अशोक मिश्र
शेरे पंजाब के नाम से मशहूर महाराजा रणजीत सिंह ने कई रियासतों में बंटे पंजाब को एकजुट करके एक सूत्र में बांधने का काम किया था। उनका जन्म 13 नवंबर 1780 में गुजरांवाला में हुआ था। इनके पिता महाराजा महा सिंह सुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। जब रणजीत सिंह केवल बारह साल के थे, तभी इनके पिता की मौत हो गई। राजकाज का बोझ कम उम्र में ही इनके कंधे पर आ पड़ा। इतने कठिन दायित्व का बोझ कंधे पर आने के बाद भी वे घबड़ाए नहीं।
उन्होंने धीरे-धीरे पंजाब की अन्य रियासतों को संगठित करना शुरू किया। इन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाई लेकिन बाद में उन्होंने अमृतसर को राजधानी बनाकर अफगानों के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। उन दिनों महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की सीमाएं अफगानिस्तान तक फैली हुई थीं। इन सीमाओं पर अफगानी लुटेरे हमला करके लूटपाट करते थे और भाग जाते थे।
एक बार की बात है। पंजाब के सीमावर्ती इलाकों पर अफगानी लुटेरों ने हमला किया और खूब आतंक मचाया। जब यह बात रणजीत सिंह को पता चली तो उन्होंने सेनापति को बुलाकर पूछा कि ऐसा क्यों हुआ? सेनापति ने कहा कि अफगान लुटेरे डेढ़ हजार थे और हमारे सैनिक केवल डेढ़ सौ। इस वजह से लूटपाट हुई। रणजीत सिंह ने डेढ़ सौ सैनिक के काफिले के साथ अफगानिस्तान सीमा पर पहुंचकर हमला किया।
इतने कम सैनिकों के बावजूद रणजीत सिंह और उनके सैनिक डेढ़ हजार अफगान लुटेरों पर भारी पड़े। अफगान लुटेरे जान बचाकर भागने को मजबूर हुए। तब रणजीत सिंह ने सेनापति से कहा कि कोई भी जंग सैनिकों की संख्या से नहीं, साहस और आत्मबल के भरोसे जीती जाती है। यह सुनकर सेनापति खूब शर्मिंदा हुआ।
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