बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
विजय नगर के राजाओं में सर्वाधिक कीर्ति हासिल करने वाले सम्राट कृष्णदेव राय खुद एक अच्छे कवि थे। उनके दरबार में साहित्यकारों, कलाकारों और विभिन्न कलाओं में पारंगत विद्वानों का बहुत आदर होता था। तमिल भाषा में लिखा उनका काव्य अमुक्तमाल्यद साहित्य की एक बहुमूल्य धरोहर है। कृष्णदेव राय का जन्म 17 जनवरी 1471 को हुआ था। इनके शासनकाल में पुर्तगाली भारत के पश्चिमी तट तक आ पहुंचे थे।
सम्राट कृष्णदेवराय ने अनेक प्रसादों, मंदिरों, मंडपों और गोपुरों का निर्माण करवाया। रामस्वामीमंदिर के शिलाफलकों पर प्रस्तुत रामायण के दृश्य दर्शनीय हैं। एक बार की बात है। कृष्णदेव राय हाथी पर चढ़कर कहीं जा रहे थे। संयोग से उसी समय उसी रास्ते पर राजकवि की सवारी आ रही थी। राजकवि की पालकी को चार आदमी कंधों पर ढोकर ला रहे थे।
राजकवि की पालकी जब नजदीक आ गई तो राजा कृष्णदेव राय ने अपने हाथी को रुकवाया और हाथी से उतर पड़े। वह पालकी की ओर बढ़े, तो वहां उपस्थित जनसमुदाय आश्चर्य से अपने राजा को देखने लगा। वास्तव में जब राजा कृष्णदेव राय इस तरह की यात्राओं पर निकलते थे, तो जानकारी मिलने पर जनसमुदाय उनके दर्शन के लिए आ जुटता था। कृष्णदेव राय ने चार में से एक आदमी को हटाया और उसकी जगह पालकी को लेकर चलने लगे।
शोर सुनकर राजकवि को लगा कि कुछ गड़बड़ है। वह पालकी से बाहर निकले, तो राजा को पालकी उठाता देख बोले, महाराज! आप यह क्या कर रहे हैं? राजा ने कहा कि इतिहास में हो सकता है कि मैं एक सामान्य राजा के रूप में याद किया जाऊं। मेरा राज्य अस्थिर है। लेकिन आपका शब्द साम्राज्य सदियों तक रहेगा। इतिहास में मुझे कम से कम राजकवि की पालकी ढोने वाले राजा के रूप में तो याद किया जाएगा।
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