Tuesday, June 17, 2025

जलियांवाला बाग कांड की बाहर आई सच्चाई

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जलियांवाला बाग म्यूजियम में चेट्टूर शंकरन नायर की प्रतिमा लगी हुई है। कहा जाता है कि इसी प्रतिमा के सामने ब्रिटेन की महारानी और उनके प्रधानमंत्री ने हाथ जोड़कर उनके योगदान
को स्वीकार किया था। शंकरन नायर का जन्म 11 जुलाई 1857 में पलक्कड़ जिले के मनकारा गांव में हुआ था। इनके पिता मम्मायिल रामुन्नी पणिक्कर ब्रिटिश शासनकाल में तहसीलदार थे। 

नायर को 1897 में कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाया गया था। नायर ने मद्रास लॉ कालेज से कानून की डिग्री हासिल की थी। बाद में उन्होंने विभिन्न सरकारी पदों पर कार्य किया। सन 1902 में लार्ड कर्जन ने उन्हें रैले विश्वविद्यालय आयोग का सचिव नियुक्त किया। बाद में वह भारतीय वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड की परिषद के सदस्य चुने गए। लेकिन 13 अप्रैल 1919 में जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ, तो उनकी आत्मा ने उन्हें झकझोर दिया। उन्होंने वायसराय परिषद से इस्तीफा दे दिया। 

उनके इस्तीफा देने के बाद ही दुनिया भर में जलियांवाला बाग हत्याकांड की असलियत बाहर आई। हंटर कमेटी का गठन हुआ। इसका नतीजा यह हुआ कि जलियांवाला बाग कांड के लिए जिम्मेदार जनरल ओ डायर को पदावनत कर दिया गया और अंतत: उसे अपने पद से त्यागपत्र भी देना पड़ा। बाद में शंकरन नायर ने एक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने जनरल डायर को हत्याकांड का दोषी बताया। लंदन में रह रहे डायर ने उन पर मुकदमा कर दिया। लंदन में मुकदमा चला। 

न्यायाधीश के पूर्वाग्रह के कारण शंकरन नायर मुकदमा जरूर हार गए, लेकिन दुनिया भर को अंग्रेजी शासन की हकीकत बताने में काफी हद तक सफल भी हो गए। सन 1934 में 77 वर्ष की आयु में शंकरन नायर की मृत्यु हो गई।

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