Thursday, December 25, 2025

विलायती बबूलों ने अरावली का बिगाड़ दिया ईको सिस्टम

अशोक मिश्र

दिल्ली और हरियाणा की जमीनों के रेगिस्तान बनने की आशंका बलवती होती जा रही है। अरावली की पर्वत शृंखलाओं को लेकर इन दिनों गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में जो विरोध प्रदर्शन हो रहा है, वह अरावली क्षेत्र में संरक्षित क्षेत्र की नई परिभाषा को लेकर है। इन चारों राज्यों में वर्तमान और पूर्ववर्ती सरकारों ने अरावली पहाड़ियों को लेकर जो लापरवाही बरती है, उसके भी दुष्परिणाम अब सामने आने लगे हैं। 

गुजरात से लेकर दिल्ली तक अरावली पर्वत शृंखलाओं को जिस तरह बरबाद होने दिया गया, उसी का परिणाम है कि अब राजस्थान से उठने वाले धूल के बवंडर हरियाणा और दिल्ली तक पहुंचने लगे हैं। यदि राजस्थान से आने वाली धूल को रोका नहीं गया, तो दिल्ली और हरियाणा की हरी-भरी जमीनें रेगिस्तान में बदल जाएंगी। ऐसी आशंका पर्यावरणविद व्यक्त करने लगे हैं। पिछले कई दशकों में अरावली के वन क्षेत्र और पहाड़ियों को काफी नुकसान पहुंचाया गया है। 

हरियाणा में सन 1990 से लेकर 1999 तक शासन करने वाली सरकारों ने एक नादानीभरा फैसला लिया था। इन दस वर्षों में अरावली पहाड़ियों और उसके आसपास के क्षेत्र में हेलिकाप्टर से जगह-जगह विलायती बबूल के बीज गिराए गए थे। नतीजा यह हुआ कि अरावली क्षेत्र की अधिकतर जमीनों पर विलायती बबूल उग आए। यह विलायती बबूल राजस्थान की ओर से आने वाली धूल भरी आंधियों को रोकने में नाकामयाब रहे। इन विलायती बबूलों ने अपना कुनबा बढ़ाना जब शुरू किया, तो स्थानीय वनस्पतियां सिकुड़ने लगीं। 

पहले से रोपे गए या अपने आप उगी स्थानीय वनस्पतियां पहले एक सीमा के बाद धूल को आगे बढ़ने से रोक देती थीं। इसके हरियाणा, दिल्ली और गुजरात के कुछ क्षेत्र रेगिस्तान बनने से बचे रहे। लोगों को भी काफी हद तक राहत मिलती रही। लेकिन विलायती बबूल ने सारे इकोसिस्टम को बिगाड़कर रख दिया। पर्यावरण को शुद्ध रखने में सक्षम स्थानीय वनस्पतियां अब तो नब्बे फीसदी कम हो गई हैं। सन 2000 से 2004 के बीच अरावली क्षेत्र में अवैध खनन भी बहुत हुए। खनन और वन माफियाओं ने पूरे अरावली क्षेत्र को बरबाद करके रख दिया। 

पहाड़ियों के अवैध खनन और पेड़ पौधों की अंधाधुंध कटाई का नतीजा यह हुआ कि जो नाले और तालाब साल भर पानी से लबालब रहते थे, अब वह बरसात के मौसम में ही भरे हुए दिखाई देते हैं। गर्मियों और सर्दियों में तालाबों और छोटे-मोटे नालों में पानी ही नहीं रहता है। इससे लोगों को पानी की आवश्यकताओं के लिए भूजल पर निर्भर होना पड़ रहा है। जमीनों के रिचार्ज न होने की वजह से लगातार जल स्तर काफी नीचे जा रहा है। उस पर पर्यावरण में भी काफी तेजी से बदलाव आता जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग का असर अब दिखाई देने लगा है।

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