Saturday, June 14, 2025

दूसरे के लिए पादरी कोल्बे ने दे दी जान

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

पादरी मैक्सिमिलियन कोल्बे का जन्म 1894 में पोलैंड में हुआ था। कोल्बे ने जीवन भर दया, क्षमा और त्याग जैसी भावनाओं का जीवन भर प्रचार प्रसार किया। कोल्बे ने धर्मशास्त्र का अध्ययन किया था और बाद में वह पादरी बन गए थे। वर्जिन मैरी के प्रति समर्पित मिलिशिया इमैकुलाटा नामक संगठन की स्थापना की थी। वह पोलैंड में काफी लोकप्रिय पादरी थे। लेकिन उन्हें जर्मनी के तानाशाह हिटलर की नाजी कैंप में अपनी जान गंवानी पड़ी थी। 

बात द्वितीय विश्व महायुद्ध की है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने पोलैंड पर हमला करके उस पर अपना अधिकार जमा लिया था। हिटलर ने पोलैंड के कुछ प्रमुख लोगों को कैद कर लिया था। इन कैदियों को उसने आॅशविट्ज एकाग्रता शिविर में कैद कर दिया था। इन कैदियों के साथ हिटलर के कैंप अधिकारी बहुत बुरा बर्ताव किया करते थे। उन्हीं दिनों शिविर से एक कैदी भाग गया। अधिकारियों ने उसे बहुत खोजा, लेकिन उसका कहीं कोई अता-पता नहीं लगा। 

इस पर अधिकारियों ने फैसला किया कि यदि भागा हुआ कैदी लौटकर नहीं आता, तब तक दस कैदियों को मौत की सजा दी जाएगी। अधिकारियों ने दस कैदी को छांटा और उन्हें एक लाइन में खड़ा कर दिया। उसमें से एक कैदी बहुत ज्यादा रो रहा था। उसने अधिकारियों से लाख विनती की कि उसके छोटे-छोटे बच्चे हैं। उनकी देखभाल करने वाला कोई दूसरा नहीं है। 

वह उस पर रहम करें। लेकिन अधिकारी नहीं माने। तब पादरी कोल्बे आगे आए और उन्होंने कहा कि आपको दस लोगों को मौत की सजा देनी है, तो मैं इस आदमी के बदले सजा भुगतने को तैयार हूं। अधिकारी मान गए। कोल्बे को अधिकारियों ने मरने के लिए एक कमरे में छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद उनकी भूख-प्यास से मौत हो गई। कैथोलिक चर्च ने 1982 में उन्हें संत घोषित किया।

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