Saturday, March 29, 2025

खंभे से चौपड़ हार गए महादेव गोविंद रानाडे

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

ब्रिटिश शासनकाल में भारतीय न्यायधीशों में सबसे ज्यादा न्यायप्रिय महादेव गोविंद रानाडे को माना जाता है। अंग्रेजों ने उन्हें राय बहादुर के खिताब से नवाजा था। वह बाम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश होने के साथ-साथ लेखक और समाज सुधारक भी थे। उनका जन्म 18 जनवरी 1842 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में हुआ था। 

महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए महादेव गोविंद रानाडे ने अपनी प्राथमिक शिक्षा कोल्हापुर के एक मराठी स्कूल में हासिल की थी। उसके बाद वह अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने के लिए भेजे गए थे। 1864 में उन्होंने इतिहास से एमए पास किया था और 1866 में एलएलबी की डिग्री हासिल की थी। उनके बचपन का एक किस्सा बहुत मशहूर है। 

कहते हैं कि तब गोविंद रानाडे की उम्र आठ साल थी। उन्हें चौपड़ खेलने का बहुत शौक था। एक दिन जब उन्हें खेलने के लिए दूसरा कोई साथी नहीं मिला, तो वह बरामदे में बने खंभे (पिलर) को अपना दूसरा साथी मानते हुए दायें हाथ से उसका पासा फेंकने लगे और बाएं हाथ से अपना पासा फेंकते थे। खेल शुरू हुआ। इस बीच एक बच्चे को अकेला चौपड़ खेलते देखकर लोग दूर खड़े होकर तमाशा देखने लगे। 

रानाडे ने दायें हाथ से खंभे का पासा फेंका। उसके बाद अपने बायें हाथ से अपने हिस्से का। खेल काफी रोचक हो गया था, लेकिन कुछ देर बाद वह उस खेल में हार गए। दूर खड़े एक व्यक्ति ने उनसे कहा कि तुम तो खंभे से हार गए। उन्होंने कहा कि हां, बायें हाथ से पासा फेंकने में दिक्कत होती थी। 

तब लोगों ने कहा कि तुमने अपना पासा दायें हाथ से क्यों नहीं फेंका। रानाडे ने जवाब दिया कि तब मैं बेइमान कहा जाता। यह सुनकर लोग आश्चर्यचकित रह गए कि इतना छोटा होने के बावजूद न्याय की बात करता है।



No comments:

Post a Comment