Thursday, December 25, 2025

मंच पर पहुंचे, तो भाषण भूल गए महात्मा गांधी


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महात्मा गांधी के विचारों से तब भी और आज भी बहुत सारे लोग सहमत नहीं होंगे। कुछ लोग आलोचना भी करते हैं। अपने समय में भी महात्मा गांधी को अपने कार्यों और विचारों के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था। इसके लिए कई बार वह शर्मिंदा भी हुए, लेकिन उन्होंने साहस नहीं छोड़ा और न ही अपनी कमियों को छिपाने का प्रयास किया। 

गांधी के विचारों से असहमत होते हुए भी यह बात स्वीकार करनी होगी कि वह सत्य बोलने में कभी पीछे नहीं रहे। अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में उन्होंने अपने जीवन की घटनाओं को उसी तरह दर्ज की है जैसी घटी होगी। मोहनदास करमचन्द गान्धी का जन्म गुजरात के एक तटीय नगर पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर सन 1869 को हुआ था। 

उनके पिता करम चंद गांधी एक छोटी सी रियासत काठियावाड़ के दीवान थे। मई 1883 में साढे 13 वर्ष की आयु पूर्ण करते ही उनका विवाह 14 वर्ष की कस्तूर बाई मकनजी से कर दिया गया। पत्नी का पहला नाम छोटा करके कस्तूरबा कर दिया गया और उसे लोग प्यार से बा कहते थे। बात उन दिनों की है, जब 1893-94 को वह दक्षिण अफ्रीका गए। दक्षिण अफ्रीका के नटाल प्रांत में जब उन्होंने भारतीयों की समस्याओं को लेकर आवाज उठाना शुरू किया, तो लोगों ने उन्हें अपना नेता मान लिया। 

एक बार उन्हें भाषण देने जाना पड़ा। उन्होंने भाषण लिखकर अच्छी तैयारी की, लेकिन जब मंच पर पहुंचे तो भाषण की पर्ची हाथ से छूट गई और वह सब कुछ भूल गए। वह कुछ नहीं बोले और हाथ जोड़कर सबसे क्षमा मांगी। इसके बाद उन्होंने अपनी कमजोरियों को दूर किया। एक दिन वह भी आया जब उनकी आवाज को पूरी दुनिया ने सुना।

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