बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
आजकल लोग अगर एक दर्जन केला भी किसी व्यक्ति को दान करते हैं, तो उसकी फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर डालते हुए संकोच नहीं करते हैं। सोशल मीडिया पर बहुत सारी तस्वीरें और समाचार इस किस्म के देखने को मिल जाते हैं। लोग अस्पतालों में जाकर कुछ मरीजों को खाने का सामान देते हैं और उसका फिर प्रचार करते हैं। लेकिन हमारे देश में न जाने कितने ऐसे लोग भी पैदा हुए हैं जिन्होंने अपने जीवन भर की कमाई दूसरों की भलाई में लगा दी, लेकिन किसी को भनक तक नहीं लगने दिया।
ऐसे ही थे ईश्वर चंद्र विद्यासागर। उन्होंने जीवन भर बाल विवाह जैसी कुप्रथा के विरोध में झंडा बुलंद किया। उन्होंने विधवा विवाह की वकालत की। एक बार की बात है। वह कहीं जा रहे थे। उन्होंने देखा कि एक बुजुर्ग सड़क के किनारे परेशान सा बैठा है।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर को उत्सुकता हुई। वह उस बुजुर्ग के पास जाकर बोले-बाबा! कुछ परेशान सा दिख रहे हो। क्या बात है?
उस वृद्ध ने उन्हें टालने की कोशिश की, तो विद्यासागर ने कहा कि आप मुझे अपनी परेशानी बताइए। शायद मैं आपकी मदद कर सकूं।
उस बुजुर्ग ने कहा कि मैंने एक सेठ से बेटी की शादी के लिए कर्ज लिया था। गरीब आदमी हूं। उसका कर्जा नहीं चुका पाया। अब उस आदमी ने मुकदमा कर दिया है।
विद्यासागर ने उसके मुकदमे की तारीख, कर्ज की रकम आदि पूछी और चले गए। मुकदमे के दिन वह बुजुर्ग कचेहरी पहुंचा और एक किनारे बैठ गया। काफी देर बाद भी जब उसके नाम की गुहार नहीं लगी, तो उसने वहां के लोगों से पूछताछ की। पता चला कि उसके कर्ज की रकम चुका दी गई है और उसका मुकदमा खारिज हो गया है। यह सुनकर बुजुर्ग ने कर्ज चुकाने वाले के बारे में पता किया, तो मालूम हुआ कि यह वही युवक है जो उस दिन उससे सारी बातें पूछ रहा था।
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