बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
व्यवस्था चाहे राजतंत्र वाली है या लोकतांत्रिक, राजा अथवा सत्ता पर काबिज व्यक्ति को सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। जब तक किसी व्यक्ति या संस्था के बारे में पूरी जानकारी हासिल न हो जाए, तब तक किसी फैसले पर नहीं पहुंचना चाहिए। कई बार सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करने से गलती होने की आशंका रहती है। इस मामले में एक बड़ी रोचक कथा है। किसी राज्य में एक विद्वान संत रहता था। लोग उसके पास अपनी समस्याओं को लेकर आते थे। विद्वान व्यक्ति उनकी समस्याओं को सुलझाने की जुगत बताता था। धीरे-धीरे उसके विद्वत्ता की ख्याति राजा तक पहुंची। राजा ने सोचा कि उसे भी अपने राज्य में रहने वाले विद्वान संत से मिलना चाहिए और उसकी कुछ मदद करनी चाहिए।यह सोचकर एक दिन राजा उस विद्वान के पास पहुंचा और कहा कि मैंने सुना है कि आप बहुत गुणवान व्यक्ति हैं। आपकी प्रशंसा बहुत लोग करते हैं। आपकी विद्वत्ता के बारे में सुनकर मैं अपने को आप
से मिलने से नहीं रोक सका। यह कहकर विद्वान के सामने राजा ने स्वर्ण मुद्राओं से भरी पोटली रख दी। विद्वान ने उस पोटली को उठाया और एक ओर रखते हुए कहा कि राजन! आपने मेरे बारे में सुना है। लोगों ने मुझे विद्वान बताया है, तो आपने विश्वास कर लिया। लेकिन आपने मेरी विद्वत्ता को अनुभव नहीं किया है।
कल यही लोग मुझे दुष्ट बता दें, तो आप सचाई जाने बिना मुझे दंड दे देंगे। राजा विद्वान की बात सुनकर लज्जित हुआ। उसने अगले महीने होने वाले शास्त्रार्थ में आमंत्रित किया। शास्त्रार्थ में विद्वान ने अपनी वाणी से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। तभी राजा ने प्रण किया कि वह सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करेगा।


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