नवंबर महीने में राज्य में प्रदूषण के चलते आंखों में जलन जैसी समस्याओं को लेकर काफी संख्या में मरीज अस्पताल पहुंचे। आंखों में जलन, पलकों और उसके आसपास सूजन जैसी समस्याएं प्रदूषण की ही देन हैं। लोगों को गले में खराश जैसी समस्याओं से भी जूझना पड़ रहा है। राज्य में ग्रेप-3 लागू होने के बाद भी यदि प्रदूषण काबू में नहीं आ रहा है, इसका सीधा सा मतलब है कि नियमों का भारी पैमाने पर उल्लंघन किया जा रहा है। राज्य के कई जिलों में सड़कों पर धूल उड़ रही है।
इसका कारण जिलों में भारी संख्या में बेतहाशा दौड़ते वाहन हैं। राज्य में भवन निर्माण पर प्रतिबंध होने के बावजूद ऐसा किया जा रहा है। इतना ही नहीं, बालू, मौरंग और सीमेंट आदि भी सड़कों पर ही रखी जा रही है जिसकी वजह से आते-जाते वाहनों की वजह से बालू, मौरंग और सीमेंट के अंश हवा में मिल रहे हैं। इससे भी लोगों को काफी परेशानी हो रही है। ग्रेप पाबंदियों के दौरान डीजल वाहन सड़कों पर नहीं दौड़ सकते हैं। इसके बावजूद राज्य के ज्यादातर जिलों में डीजल वाहन धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं जिन्हें रोकने वाला कोई नहीं है।
डीजल चालित व्यावसायिक वाहनों के अलावा टैक्सी-आटो भी घूम रहे हैं। इन वाहनों को देखकर भी अनदेखी की जाती है। राज्य की सड़कों पर बेतहाशा दौड़ते वाहनों के साइलेंसरों से निकलता काला धुआं लोगों को बीमार बना रहा है। लोग दम घोटू प्रदूषण के बीच जीने को मजबूर हैं। कई जिलों में सड़कों और गलियों से कूड़ा-करकट भी उठाया नहीं जाता है। सड़कों और गलियों में पड़ा कूड़े के ढेर को आग लगाने की वजह से भी प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।
दिन में सख्ती होने की वजह से लोग रात में कूड़ा जला रहे हैं ताकि उनके खिलाफ कार्रवाई न की जा सके। यही नहीं, अस्पतालों में सफाई कर्मचारी मेडिकल वेस्ट और प्लास्टिक का निस्तारण करने की जगह पर उसमें आग लगा रहे हैं जिसकी वजह अस्पताल में भर्ती मरीजों के स्वास्थ्य पर बुरा असर हो रहा है। मरीज ही नहीं, अस्पताल के आसपास रहने वाले लोग दम घुटने, आंखों में जलन, सिर दर्द जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। प्रशासन भी इस मामले में मूक बना हुआ है। यदि हालात पर काबू नहीं पाया गया, प्रदेश में दिनोदिन विकराल रूप धारण करता प्रदूषण भारी समस्या बन जाएगा।

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