Friday, March 21, 2025

किताबों के तस्कर थे जुर्गिस बिलिनिस

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जुर्गिस बिलिनिस को किताबों का तस्कर कहा जाता है। उनका जन्म 16 मार्च 1846 को लिथुआनिया के सर्फ परिवार में हुआ था। उन दिनों लिथुआनिया रूसी साम्राज्य का हिस्सा था। रूसी शासक जार ने उन दिनों लिथुआनिया में लिथुआनियाई भाषा की पुस्तकों को पढ़ने-लिखने पर प्रतिबंध लगा रखी थी। जो भी पढ़ाई लिखाई होती थी, वह रूसी भाषा में ही होती थी। 

लेकिन लिथुआनिया के लोग अपनी भाषा में पुस्तकें पढ़ना चाहते थे। बाइस साल की उम्र तक बिलिनिस अनपढ़ रहे। सन 1860 में उनके पिता की मृत्यु हो गई, तो उन्हें अपने भाई-बहनों की जिम्मेदारी उठाने पर मजबूर होना पड़ा। इतना ही नहीं, उनके पिता जिस जमीन पर खेती करते थे, वह भी छोड़नी पड़ी। 22 साल की उम्र में उनमें पढ़ने की ललक पैदा हुई, तो वह गांव से शहर आए।

 रास्ते में लुटेरों ने उनकी जमा-पूंजी लूट ली। अब बिलिनिस के सामने कोई चारा नहीं बचा। तब एक राहगीर ने उन्हें सुझाव दिया कि यदि वह पढ़ना चाहते हैं, तो वे एक काम कर सकते हैं जिससे उन्हें अच्छी आमदनी होगी और वह अपनी पढ़ाई कर सकते हैं। बस फिर क्या था? उन्होंने लिथुआनियाई भाषा की पुस्तकों को रूस से लाकर लिथुआनिया में बेचना शुरू कर दिया। 

हालांकि इसमें उन्हें खतरा भी बहुत था। यदि लिथुआनियाई भाषा की पुस्तकों को बेचते या पढ़ते पाए जाते, तो जारशाही उन्हें कठोर दंड देती। उन्होंने 32 साल तक पुस्तकों की तस्करी की यानी लिथुआनियाई भाषा की पुस्तकों को लाकर बेचा। वह इस काम को किसी भी तरह गलत नहीं मानते थे। लिथुआनिया के लोग इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे कि पढ़ने-लिखने से ही वह अपने देश को रूस से आजाद करा सकते हैं।



No comments:

Post a Comment