अशोक मिश्रइन दिनों पूरे उत्तर भारत में कोहरा पड़ने लगा है। इस कोहरे के कारण जहां रात और सुबह सड़क हादसों की घटनाएं बढ़ गई हैं, वहीं कोहरे के चलते रबी की फसलों को भी नुकसान पहुंचने की आशंका पैदा हो गई है। आमतौर पर दिसंबर के आखिरी पखवाड़े से लेकर फरवरी के पहले पखवाड़े तक उत्तर भारत में जमकर पाला पड़ता है। रबी की फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान कोहरे, स्मॉग और पाले से होता है। कोहरे और स्मॉग के मुकाबले में पाला ज्यादा नुकसानदायक होता है। इससे फसल के पौधों की पत्तियों और तनों पर ओस की बूंदें जमा हो जाती हैं। यह जमी हुई बूंदें पत्तियों और तनों की कोशिकाओं को काफी नुकसान पहुंचाती हैं। इसकी वजह से पौधा मरने लगता है। पत्तियां पीली पड़कर झड़ जाती हैं।
हरियाणा में भी पिछले चार-पांच दिनों से कोहरा छाने लगा है। इसकी वजह से सब्जियों, दलहनी और तिलहनी फसलों के पौधों को नुकसान पहुंचने की आशंका पैदा हो गई है। आने वाले कुछ ही दिनों बाद प्रदेश में पाला गिरना भी शुरू हो सकता है। ऐसी अवस्था में यदि किसान पहले से ही पाले से फसलों की सुरक्षा के उपाय करें, तो होने वाले संभावित नुकसान को कम किया जा सकता है। किसानों को चाहिए कि वह गंधक के तेजाब के 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव फूल आने से पहले फसलों पर करें, तो लगभग एक पखवाड़े के लिए फसलों की सुरक्षा पाले से हो सकती है।
इस छिड़काव के चलते पाले की बूंदें पत्तियों और तनों को नुकसान नहीं पहुंचा पाती हैं। जरूरत महसूस हो, तो किसान इसी प्रक्रिया को दो से तीन बार दोहरा सकते हैं। प्रदेश के किसान पाले और कोहरे को लेकर पहले से ही आशंकित हैं। पिछली फसल भी बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा के चलते काफी बरबाद हो गई थी। खेतों में पानी भर जाने की वजह से रबी फसलों की बुआई भी थोड़ी बहुत पिछड़ गई थी। ऐसी स्थिति में यदि पाला गिरता है, तो फसल को अधिक नुकसान होने की आशंका है।
कुछ किसान यदि फूल आने से पहले पाले से फसलों को बचाने का उपाय नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें थायोयूरिया का छिड़काव तब करना चाहिए, जब आधी फसलों पर पुष्प आ गए हों। इससे नुकसान को कम करने में मदद मिलेगी। इससे भी पहले किसानों को चाहिए, जब उन्हें पाला गिरने की आशंका हो, तो वह खेतों की हल्की सिंचाई कर दें। खेत में पानी या नमी होने पर फसलों पर पाले का असर बिल्कुल कम होगा।
इससे फायदा यह होगा कि खेत का तापमान संतुलित रहेगा। इसके अलावा किसान बहुत मजबूरी में खेत के आसपास के कूड़ा-करकट को इकट्ठा करके जला सकते हैं। इससे धुंआ पैदा होगा और पत्तियों पर ओस की बूंदें जमा नहीं होंगी। हालांकि ऐसा करना कतई उचित नहीं होगा। धुंआ करने से प्रदूषण बढ़ेगा।
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