Sunday, March 23, 2025

अभी अधूरे हैं शहीदों की शहादत के लक्ष्य

अशोक मिश्र

आज शहीद दिवस है। आज ही के दिन ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’ नामक पुस्तिका लिखकर अपनी नास्तिकता का सगर्व उद्घोष करने वाले शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह, उनके अनन्य साथी शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई थी। दुनिया के सबसे लंबे समय तक चलने वाले भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान कितने लोगों ने अपनी जान की पूर्णाहुति दी, इसकी गणना अब शायद संभव नहीं है। लेकिन स्वाधीनता संग्राम में अपने प्राण न्यौछावर करने वाले असंख्य वीरों केशहादत दिवसों पर उनकी प्रतिमाओं और तस्वीरों पर फूल माला चढ़ाकर हाथ जोड़ लेने से ही हमारे कर्तव्य की पूर्ति नहीं हो जाती है।

आज जब भगत सिंह, चंद्र शेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां वारसी, ठाकुर रोशन सिंह, राजगुरु और सुखदेव थापर जैसे न जाने कितने शहीदों की शहादत दिवसों पर सरकारी और गैर सरकारी आयोजनों में उनका महिमांडन करके देवपुरुष साबित करने का प्रयास तो किया जाता है, लेकिन यह सवाल कोई नहीं उठाता है कि क्या इन क्रांतिकारियों की शहादत का लक्ष्य पूरा हुआ? क्या सैकड़ों क्रांतिकारियों ने आज के भारत के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए थे?

शायद नहीं। याद करें, अपनी फांसी से मात्र तीन दिन पहले यानी 20 मार्च 1931 को पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सर जेफ्री फिट्जहर्वे डी मोंटमोरेंसी को लिखे पत्र में उन्होंने साफतौर पर लिखा था कि हम पर युद्ध अपराधी होने का आरोप ब्रिटिश हुकूमत ने लगाया है। हम मानते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी जब तक इंसान इंसान का गुलाम रहेगा। आज  शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार कर रखा है। चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूँजीपति और अंग्रेज या सर्वथा भारतीय ही हों, उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी कर रखी है। चाहे शुद्ध भारतीय पूँजीपतियों के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा हो तो भी इस स्थिति में कोई अंतर नहीं पड़ता।

उनके इस पत्र से साफ जाहिर है कि वह एक ऐसे समाज की रचना करना चाहते थे जिसमें मानव द्वारा मानव का रक्त शोषण संभव न हो। 24 मार्च 1902 को बैरिस्टर प्रमथ नाथ मित्र के नेतृत्व में गठित अनुशीलन समिति ने अपने गठन के कुछ साल के बाद अपना लक्ष्य घोषित किया था-मनुष्य में मनुष्यत्व विकसित करना। चूंकि गुलामी में ऐसा करना संभव नहीं था। इसलिए अनुशीलन समिति ने अपना तात्कालिक लक्ष्य ब्रिटिश दासता से मुक्ति घोषित किया था। 

अनुशीलन समिति की एक शाखा के रूप में पूरे उत्तर भारत में सक्रिय हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी (बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी) के नेता चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, योगेश चंद्र चटर्जी, राम प्रसाद बिस्मिल आदि ने दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में द रिवोल्यूशनरी नाम से अपना घोषणा पत्र जारी करके कहा कि क्रांतिकारियों का तात्कालिक लक्ष्य ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति है। लेकिन उनका अंतिम लक्ष्य ऐसे समाज की रचना करना है जिसमें कोई किसी का गुलाम न रहे। 

समाज में शोषण, दोहन, गुलामी आदि की कोई गुंजाइश ही न रहे। किंतु इसे इतिहास की विडंबना ही कही जाएगी कि ‘गरीबों को मिले रोटी, तो मेरी जान सस्ती है’ का उद्घोष करने वाले अमर क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद की 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में शहादत हुई और उसके अगले ही महीने विप्लवी दर्शन से लैस सरदार भगत सिंह और उनके दो साथियों राजगुरु और सुखदेव थापर को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। इसके बाद जो कुछ हुआ उस इतिहास से सारा देश परिचित है। 






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