बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
महाराजा विक्रमादित्य के बारे में हमारे देश में कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं। इनमें से कुछ तो अविश्वसनीय प्रतीत होती हैं। जैसे एक कथा उनकी हरसिद्धि रहस्य के बारे में हैं। कथा के अनुसार, वह हर बारह साल में अपना सिर हरसिद्धि देवी को अर्पित कर देते थे। कहते हैं कि देवी के आशीर्वाद से हर बार उनका सिर फिर जुड़ जाता था। विक्रमादित्य के बारे में सिंहासन बत्तीसी नामक पुस्तक में भी कुछ जानकारियां मिलती हैं जो उनके सिंहासन में बनी हुई बत्तीस पुतलियों ने सुनाई हैं। प्राचीन ग्रंथों में जो जानकारी मिलती है, उसके अनुसार विक्रमादित्य बहुत पराक्रमी राजा थे और उन्होंने शकों को पराजित करके अपने साम्राज्य का बहुत ज्यादा विस्तार कर लिया था। वह न्यायप्रिय और प्रजापालक राजा थे। वह वेष बदलकर अपने राज्य में घूमते रहते थे और दीन-दुखियों की समस्याओं का निराकरण करते रहते थे। एक बार की बात है, वह अपनी राजधानी उज्जैन में अपने गुरु से बातचीत कर रहे थे। उसी समय उन्होंने अपने गुरु से कहा कि आप मुझे कुछ ऐसा मंत्र या सूत्र बताएं जिससे मुझे और मेरी आगे की पीढ़ियों को प्रजा की भलाई करने की प्रेरणा मिलती रहे।विक्रमादित्य ने गुरु जी द्वारा बताई गई बातों को सिंहासन में मढ़वा दिया। एक दिन कार्य की व्यस्तता की वजह से कोई कल्याणकारी काम नहीं कर पाए। रात को जब पूरे दिन के कामों का स्मरण किया, तो उन्हें बड़ी ग्लानि हुई। रात को राजा को नींद भी नहीं आई। आधी रात को विक्रमादित्य अपने महल से बार निकले। देखा कि एक व्यक्ति सर्दी में ठिठुर रहा है। उन्होंने अपना दुशाला उसे ओढ़ाया और महल में लाकर उसी सेवा-सुश्रुषा की। तब जाकर उन्हें नींद आाई।

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