अशोक मिश्र
एडावलथ कक्कट जानकी अम्मल ने भारतीय गन्ने की किस्मों पर शोध करके उसे जब लंदन के रायल हार्टिकल्चर सोसायटी में पेश किया, तो भारतीय उस पर लड़की होने की वजह के मजाक उड़ाने वाले अंग्रेजों को मुंह खुला का खुला रह गया। अम्मल का जन्म केरल के थलासेरी में 4 नवंबर 1897 में हुआ था। उनके पिता दीवान बहादुर एडावलाथ कक्कट कृष्णन मद्रास न्यायालय में उप न्यायाधीश थे।
उन्हें पेड़ पौधों से काफी लगाव था। धीरे-धीरे यही लगाव उनकी बेटी अम्मल में भी पैदा होता गया। वह बचपन से ही पेड़-पौधों में रुचि लेने लगी थी। वैसे तो कृष्णन की अन्य बेटियों ने विवाह करके अपना घर बसाया, लेकिन अम्मल ने विवाह के बजाय पढ़ाई को तरजीह दी। उन दिनों लड़कियों की पढ़ाई पर कम ही लोग ध्यान देते थे। उन्होंने मिशनरीज स्कूल और कालेजों में पढ़ाई की।
किताबों के साथ-साथ फूल, पत्ती और पेड़-पौधे उनके साथी बने। सन 1931 में उन्होंने गुणसूत्र अध्ययन पर शोध करके डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने भारतीय गन्ने की किस्मों पर शोध करके रायल हार्टिकल्चर सोसायटी में बताया कि भारतीय गन्ने दूसरे देशों के गन्ने से कहीं ज्यादा मीठे और उत्पादनशील हैं। इसका फायदा भारतीय किसानों को काफी हुआ। भारतीय गन्ने की मांग दुनिया में बढ़ गई। अम्मल की लगन और प्रतिभा को देखते हुए जवाहर लाल नेहरू ने 1951 में उनसे भारत आने को कहा।
भारत आने पर नेहरू ने उन्हें भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण की कार्याधिकारी बनाया। वनस्पति और कोशिका विज्ञान में अप्रतिम योगदान के लिए 1977 में अम्मल को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 4 फरवरी 1984 को मद्रास में उनकी मौत हो गई।
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