Tuesday, September 30, 2025

राजा से संत बोला, सिपाही हो जाओ

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हर आदमी को अपना कर्तव्य करने से पीछे हटना नहीं चाहिए। कर्तव्य पालन में कोताही भी नहीं करनी चाहिए। किसी राज्य में एक राजा था। वैसे तो राजा प्रजापालक था। वह अपनी प्रजा का भरपूर ध्यान रखता था। जरूरत पड़ने पर वह उनकी सहायता भी करता था। 

एक दिन जब राजा अपने राज दरबार में बैठा हुआ, तभी उसके किसी दरबारी ने उसे सूचना दी कि राज्य में एक पहुंचे हुए संत आए हैं। जिनकी चर्चा पूरे राज्य में हो रही है। एक दिन राजा ने सोचा कि उसे भी संत के दर्शन करना चाहिए। यही सोचकर वह संत के दर्शन करने पहुंच गया। संत ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा कि जाओ, सिपाही हो जाओ। यह सुनकर राजा को बड़ा गुस्सा आया। 

उसने मन ही मन कहा कि मैं इस राज्य का राजा हूं और यह संत मुझे सिपाही हो जाने को कह रहा है। वह इसके बाद चुपचाप महल लौट गया। अगले दिन राज्य का प्रधान उनके दर्शन करने गया, तो संत ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम अज्ञानी हो जाओ। यह सुनकर भी प्रधान को बहुत बुरा लगा। थोड़ी देर बाद राज्य का बहुत बड़ा सेठ उनके दर्शन करने पहुंचा, तो संत ने कहा कि सेवक हो जाओ। यह सुनकर सेठ राजा के पास पहुंचा और संत की शिकायत की। 

अपने अपमान से जले भुने राजा ने संत को धूर्त बताते हुए पकड़कर लाने को कहा। संत ने अपने को दंड देने के बार में पूछा तो सबने अपनी बात रखी। यह सुनकर संत हंस पड़ा और उसने कहा कि राजा प्रजा का रक्षक होता है, इसलिए मैंने राजा को सिपाही की तरह प्रजा की रक्षा करने का आशीर्वाद दिया। प्रधान बहुत ज्ञानी होता है, वह अहंकार में चूर न हो जाए, इसलिए ज्ञानी होते हुए भी अज्ञानी होने को कहा। नगर का सेठ अपने पैसों से लोगों की सेवा कर सकता है। उसके पास अथाह पैसा है। इसलिए उनसे कहा कि सेवक हो जाओ।

No comments:

Post a Comment