Tuesday, December 23, 2025

शार्गिद ने जीवन भर उस्ताद का कहा माना


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अलाउद्दीन खान का जन्म 1862 ईस्वी में बंगाल (अब बांग्लादेश) के ब्राह्मणबारिया जिले के शिवपुर में हुआ था। मैहर घराने की नींव रखने वाले विश्व प्रसिद्ध सरोदवादक उस्ताद अलाउद्दीन खान को बीसवीं सदी का सबसे महान संगीतकार माना जाता है। उन्होंने कई नए रागों की रचना की थी। एक साधारण मुस्लिम बंगाली परिवार में जन्म लेने वाले अलाउद्दीन खान पंडित रवि शंकर, निखिल बनर्जी, पन्नालाल घोष, वसंत राय, बहादुर राय आदि सफल संगीतकारों के गुरु भी रहे। 

अलाउद्दीन खान ने अपने जीवन में कई गुरुओं से संगीत की शिक्षा ली। उन्होंने कड़ी मेहनत के बाद मशहूर वीणावादक रामपुर के वजीर खाँ से भी संगीत के गुर सीखे। कहा जाता है कि जब अलाउद्दीन वजीर खां को अपना गुरु बनाने पहुंचे, तो पहले उन्होंने मना कर दिया। वह वजीर खां को कई दिनों तक मनाते रहे, लेकिन आखिर में वे वजीर खां की बग्घी के नीचे लेट गए और कहा कि आप मुझे अपना शार्गिद बना लीजिए। नहीं तो मुझ पर अपनी बग्घी चढ़ा दीजिए। 

वजीर खां मान गए। उन्होंने वीणा सिखाना शुरू किया। कठोर साधना की बदौलत अलाउद्दीन ने सरोद पर असाधारण पकड़ बना ली। एक दिन उस्ताद वजीर खां को लगा कि उनका शिष्य उनके वंशजों से आगे न निकल जाए। पंद्रह साल बाद जब वह विदा होने लगे, तोवजीर खां ने कहा कि अलाउद्दीन कभी सीधे हाथ से सरोद न बजाना। शार्गिद ने जीवन भर उस्ताद के वचन की लाज रखी। 

अलाउद्दीन सरोद ही नहीं, बहुत सारे वाद्य यंत्र बजाने में माहिर थे। भारत सरकार ने 1958 में अलाउद्दीन खां को पद्म भूषण सम्मान दिया। इसके अलावा और भी पुरस्कार से वह नवाजे गए।

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