ली थी। ह्यूगो जब 25 साल के थे, तब उनकी ख्याति साहित्यकार के रूप में पूरे फ्रांस में हो चुकी थी। पूरा फ्रांस उनके लेखन का दीवाना था। उनकी प्रसिद्ध कृतियों में उपन्यास 'नोत्रे-देम दी पेरिस (1831) और ले मिजेर्बल्स (1862) शामिल हैं। वह रोमांटिक कवि, उपन्यासकार, नाटककार, पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में पहचाने गए थे। कहते हैं कि अपने जीवन के शुरुआती दौर में वह राजशाही के प्रबल समर्थक थे, लेकिन बाद में वह लोकतांत्रिक व्यवस्था के पक्षधर हो गए थे।
एक बार की बात है। वह अपने घर के बाहर सड़क पर टहल रहे थे। तभी उन्हें कंपकपाती सी आवाज सुनाई दी। एक छोटा सा बच्चा उनके सामने खड़ा कह रहा था कि मैंने कई दिनों से भरपेट खाना नहीं खाया है। क्या आप मेरी कुछ मदद कर सकते हैं। ह्यूगो ने अपनी जेब टटोली। उसमें एक सिक्का पड़ा हुआ था। यह सिक्का उनके एक बहुत जरूरी काम के लिए था।
उन्होंने जेब से सिक्का निकाला और उस बच्चे के चेहरे को गौर से देखते हुए उसकी हथेली पर सिक्का रख दिया। सिक्का देखकर बच्चे की आंखों में चमक आ गई। उन्होंने कहा कि जीवन में कभी किसी को निराश मत करना। अपनी जेब का एकमात्र सिक्का उस बच्चे को देने के बाद जो सुकून महसूस हुआ, वह अद्भुत था।

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