अशोक मिश्र
स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर ही रहूँगा का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1857 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के चिखली गांव में हुआ था। यह अंग्रेजी शिक्षा के सबसे बड़े विरोधी थे। तिलक का मानना था कि अंग्रेजी शिक्षा हमें अपनी सभ्यता और परंपराओं का अनादर करना सिखाती है। शिक्षा पूरी होने के बाद जब वह राजनीतिक क्षेत्र में उतरे तो उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली। लेकिन कुछ ही दिनों में वह कांग्रेस के ढुलमुलवादी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे।
सन 1907 में कांग्रेस आंतरिक रूप से दो भागों में विभक्त हो गई। एक को गरम दल और दूसरे को नरम दल कहा गया। विपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय के साथ उन्होंने गरम दल का नेतृत्व संभाला। कांग्रेस में इस तिकड़ी को पाल-बाल-लाल कहा जाता था। यह किस्सा तब का है, जब वह छोटे थे और स्कूल में पढ़ते थे।
स्कूल में कुछ बच्चों ने मूंगफली खाई और उसका छिलका क्लास में ही छितरा दिया। जब क्लास टीचर आए तो वह गंदगी देखकर बहुत नाराज हुए। उन्होंने सभी बच्चों से पूछा कि यह गंदगी किसने की है? किसी भी बच्चे ने जवाब नहीं दिया। तब टीचर ने कहा कि यदि किसी ने नाम नहीं बताया, तो सबको सजा होगी।
टीचर ने सभी बच्चों को दो-दो छड़ी लगाई। जब तिलक का नंबर आया, तो उन्होंने कहा कि मार नहीं खाऊंगा। टीचर ने कहा कि तो उसका नाम बताओ जिसने गंदगी फैलाई है। तिलक ने कहा कि मैं उसका नाम नहीं लूंगा। मैंने गंदगी नहीं फैलाई है, इसलिए मार भी नहीं खाऊंगा। टीचर ने इसकी शिकायत प्रिंसिपल से की। तिलक के पिता से उनकी शिकायत की गई, लेकिन तिलक अपनी बात से टस से मस नहीं हुए।
No comments:
Post a Comment