बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
स्वामी सहजानंद सरस्वती को भारत में किसान आंदोलन का जन्मदाता माना जाता है। उनका एक सर्वप्रिय नारा था-मेरा डंडा जिंदाबाद। सन 1909 को उन्होंने काशी के दशाश्वमेघ घाट पर दंडी संन्यासी के रूप में दंडी स्वामी अद्वैतानंद से दीक्षा ली और उनका नाम पड़ा स्वामी सहजानंद सरस्वती।
वैसे उनके बचपन का नाम नौरंग राय था। स्वामी सहजानंद ने बिहार और उत्तर प्रदेश में घूम-घूमकर किसानों को अंग्रेजों के खिलाफ संगठित किया। वह पढ़ाई में बहुत तेज थे। उन्होंने छह साल की पढ़ाई को तीन साल में पूरा किया और हमेशा अव्वल रहे।
बाद में उन्हें छात्रवृत्ति मिली और गाजीपुर के जर्मन मिशन हाईस्कूल में पढ़ने गए। वहां बाइबिल पढ़ना अनिवार्य था। बाइबिल पढ़ाने का काम पादरी करते थे। उनकी कक्षा में जब पादरी बाइबिल पढ़ाने आता, तो वह हिंदू धर्म की बुराई करता रहता था।
एक दिन नौरंग राय यानी स्वामी सहजानंद को हिंदू धर्म की बुराई सहन नहीं हुई। वह गरजते हुए बोले, आप बाइबिल पढ़ाएं, इससे मुझे कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन दूसरे धर्म की बुराई न करें। दूसरे धर्म की बुराई करके आप अपने धर्म को श्रेष्ठ नहीं बता सकते है। यह सुनकर पादरी बहुत नाराज हुआ। उसने उन्हें अनुशासनहीन और उद्दंड कहकर कक्षा में बैठने को मजबूर कर दिया।
नौरंग राय बैठ तो गए, लेकिन इससे पादरी को ईसाई धर्म के श्रेष्ठ होने का भ्रम टूट गया। उस दिन के बाद उसने कभी किसी दूसरे धर्म की बुराई नहीं की। बाद में स्वामी सहजानंद ने किसानों और क्रांतिकारियों को संगठित करने का भी काम किया। वह सक्रिय रूप से तो किसानों के पक्ष में नहीं आए, लेकिन कांग्रेस में रहते हुए भी उनका समर्थन क्रांतिकारियों को हासिल था। स्वामी सहजानंद ने किसानों को संगठित किया।
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