Saturday, December 20, 2025

पिता ने पुत्र को दिया यशस्वी होने का आशीर्वाद

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

विख्यात कवि और साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर को बंगाल में सांस्कृतिक नवजागरण का पुरोधा माना जाता है। वह बचपन से ही बैरिस्टर बनना चाहते थे। उनका नाम भी लंदन विश्वविद्यालय में लिखवाया गया था, लेकिन बाद में वह डिग्री लिए बिना ही भारत लौट आए थे। 

टैगोर के पिता काफी समृद्ध थे। टैगोर के भाई बहन सरकारी सेवा, साहित्य आदि क्षेत्रों में अपना नाम कमा रहे थे। उनकी मां का देहांत बचपन में ही हो गया था। रवींद्रनाथ के पिता देवेंद्रनाथ घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे। उनका ज्यादातर समय घूमने-फिरने में ही लगा रहता था। देवेंद्रनाथ अपने बेटों की प्रतिभा के कायल थे। लेकिन उन्हें रवींद्रनाथ के प्रति कुछ ज्यादा ही स्नेह था। सन 1905 में उनके पिता अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे, तो एक दिन शाम को उन्होंने अपने बेटे रवींद्रनाथ से कहा कि तुम कोई भक्ति गीत सुनाओ जिससे मन को शांति का अनुभव हो। 

पुत्र रवींद्रनाथ ने अपने पिता की आज्ञा मानी और एक कविता पेश की। उस कविता में आत्मा का मौन, ईश्वर की शांति और समर्पण जैसे तमाम भावनाएं व्यक्त की गई थीं। रवींद्रनाथ ने कई गीत सुनाए और इतने तन्मय होकर सुनाए कि उनके पिता की आंखों में आंसू आ गए। यह देखकर रवींद्रनाथ की भी आंखें नम हो गईं। वह जान गए कि पिता से उनके विछोह का समय नजदीक है। 

पिता ने अपने पुत्र के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा कि आज तुमने इतना अच्छा गाया कि मन प्रफुल्लित हो गया। मैं तुमको ईनाम देना चाहता हूं। इतना कहकर उन्होंने रवींद्रनाथ को सौ रुपये का पुरस्कार दिया। उस समय सौ रुपये की बहुत बड़ी कीमत हुआ करती थी। पिता ने पुत्र को यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया।

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