Tuesday, December 23, 2025

सूरजकुंड मेले में दिखेगी भारतीय संस्कृति और शिल्पकला की झलक



अशोक मिश्र

मेला लगाने की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। सदियों से देश के हर गांव और शहर में कोस-दो कोस पर लगने वाले मेले भारतीय संस्कृति के आदान-प्रदान के स्रोत हुआ करते थे। ये मेले लोगों के आपस में मिलने और एक दूसरे का हालचाल जानने का जरिया भी हुआ करता था। गांव और शहर के लोग इन मेलों में अपने दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं की खरीदारी करते थे और मेले में आने वाले अपने रिश्तेदारों से इसी बहाने मुलाकात भी कर लिया करते थे। दूसरे रिश्तेदारों का हालचाल भी उन्हें मालूम हो जाता था। लेकिन जैसे-जैसे आवागमन के साधन बढ़े, नगरीय सभ्यता का प्रभाव गांवों तक पहुंचा, मेलों का आयोजन खत्म होने लगा। 

एक तरह से मेलों की प्रासंगिकता खत्म होने लगी। लेकिन हरियाणा में हस्तशिल्प, धार्मिक और सांस्कृतिक मेलों की परंपरा किसी न किसी रूप में अभी तक विद्यमान है। आगामी 31 जनवरी से 15 फरवरी तक फरीदाबाद के सूरज कुंड पर लगने वाले अंतर्राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले की तैयारियां इन दिनों बड़े जोरशोर से हो रही हैं। सूरज कुंड मेले में विदेश और देश के विभिन्न राज्यों के कलाकार, संस्कृति कर्मी, शिल्पकार और नागरिक शामिल होंगे। हर बार मेले की एक थीम हुआ करती है। इस बार भी मेले में पर्यावरण संरक्षण, प्रकृति प्रेम, स्वच्छता अभियान, राष्ट्र प्रेम, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, जल संरक्षण जैसे सरोकार पर आधारित रंगोली तथा चित्रकला प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। 

देशभक्ति और कला-संस्कृति से जुड़ी गायन और नृत्य प्रतियोगिताएं भी होंगी। जिला शिक्षा विभाग के सहयोग से मेला परिसर स्थित नाट्यशाला में विद्यार्थियों के लिए विभिन्न प्रतियोगिताएं होंगी। इस दौरान होने वाली विभिन्न प्रतियोगिताओं में प्रतिदिन अलग-अलग स्कूलों के 300 से अधिक बच्चों को प्रतिभा प्रदर्शन का अवसर प्रदान किया जाएगा। हरियाणा पर्यटन निगम का उद्देश्य है कि बच्चों को प्रतिभा प्रदर्शन के साथ ही सामाजिक सरोकार से भी जोड़ा जाए। बच्चों की प्रस्तुति से मेले में आने वाले पर्यटकों तक भी सामाजिक सरोकार का संदेश जाएगा। मेले में भाग लेने के लिए देश-विदेश से कलाकारों और शिल्पकारों को आमंत्रित किया गया है। 

यह कलाकार और शिल्पकार अपनी अनूठी कला, संस्कृति और परंपराओं का सूरजकुंड मेले में आए लोगों के सामने प्रदर्शन करेंगे। यहां आने वाले शिल्पकार आदि और आम नागरिक एक दूसरे की कला, संस्कृति और परंपराओं से परिचित होंगे। यहां विभिन्न देशों की वेशभूषा, लोककला आदि प्रदर्शित की जाएगी। सचमुच, हर साल आयोजित होने वाला यह मेला सूरजकुंड की ऐतिहासिकता को भी प्रकट करती है। वैसे तो सूरजकुंड का इतिहास दसवीं शताब्दी से जुड़ा है। तोमर वंश के शासक  सूरजपाल ने इस कुंड का निर्माण करवाया था।

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