Saturday, March 22, 2025

नीतीश कुमार के बेटे पर टिकी भाजपा, राजद की निगाहें

 अशोक मिश्र

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शायद इन दिनों सबसे ज्यादा दुविधाग्रस्त हैं। उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव के बाद उभरने वाले राजनीतिक परिदृश्य को लेकर चिंता तो है ही, वह अपने बेटे निशांत कुमार के भविष्य को लेकर भी कहीं न कहीं चिंतित हैं। बढ़ती उम्र भी उनके लिए एक समस्या बनी हुई है जिसका मुद्दा बार-बार उभारकर आरजेडी नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव बिहार की राजनीति में उनके अप्रासंगिक होने का संकेत देते रहते हैं। जब भी बात नीतीश कुमार के बेटे निशांत की आती है, तो वह उनके राजनीति में आने का स्वागत करते हैं। सच तो यह प्रतीत होता है कि आरजेडी ही नहीं, बिहार की सक्रिय राजनीति में निशांत कुमार के आने का इंतजार भाजपा भी कर रही है। यदि ऐसा होता है, तो चुनाव बाद यदि भाजपा बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा चुनाव में 122 सीटों पर जीत हासिल नहीं कर पाती है, तो वह अपना मुख्यमंत्री बनाकर डिप्टी सीएम का पद निशांत को देकर सरकार बना सकती है। भाजपा   को पूर्ण बहुमत उसी दशा में मिल सकता है, जब जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल का प्रदर्शन आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान खराब रहे।

जनता दल यूनाइटेड के सामने समस्या यह है कि नीतीश कुमार अपनी उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुके हैं, जहां पहले की तरह सक्रिय रह पाना शारीरिक रूप से संभव नहीं दिखाई पड़ रहा है। हालांकि जदयू ने यह नारा जरूर दिया है कि नव वर्ष 2025, 2025 से 2030 फिर से नीतीश, लेकिन इस मुद्दे पर भाजपा सहमत होगी, यह अभी नहीं कहा जा सकता है। हालांकि नए नारे से जदयू ने यह संकेत दे दिया है कि उसे नीतीश के अलावा दूसरा मुख्यमंत्री स्वीकार नहीं है। एनडीए गठबंधन में मुख्यमंत्री पद मिलने को लेकर जदयू भी पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। उसके सामने महाराष्ट्र का उदाहरण मौजूद है। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में चुनाव लड़ने के बाद भाजपा ने अपना सीएम बनाया और शिंदे को डिप्टी सीएम बनने को मजबूर कर दिया।

ऐसी स्थिति में पिछले बीस-बाइस साल से मुख्यमंत्री पद पर काबिज नीतीश कुमार डिप्टी सीएम पद पर मान जाएंगे, ऐसा कतई नहीं लगता है। हां, यदि नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार राजनीति में सक्रिय होते हैं, तो उन्हें आगे करके डिप्टी सीएम पद पर समझौता किया जा सकता है। वैसे जनता दल यूनाइटेड में भी यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि यदि चुनाव से पहले निशांत कुमार राजनीति में सक्रिय नहीं होते हैं, तो पार्टी में बिखराव तय है। इस संभावित बिखराव को सिर्फ निशांत की सक्रियता ही रोक सकती है। निशांत के सक्रिय न होने से जदयू में जो भगदड़ मचेगी, उसे रोक पाना किसी के वश की बात नहीं होगी।

राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव बार-बार नीतीश कुमार और निशांत कुमार पर डोरे उसी समीकरण को ध्यान में रखकर डाल रहे हैं जिस समीकरण के सहारे भाजपा अपने कील-कांटे दुरुस्त कर रही है। यदि इंडिया गठबंधन को पूर्ण बहुमत से कम सीटें मिलीं, तो नीतीश कुमार को अपने पाले में लाकर निशांत को डिप्टी सीएम पद सौंपा जा सकता है।

बहरहाल, बिहार की पूरी राजनीति में एक अजीब सी आपाधापी मची हुई है। एनडीए में भाजपा और जदयू एक दूसरे को परखने के लिए तैयार दिखाई देते हैं, तो वहीं इंडिया गठबंधन में कांग्रेस बिहार में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश करके राजद के सामने चुनौती बनकर खड़ी होने की कोशिश कर रही है। जिस प्रकार कन्हैया कुमार के नेतृत्व में ‘पलायन रोको नौकरी दो’ पदयात्रा निकाली जा रही है, उससे राजद में बेचैनी है। भले ही राजद ने इस बारे में कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है, लेकिन अंदर ही अंदर कांग्रेस की यह पहल उसे बेचैन किए हुए है। यदि यह मान लें कि पदयात्रा से कांग्रेस का जनाधार बढ़ता है, तो वह किसके वोट बैंक में सेंध लगाएगी? यह समझा जा सकता है।



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