Monday, November 24, 2025

हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में आई कमी सराहनीय

अशोक मिश्र

हरियाणा सरकार का अगले दो वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं को शून्य पर लाने का लक्ष्य है। पराली जलाने के मामले में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिले काफी बदनाम थे। लेकिन संतोष की बात यह है कि हरियाणा सरकार के प्रयास से पराली जलाने की घटनाएं पिछले दो-तीन साल से लगातार घटती जा रही हैं। इस बार गुरुग्राम, महेंद्रगढ़ और रेवाड़ी में पराली जलाने की एक भी घटना प्रकाश में नहीं आई है। इन जिलों के किसानों ने पूरे प्रदेश के सामने अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। 

इसके लिए जितनी प्रशंसा की जाए, उतना ही कम है। यही हाल रहा तो यह उम्मीद की जा सकती है कि निकट भविष्य में राज्य में एक भी घटना पराली जलाने की सामने नहीं आएगी। इस साल इस लक्ष्य में जींद, फतेहाबाद और हिसार के किसान बहुत पिछड़े हैं। इन जिलों में पराली जलाने की घटनाएं हुई हैं जिससे राज्य सरकार काफी चिंतित है। हां, राहत की बात यह है कि फरीदाबाद, अंबाला, करनाल, कुरुक्षेत्र, सिरसा और कैथल जैसे जिलों में किसानों ने कम पराली जलाई है। 

यदि किसान थोड़ा और जागरूक हो जाएं, तो प्रदेश में प्रदूषण की समस्या को बिलकुल खत्म किया जा सकता है। पराली जलाने के मामले में नूंह ने विपरीत कार्य किया है। पिछले पांच साल में नूंह में पराली जलाने की एक भी घटना सामने नहीं आई थी, लेकिन इस बार एक किसान ने अपने खेतों में पराली जलाकर यह रिकार्ड तोड़ दिया। अगर प्रदेश स्तर पर पराली जलाने की बात की जाए, तो पिछले कई सालों के मुकाबले पचास प्रतिशत पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं। 

पिछले साल जहां 21 नवंबर तक प्रदेश में 1193 स्थानों पर पराली जलाने की घटनाएं प्रकाश में आई थीं, वहीं इस साल 21 नवंबर तक 603 घटनाएं हुई हैं। यह सही है कि पूरे उत्तर भारत में जो प्रदूषण है, उसमें पराली जलाने से पैदा हुआ प्रदूषण कुल प्रदूषण का केवल दस प्रतिशत ही है। लेकिन यदि इस दस प्रतिशत प्रदूषण पर रोक लगा दी जाए तो प्रदूषण के दूसरे कारकों पर भी ध्यान देने का मौका मिल जाएगा। पिछले कुछ दिनों से हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण इतना ज्यादा है कि लोगों का दम घुटने लगा है। ब्रेन स्ट्रोक और हार्ट अटैक के मामले बढ़ते जा रहे हैं। 

इसका कारण भी दिनोंदिन बढ़ता प्रदूषण है। खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके प्रदूषण के चलते हर साल काफी संख्या में लोगों की असमय मौत हो रही है। इस मौत का आंकड़ा किसी खाते में दर्ज नहीं हो रहा है। यदि इन मौतों को रोकना है, तो सभी को सामूहिक प्रयास करना होगा। यह जिम्मेदारी केवल राज्य सरकार या न्यायायल की ही नहीं है, यह देश और प्रदेश के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। सरकार केवल संसाधन मुहैया करा सकती है, उसको प्रयोग में लाना नागरिकों की जिम्ेदारी है।

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