Sunday, November 30, 2025

इससे अच्छा है कि मैं मर जाऊं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

प्रकृति ने किसी को अमर नहीं बनाया है। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मौत निश्चित है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड भी परिवर्तनशील है। आज है, करोड़ों-अरबों साल बाद इसी रूप में नहीं रहेगा। विनाश और विकास की प्रक्रिया सतत चलती रहती है। जब किसी वस्तु का विनाश होता है, तो उसके स्थान पर नई वस्तु सामने आती है। सिकंदर के बारे में एक कथा कही जाती है। यह कथा सच नहीं है, लेकिन कुछ लोगों ने गढ़ ली है। 

कहते हैं कि विश्व विजेता कहे जाने वाले सिकंदर के मन एक बार अमर होने की लालसा पैदा हुई। लोगों की अमरता की कहानियां उसने सुनी थी। उसे किसी ने बताया था कि पृथ्वी पर कहीं ऐसा जल पाया जाता है जिसको पीने से व्यक्ति अमर हो जाता है। कथा बताती है कि उसने अपने जीते हुए राज्यों में उस अमृत जल की बहुत तलाश की। आखिरकार उसने एक गुफा में उस अमृत जल को खोज निकाला। 

वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उस गुफा में प्रवेश किया, तो देखा कि अमृत जल कल-कल की ध्वनि करता हुआ बह रहा था। उसने चुल्लू में पानी भरा और पीने लगा। तभी वहां मौजूद एक कौआ बोला, रुको। जल पीने की गलती मत करना। सिकंदर को बहुत गुस्सा आया। उसे अपने विश्व विजेता होने पर बहुत अभिमान था। उसने रोषपूर्वक उस कौए से कहा, तू मुझे जल पीने से रोकने वाला कौन है? 

उस कौए ने जवाब दिया। मेरी कहानी सुन लो, फिर तुम्हारी जो मर्जी हो, वह करना। एक दिन मैंने भी यह जल खोज निकाला था। जल पीकर मैं अमर हो गया। लेकिन मेरे पंख झड़ गए हैं, अंधा हो गया हूं। शरीर गल गया है। मैं मौत मांग रहा हूं, लेकिन मेरी मौत नहीं हो रही है। मेरी हालत देख लो, फिर तुम तय करना कि तुम्हें अमर होना है या नहीं। सिकंदर ने सोचा कि ऐसी अमरता को लेकर मैं क्या करूंगा? असहाय होकर जीने से अच्छा है कि मैं मर जाऊं। इसके बाद सिकंदर ने जल पीने का विचार त्याग दिया।

पीरियड के दौरान नारी की निजता भंग करने वालों पर हो कार्रवाई

 अशोक मिश्र

हरियाणा के एक विश्वविद्यालय में चार महिला कर्मचारियों के साथ जो व्यवहार किया गया, वह सचमुच महिलाओं की गरिमा और गोपनीयता के साथ किया गया खिलवाड़ था। यह महिला जाति के साथ किया गया अभद्र व्यवहार था। जिस अधिकारी ने महिलाओं से पीरियड मांगे थे, उसने इन महिलाओं का ही नहीं, एक तरह से अपनी मां, बहन, बीवी और बेटी का भी अपमान किया था। 

क्या घर में कोई काम न होने पर उसने अपनी मां, बहन, बीवी और बेटी से पीरियड का सबूत मांगा होगा, कतई नहीं। चूंकि सफाई कर्मी महिलाएं उसके घर की नहीं थी, तभी उसने पीरियड का सबूत मांगने की गुस्ताखी की थी। हर महीने महिलाओं को मासिक धर्म आना, कोई नई बात नहीं है। यह लाखों से साल से महिलाओं को आ रहा है। प्रकृति ने महिलाओं को गर्भधारण करने की जिम्मेदारी दी है। प्रकृति ने हर महीने अंडाणु के बनने और बिगड़ने की व्यवस्था की है। 

मानव समाज पूरी दुनिया की महिलाओं का सबसे ज्यादा ऋणी है। एक महिला गर्भधारण करने के बाद जितनी तकलीफें झेलती है, नौ माह तक गर्भ को धारण करके शारीरिक और मानसिक पीड़ा झेलती है, लेकिन उसके चेहरे पर शिकन तक नहीं आती है। लेकिन जब उसी मातृत्व के कारणों पर कोई आक्षेप करता है, पीरियड का सबूत मांगता है, तो वह नारी जाति के प्रति अक्षम्य अपराध करता है। शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट ने चार महिला सफाईकर्मियों से पीरियड का सबूत मांगने के मामले सुनवाई के दौरान साफ तौर पर कहा कि महिलाओं की गरिमा और गोपनीयता हर हालत में बरकरार रहनी चाहिए। 

इस मामले को लेकर बार एसोसिएशन ने सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका पर सुनवाई के दौरान बार एसोशिएशन ने मांग की कि कर्मस्थलों और शैक्षणिक संस्थानों में महिलाओं के मासिक धर्म या उससे संबंधित मामलों में उनकी गरिमा, गोपनीयता, शारीरिक स्वायत्तता और स्वास्थ्य का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। देश में आए दिन महिलाओं या स्कूली छात्राओं की निजता का उल्लंघन करने वाली घटनाएं देश में सामने आती रहती हैं। 

कहीं स्कूल में मासिक धर्म का खून सीट पर लग जाने से क्लास की सभी छात्राओं की जांच की जाती है, तो कहीं शौचालय में सैनेटरी पैड मिलने पर छात्राओं के कपड़े उतरवाकर जांच की जाती है कि किस बच्ची ने शौचालय में सैनेटरी पैड फेंका है। ऐसी घटनाएं मानव समाज के मुंह पर करारा तमाचा हैं। अफसोस की बात है कि इस तरह की जांच ज्यादातर महिलाएं ही करती हैं, जैसे वे कभी मासि
क धर्म की पीड़ा से नहीं गुजरी हैं। वैसे भी मासिक धर्म के दौरान लड़कियां स्कूल-कालेज जाने से कतराती हैं। यदि वे किसी तरह हिम्मत जुटाकर स्कूल-कालेज जाती भी हैं, तो उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है।

Saturday, November 29, 2025

मां भी ईश्वर का ही दूसरा रूप है

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

बंगाल के हुगली जिले के एक गरीब किंतु धर्म परायण ब्राह्मण परिवार में स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था। परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को हुआ था। उनका वास्तविक नाम रामकृष्ण चटोपाध्याय था। वह देवी काली के परम भक्त थे। बीस साल की उम्र में ही वह कलकत्ता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी बन गए थे। परमहंस के ही शिष्य विश्वविख्यात स्वामी विवेकानंद थे। 

स्वामी विवेकानंद में अपने गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा थी। एक बार की बात है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास एक युवक आया। वह बहुत परेशान था। उसने स्वामी जी मिलने के बाद कहा कि मैं संन्यास लेना चाहता हूं। स्वामी जी ने उस युवक से पूछा कि तुम संन्यास क्यों लेना चाहते हो? उस युवक ने कहा कि इस दुनिया की विषमता, अन्याय और लोगों की दुख भरी जिंदगी को देखते हुए मैं काफी परेशान हो गया हूं। 

समाज में फैले ऊंच-नीच की भावना भी मुझे बहुत परेशान
करती है। इसलिए मैं संन्यास लेकर मुक्ति चाहता हूं। स्वामी ने पूछा कि तुम्हारे घर में कौन कौन है? उस युवक ने बताया कि उसके घर में केवल एक बूढ़ी मां है। उसके अलावा कोई नहीं है। स्वामी परमहंस ने कहा कि तुम संन्यास की आड़ लेकर पलायन कर रहे हो। संन्यास लेने पर तुम्हारा जीवन तो किसी न किसी तरह से बीत ही जाएगा। लेकिन तुम्हारी बूढ़ी मां का क्या होगा? 

संन्यास लेने से अच्छा है कि तुम अपनी मां की अच्छी तरह से सेवा करो। मां की सेवा से बढ़कर दूसरा कोई तप नहीं है। मां भी ईश्वर का ही दूसरा रूप है। यह सुनकर युवक समझ गया कि स्वामी जी उसे क्या समझाना चाह रहे हैं। युवक ने घर लौटकर अपनी मां की खूब सेवा की।

टूटे फूटे खेल उपकरण, खेल परिसरों में अव्यवस्था, कैसे जीतें मेडल?

 अशोक मिश्र

रोहतक और झज्जर में दो खिलाड़ियों की मौत के बाद प्रशासन की नींद खुली है। राज्य भर में स्टेडियम की जांच की जाने लगी है। टूटे-फूटे उपकरणों को बदलने के आदेश जारी किए जा रहे हैं। सरकार ने दो खिलाड़ियों की मौत के बाद जांच कमेटी गठित कर दी है। जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। जिस तरह इन दिनों प्रशासन जागरूकता दिखा रहा है, यदि उसने पहले दिखाई होती, तो देश और प्रदेश अपने दो प्रतिभावान खिलाड़ियों से वंचित नहीं होता। 

इन दोनों खिलाड़ियों से प्रदेश और देश को काफी उम्मीदें थीं। यह भी संभव है कि खेल अधिकारियों की लापरवाही का शिकार बने दोनों खिलाड़ी अपने खेल जीवन में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करते। यदि ऐसा नहीं भी होता तो भी दो परिवारों के चिराग खेल परिसरों की देखरेख करने वाले अधिकारियों की लापरवाही के चलते असमय मौत का शिकार हो गए। यह किसी परिवार की व्यक्तिगत क्षति होने के साथ-साथ प्रदेश की भी क्षति है। दोनों हादसों के बाद स्थानीय प्रशासन की नींद टूटी है। 

सेकेंडरी शिक्षा निदेशक ने राज्य के सभी जिला शिक्षा अधिकारी और जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी को आदेश दिया गया है कि खेल परिसरों में जितने भी जर्जर खेल उपकरण हैं, उन्हें तुरंत वहां से हटाया जाए। उन्हें बदला जाए और अगर कोई उपकरण तत्काल नहीं बदला जा सकता है, तो उस परिसर को ही तत्काल बंद कर दिया जाए। स्कूल-कालेजों के खेल उपकरणों की तत्काल समीक्षा की जाए। 

यदि किसी जिले में किसी तरह की लापरवाही पाई गई, तो जिला शिक्षा अधिकारी, जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी और स्कूल के प्रिंसिपल के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। सच तो यह है कि देश-विदेश से मेडल जीतकर लाने वाले खिलाड़ियों को वैसी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं जिसके वे हकदार हैं। वैसे तो खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के लिए सरकार ने हर जिल में खेल परिसरों की स्थापना कर रखी है, लेकिन देख-रेख का पूरी तरह अभाव है। सरकार के प्रयासों को पलीता लगाने में अधीनस्थ खेल अधिकारी और कर्मचारी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। 

खेल परिसरों में बास्केटबाल ग्राउंड और अन्य खेल से जुड़े स्थलों की स्थिति काफी दयनीय है। कहीं बास्केट बाल के ग्राउंड में लगे पोल जंग खा रहे हैं, तो कहीं जिमनैस्टिक उपकरण इधर उधर बिखरे पड़े हैं। कई जिलों में तो स्टेटिंग रिंक में जगह-जगह दरारें हैं, लेकिन इन्हें ठीक करने की जहमत न स्थानीय प्रशासन ने उठाई और न ही इन खेल परिसरों की देखरेख करने वालों ने। ऐसी स्थिति में खिलाड़ी कैसे प्रैक्टिस कर सकता है। सरकार इन खेल परिसरों के लिए काफी फंड जारी करती है, लेकिन फंड का सही समय पर उपयोग भी नहीं किया जाता है।

Friday, November 28, 2025

विज्ञान ने किसी का दुख कम तो किया

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

माइक्रोबॉयलॉजी के जनक कहे जाने वाले लुई पाश्चर का जन्म 27 दिसंबर 1822 को फ्रांस में हुआ था। पाश्चर ने चिकित्सा विज्ञान में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है। रेबीज का टीका विकसित करने का श्रेय भी लुई पाश्चर को ही जाता है। पाश्चराइजेशन की प्रक्रिया की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी। पाश्चर को वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिए फ्रांस का सबसे बड़ा लीजन आफ ऑनर दिया गया। 

पाश्चर एक अच्छे चित्रकार भी थे। उन्होंने पंद्रह साल की उम्र में अपने माता-पिता का एक चित्र बनाया था जो आज भी संग्रहालय में रखा हुआ है। एक बार की बात है। वह अपने शोध के सिलसिले में एक गांव में गए। उस गांव के लोग जादू-टोना पर विश्वास करने वाले थे। गांव में कुछ भी होता था, तो लोग यही समझते थे कि किसी ने उन पर या उनके पशु पर जादू-टोना किया है। 

उस गांव में एक किसान का बैल बीमार था। किसान ने लुई पाश्चर को अपना बैल दिखाते हुए कहा कि किसी ने इस बैल पर जादू-टोना कर दिया है जिसकी वजह से यह बीमार है। लुई पाश्चर उस बैल को देखते ही जान गए कि बैल को जीवाणु ने बीमार कर दिया है। उन्होंने उस किसान को समझाते हुए कहा कि तुम्हारे बैल को जीवाणु ने पीड़ित कर रखा है। गांव वाले और वह किसान यह बात सुनकर आश्चर्य में पड़ गए। लुई पाश्चर ने कई घंटों की मेहनत से दवा और साफ-सफाई का तरीका बताकर उस  पशु को ठीक कर दिया। 

किसान ने बाद में पाश्चर के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आपने मेरी आजीविका बचा ली। इसका उपकार कैसे चुका सकता हूं। पाश्चर ने मुस्कुराते हुए कहा कि मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार यही है कि विज्ञान ने किसी का दुख कम तो किया। इसके बाद गांव वालों की सोच बदल गई।

व्यावसायिक भवनों में पार्किंग नियमों के उल्लंघन से लगते जाम


अशोक मिश्र

बाजार हो या कोई गली-मोहल्ला जाम से अछूता नहीं है। पार्किंग के अभाव में सड़कों पर आए दिन जाम देखने को मिलता है। वैसे हरियाणा के सभी शहरों में अब दो मंजिल से अधिक वाले रिहायशी भवनों में स्टिल्ट पार्किंग अनिवार्य किया गया है। स्वयं के उपयोग की स्थिति में तीन मंजिल तक के भवनों में स्टिल्ट पार्किंग से छूट दी गई है, लेकिन चार मंजिल वाले सभी भवनों में स्टिल्ट पार्किंग अनिवार्य है। वहीं दुकानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के लिए पार्किंग नीति मुख्य रूप से हरियाणा बिल्डिंग कोड, 2017 में तय की गई है। 

सभी वाणिज्यिक भवनों के लिए यह अनिवार्य है कि वे अपनी साइट के भीतर पर्याप्त पार्किंग स्थान प्रदान करें, जिसमें कवर, खुला या बेसमेंट पार्किंग शामिल है। वाणिज्यिक परियोजनाओं के लिए आवश्यक न्यूनतम पार्किंग आमतौर पर कवर्ड एरिया के प्रत्येक 50 वर्ग मीटर के लिए होती है। मल्टीप्लेक्स या सिनेमाघरों वाली परियोजनाओं के लिए, पार्किंग की आवश्यकता अधिक होती है, जो लगभग 100 वर्ग मीटर कवर्ड एरिया के लिए 3 ईसीएस तक हो सकती है। लेकिन आम तौर पर सरकार द्वारा तय किए गए मानकों पर न तो भवन बनाए जा रहे हैं, न ही पार्किंग का निर्माण किया जा रहा है।

 राज्य के लगभग सभी जिलों में अगर पता किया जाए, तो हर जगह पार्किंग की समस्या देखने मिलती है। आमतौर पर देखने में यह आता है कि पार्किंग के अभाव में लोग अपना वाहन सड़क पर ही खड़ा कर देते हैं जिसकी वजह से सड़कों पर जाम लग जाता है। कुछ वाहन चालकों की यह आदत भी होती है कि वह अपने वाहन को आड़ा-तिरछा खड़ा करके शापिंग करने चले जाते हैं। उन्हें दूसरों की सुविधा-असुविधा का खयाल नहीं रहता है। उन्हें अपनी सुविधा से ही मतलब होता है। इस मामले में हर बार वाहन चालकों की ही गलती नहीं होती है। गलियों और मुख्य सड़कों पर बनी दुकानों पर आमतौर पर पार्किंग देखने को नहीं मिलती है। दो मंजिला और तीन मंजिला भवनों में खुली दुकानों में पार्किंग की व्यवस्था नहीं होती है। ऐसी स्थिति में अपने वाहन से खरीदारी करने आए लोग दुकान के सामने ही अपना वाहन खड़ा कर देते हैं। 

इससे लोग तो परेशान होते ही हैं, दुकानदार को भी परेशानी होती है। यह भी देखने में आता है कि कुछ दुकानदार फुटपाथ की जगह पर अपने उत्पाद रख देते हैं। इससे पैदल चलने वालों को भी परेशानी होती है। वह सड़क पर चलते हैं जिससे वाहनों के लिए जगह कम हो जाती है। यदि सड़कों पर जाम और हादसों से बचना है, तो हर सौ-दो सौ मीटर की दूरी पर सार्वजनिक पार्किंग की व्यवस्था करनी होगी। तभी सड़कें जाम से मुक्त होंगी और लोगों को राहत मिलेगी। स्थानीय निकायों को भी इस मामले में ध्यान रखना होगा।

Thursday, November 27, 2025

सुनी सुनाई बातों पर कैसा विश्वास?

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

व्यवस्था चाहे राजतंत्र वाली है या लोकतांत्रिक, राजा अथवा सत्ता पर काबिज व्यक्ति को सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। जब तक किसी व्यक्ति या संस्था के बारे में पूरी जानकारी हासिल न हो जाए, तब तक किसी फैसले पर नहीं पहुंचना चाहिए। कई बार सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करने से गलती होने की आशंका रहती है। इस मामले में एक बड़ी रोचक कथा है। 

किसी राज्य में एक विद्वान संत रहता था। लोग उसके पास अपनी समस्याओं को लेकर आते थे। विद्वान व्यक्ति उनकी समस्याओं को सुलझाने की जुगत बताता था। धीरे-धीरे उसके विद्वत्ता की ख्याति राजा तक पहुंची। राजा ने सोचा कि उसे भी अपने राज्य में रहने  वाले विद्वान संत से मिलना चाहिए और उसकी कुछ मदद करनी चाहिए। 

यह सोचकर एक दिन राजा उस विद्वान के पास पहुंचा और कहा कि मैंने सुना है कि आप बहुत गुणवान व्यक्ति हैं। आपकी प्रशंसा बहुत लोग करते हैं। आपकी विद्वत्ता के बारे में सुनकर मैं अपने को आप
से मिलने से नहीं रोक सका। यह कहकर विद्वान के सामने राजा ने स्वर्ण मुद्राओं से भरी पोटली रख दी। विद्वान ने उस पोटली को उठाया और एक ओर रखते हुए कहा कि राजन! आपने मेरे बारे में सुना है। लोगों ने मुझे विद्वान बताया है, तो आपने विश्वास कर लिया। लेकिन आपने मेरी विद्वत्ता को अनुभव नहीं किया है। 

कल यही लोग मुझे दुष्ट बता दें, तो आप सचाई जाने बिना मुझे दंड दे देंगे। राजा विद्वान की बात सुनकर लज्जित हुआ। उसने अगले महीने होने वाले शास्त्रार्थ में आमंत्रित किया। शास्त्रार्थ में विद्वान ने अपनी वाणी से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। तभी राजा ने प्रण किया कि वह सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करेगा।

प्रदूषण के चलते हरियाणा में बढ़ रहा बीमारियों का खतरा

 अशोक मिश्र

प्रदूषण की समस्या लगातार गहराती जा रही है। दिल्ली सहित पूरे देश के 749 में से 447 जिलों वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। प्रदूषण के मामले में दिल्ली सबसे पहले और चंडीगढ़ दूसरे स्थान पर रहे। मतलब यह है कि इस साल सबसे ज्यादा प्रदूषण दिल्लीवासियों और चंडीगढ़वासियों ने झेला है। यह स्थिति काफी गंभीर है। हरियाणा में भी पिछले काफी दिनों से वायु गुणवत्ता सूचकांक इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि यहां भी स्थितियां बदतर होती जा रही हैं। 

नवंबर महीने में राज्य में प्रदूषण के चलते आंखों में जलन जैसी समस्याओं को लेकर काफी संख्या में मरीज अस्पताल पहुंचे। आंखों में जलन, पलकों और उसके आसपास सूजन जैसी समस्याएं प्रदूषण की ही देन हैं। लोगों को गले में खराश जैसी समस्याओं से भी जूझना पड़ रहा है। राज्य में ग्रेप-3 लागू होने के बाद भी यदि प्रदूषण काबू में नहीं आ रहा है, इसका सीधा सा मतलब है कि नियमों का भारी पैमाने पर उल्लंघन किया जा रहा है। राज्य के कई जिलों में सड़कों पर धूल उड़ रही है। 

इसका कारण जिलों में भारी संख्या में बेतहाशा दौड़ते वाहन हैं। राज्य में भवन निर्माण पर प्रतिबंध होने के बावजूद ऐसा किया जा रहा है। इतना ही नहीं, बालू, मौरंग और सीमेंट आदि भी सड़कों पर ही रखी जा रही है जिसकी वजह से आते-जाते वाहनों की वजह से बालू, मौरंग और सीमेंट के अंश हवा में मिल रहे हैं। इससे भी लोगों को काफी परेशानी हो रही है। ग्रेप पाबंदियों के दौरान डीजल वाहन सड़कों पर नहीं दौड़ सकते हैं। इसके बावजूद राज्य के ज्यादातर जिलों में डीजल वाहन धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं जिन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। 

डीजल चालित व्यावसायिक वाहनों के अलावा टैक्सी-आटो भी घूम रहे हैं। इन वाहनों को देखकर भी अनदेखी की जाती है। राज्य की सड़कों पर बेतहाशा दौड़ते वाहनों के साइलेंसरों से निकलता काला धुआं लोगों को बीमार बना रहा है। लोग दम घोटू प्रदूषण के बीच जीने को मजबूर हैं। कई जिलों में सड़कों और गलियों से कूड़ा-करकट भी उठाया नहीं जाता है। सड़कों और गलियों में पड़ा कूड़े के ढेर को आग लगाने की वजह से भी प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। 

दिन में सख्ती होने की वजह से लोग रात में कूड़ा जला रहे हैं ताकि उनके खिलाफ कार्रवाई न की जा सके। यही नहीं, अस्पतालों में सफाई कर्मचारी मेडिकल वेस्ट और प्लास्टिक का निस्तारण करने की जगह पर उसमें आग लगा रहे हैं जिसकी वजह अस्पताल में भर्ती मरीजों के स्वास्थ्य पर बुरा असर हो रहा है। मरीज ही नहीं, अस्पताल के आसपास रहने वाले लोग दम घुटने, आंखों में जलन, सिर दर्द जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। प्रशासन भी इस मामले में मूक बना हुआ है। यदि हालात पर काबू नहीं पाया गया, प्रदेश में दिनोदिन विकराल रूप धारण करता प्रदूषण भारी समस्या बन जाएगा।

Wednesday, November 26, 2025

सेवा किए बिना नहीं आई नींद

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महाराजा विक्रमादित्य के बारे में हमारे देश में कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं। इनमें से कुछ तो अविश्वसनीय प्रतीत होती हैं। जैसे एक कथा उनकी हरसिद्धि रहस्य के बारे में हैं। कथा के अनुसार, वह हर बारह साल में अपना सिर हरसिद्धि देवी को अर्पित कर देते थे। 

कहते हैं कि देवी के आशीर्वाद से हर बार उनका सिर फिर जुड़ जाता था। विक्रमादित्य के बारे में सिंहासन बत्तीसी नामक पुस्तक में भी कुछ जानकारियां मिलती हैं जो  उनके सिंहासन में बनी हुई बत्तीस पुतलियों ने सुनाई हैं। प्राचीन ग्रंथों में जो जानकारी मिलती है, उसके अनुसार विक्रमादित्य बहुत पराक्रमी राजा थे और उन्होंने शकों को पराजित करके अपने साम्राज्य का बहुत ज्यादा विस्तार कर लिया था। 

वह न्यायप्रिय और प्रजापालक राजा थे। वह वेष बदलकर अपने राज्य में घूमते रहते थे और दीन-दुखियों की समस्याओं का निराकरण करते रहते थे। एक बार की बात है, वह अपनी राजधानी उज्जैन में अपने गुरु से बातचीत कर रहे थे। उसी समय उन्होंने अपने गुरु से कहा कि आप मुझे कुछ ऐसा मंत्र या सूत्र बताएं जिससे मुझे और मेरी आगे की पीढ़ियों को प्रजा की भलाई करने की प्रेरणा मिलती रहे। 

विक्रमादित्य ने गुरु जी द्वारा बताई गई बातों को सिंहासन में मढ़वा दिया। एक दिन कार्य की व्यस्तता की वजह से कोई कल्याणकारी काम नहीं कर पाए। रात को जब पूरे दिन के कामों का स्मरण किया, तो उन्हें  बड़ी ग्लानि हुई। रात को  राजा को नींद भी नहीं आई। आधी रात को विक्रमादित्य अपने महल से बार निकले। देखा कि एक व्यक्ति सर्दी में ठिठुर रहा है। उन्होंने अपना दुशाला उसे ओढ़ाया और महल में लाकर उसी सेवा-सुश्रुषा की। तब जाकर उन्हें नींद आाई।

समाज के लिए घातक बनता जा रहा है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

 

अशोक मिश्र

टेक्नोलॉजी हर किसी के लिए वरदान है, तो अभिशाप भी। अगर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ही बात करें,तो यह मानव समाज के लिए बहुत लाभकारी है। एआई के जरिये अब तो जटिल से जटिल आपरेशन तक किए जा रहे हैं। कैंसर जैसे रोगों में भी एआई से किए गए आपरेशन की सफलता दर कहीं ज्यादा अच्छी है। इतना ही नहीं, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में एआई का उपयोग बेहतर तरीके से किया जा रहा है। एआई ने जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं। 

यदि कोई बुरा व्यक्ति इसका इस्तेमाल करता है, तो वह समाज में गंदगी ही फैलाएगा। पिछले कुछ दिनों से एआई के माध्यम से लोग अपराध को अंजाम दे रहे हैं। एआई के माध्यम से वीडियो और फोटो को मार्फकरके इन्हें अश्लील बनाया जा रहा है। पिछले दिनों गुड़गांव की आईटी कंपनी में काम करने वाली महिला को एआई से तैयार किए गए अपने ही वीडियो और फोटो देखने को मिली, जो अश्लील थी। किसी व्यक्ति ने उसकी फेक आईडी बनाकर एआई से आपत्तिजनक मार्फ करके उसकी फोटो को सोशल मीडिया पर डाली थी। यह देखकर वह महिला दंग रह गई। उसने तत्काल पुलिस से संपर्क किया। 

पुलिस ने जांच करके पता लगाया कि फेक आईडी बनाकर सोशल मीडिया पर डालने वाला आदमी असम में है। पुलिस ने झटपट एक टीम बनाकर असम पुलिस से संपर्क करके आरोपी को गिरफ्तार किया और कोर्ट में पेश करके ट्रांजिट रिमांड पर लिया गया। पुलिस ने बताया कि आरोपी पीड़िता को पहले से ही जानता है। वह इससे पहले भी पीड़िता को परेशान कर चुका है। पीड़िता ने इससे पहले भी पुलिस में इसकी शिकायत की थी जिसकी वजह से पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था। 

जमानत पर छूटने के बाद फिर उसने पुरानी हरकत दोहराई है। आरोपी ने फोटो को आपत्तिजनक बनाकर पोस्ट किया था। ऐसी घटनाएं अब बहुतायत में देखने-सुनने को मिलने लगी हैं। सामान्य नागरिकों से लेकर उच्च पदस्थ अधिकारी, मीडियाकर्मी, नेता और बॉलीवुड के हीरो-हीरोइन तक इस तरह की घटनाओं के शिकार हो चुके हैं। इस स्थिति से बचने के लिए जरूरी है कि अपने सोशल मीडिया एकाउंट को सुरक्षित रखा जाए। कोई भी ऐसी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाए जिससे कोई आपके घर, परिवार, कार्यालय आदि की पता लगा सके। आपके परिवार के सदस्यों के बारे में जानकारी हासिल कर सके। 

पूर्व में ऐसी भी कुछ घटनाएं सामने आई हैं जिसमें पता चला कि अपराधियों ने बच्चे का अपहरण करने या पुरुष-महिला की हत्या करने के लिए जानकारी सोशल मीडिया से जुटाई थी। कुछ लोगों की आदत होती है कि वह हर छोटे-छोटे मूवमेंट को सोशल मीडिया पर डालते रहते हैं। ऐसा कतई न करें।

Tuesday, November 25, 2025

हाथियों को विश्वास है, रस्सी नहीं टूटेगी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

विश्वास बड़ी चीज है। यदि एक बार किसी को भी यह विश्वास हो जाए कि वह फलां काम नहीं कर सकता है, तो वह क्षमतावान होते हुए भी काम नहीं कर पाएगा, भले ही वह काम बहुत मामूली हो। यह इंसान ही नहीं, जानवर के भी विश्वास की बात है। एक बार की बात है। एक व्यक्ति कहीं जा रहा था। रास्ते में उसने देखा कि गजशाला में बहुत सारे हाथी बंधे हुए हैं। 

जब वह हाथियों के बगल से गुजरा तो उसने देखा कि जिन रस्सियों से हाथी बंधे हुए हैं, वह बहुत पतले हैं। वह सोचना लगा कि इतने बलशाली हाथी भला इन पतली रस्सियों से क्यों बंधे हैं? और यह हाथी इन्हें तोड़कर भाग क्यों नहीं जाते हैं। वह चाहते तो एक ही झटके में इन रस्सियों को तोड़ सकते थे। यह बात उस आदमी की समझ में नहीं आ रही थी। 

उसने इस बात को महावत से जानने का प्रयास किया। वह एक बुजुर्ग महावत के पास गया और अपनी बात रखते हुए कहा कि आप लोगों ने इन हाथियों को लोहे की जंजीरों की जगह रस्सियों से क्यों  बांध रखा है? यह हाथी रस्सी तुड़ाकर भाग गए तब क्या होगा? महावत ने मुस्कुराते हुए कहा कि यह कतई नहीं भागेंगे। उस आदमी को आश्चर्य हुआ, उसने पूछा-क्यों? महावत ने कहा कि जब ये हाथी बहुत छोटे थे, तब भी इन्हीं रस्सियों से बांधे जाते थे। 

तब इन हाथियों में इतना बल नहीं था कि वह रस्सी को तोड़ सकें। इन्होंने काफी प्रयास किया। रस्सी नहीं टूटी। जैसे-जैसे यह बड़े होते गए, इन्हें विश्वास होता गया कि इन रस्सियों को तोड़ पाना उनके वश का नहीं है। अब यह इन रस्सियों से बंधे रहते हैं, लेकिन तोड़ने का प्रयास नहीं करते हैं। यह सुनकर वह आदमी समझ गया कि इन मामूली सी रस्सियों में हाथी क्यों बंधे रहते हैं।

हरियाणा को अपराध मुक्त बनाने को चल रहा आपरेशन ट्रैकडाउन

अशोक मिश्र

किसी भी देश और प्रदेश के विकास की आधारशिला आधारभूत संरचनाएं होती हैं। आधारभूत संरचनाएं तभी विकसित होती हैं, जब पूंजीपतियों को
देश या प्रदेश का वातावरण अपराधरहित हो, सड़कें और अन्य सुविधाएं मुकम्मल तौर पर हासिल हों और नौकरशाही का पूर्ण सहयोग हो। कोई भी पूंजीपति अशांत वातावरण में उद्योग लगाना नहीं चाहता है। प्रदेश के मुखिया नायब सिंह सैनी ने पिछले दिनों जापान में वहां के प्रसिद्ध उद्योगपतियों को हरियाणा में उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहित किया था। 

उन्होंने प्रदेश में उद्योग लगाने के लिए रुचि भी दिखाई थी। इसके लिए जरूरी है कि प्रदेश का माहौल अपराधरहित हो। प्रदेश सरकार के निर्देश पर हरियाणा पुलिस पांच से 20 नवंबर तक आपरेशन ट्रैकडाउन मुहिम चला रखी थी, लेकिन मुहिम की सफलता को देखते हुए इसे आगे के लिए बढ़ा दिया गया है। पुलिस ने आपरेशन ट्रैकडाउन के तहत अब तक 4566 अपराधियों को गिरफ्तार किया है। इनमें 1439 कुख्यात, वाछिंत और संगीन मामलों के अपराधी हैं। बाकी अपराधी अन्य मामलों के आरोपी हैं। 

आपरेशन ट्रैकडाउन का लक्ष्य प्रदेश को अपराध मुक्त बनाना है। दरअसल, पिछले काफी दिनों से प्रदेश में आपराधिक घटनाएं बढ़ती जा रही थीं। विदेश में बैठे अपराधी संगठन और उनके मुखिया अपने गुर्गों के माध्यम से संगीन अपराध करते रहते हैं। राज्य में गोलीबारी, फिरौती, अपहरण और हत्या जैसे गंभीर मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है। इसका तोड़ यह निकाला गया है कि प्रत्येक थाना इंचार्ज को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह अपने इलाके के पांच गैंगस्टरों को गिरफ्तार करे। 

हरविंदर रिंदा, लखबीर लांडा, अर्श डाला,दीपक बॉक्सर, रितिक बॉक्सर, सचिन बिश्नोई ,काला जठेड़ी,रोहित गोदारा,  गोल्डी बराड़, अनमोल बिश्नोई, लॉरेंस बिश्नोई जैसे गैंगस्टरों ने हरियाणा और पंजाब में आतंक मचा रखा है। पुलिस इनके नेटवर्क खत्म करने के लिए आपरेशन ट्रैकडाउन चला रही है। पुलिस की रणनीति यह है कि प्रदेश के अपराधियों, गैंगस्टरों को गिरफ्तार करके विदेश में जा बसे गैंगस्टरों का नेटवर्कतोड़ दिया जाए। विदेश में रहकर ये गैंगस्टर यहां के अपराधियों के जरिये ही अपराध को अंजाम देते हैं। 

रोहित गोदारा, गोल्डी बराड़, अनमोल बिश्नोई, लॉरेंस बिश्नोई जैसे तमाम गैंगस्टर व्यपारियों, कारोबारियों और उद्योगपतियों से रंगदारी यहां के अपराधियों के जरिये ही वसूलते हैं। अपने दुश्मनों की हत्या भी वह इन्हीं अपराधियों से करवाते हैं। यदि पुलिस इन छुटभैये अपराधियों की नाक में नकेल डालने में सफल हो गई, तो बड़े गैंगस्टरों और अपराधियों का नेटवर्कछिन्न-भिन्न हो जाएगा। वैसे साढ़े चार हजार अपराधियों को गिरफ्तार कर लेना भी अच्छी खासी उपलब्धि मानी जाएगी।

Monday, November 24, 2025

राज कवि की पालकी ढोने वाला राजा

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

विजय नगर के राजाओं में सर्वाधिक कीर्ति हासिल करने वाले सम्राट कृष्णदेव राय खुद एक अच्छे कवि थे। उनके दरबार में साहित्यकारों, कलाकारों और विभिन्न कलाओं में पारंगत विद्वानों का बहुत आदर होता था। तमिल भाषा में लिखा उनका काव्य अमुक्तमाल्यद साहित्य की एक बहुमूल्य धरोहर है। कृष्णदेव राय का जन्म 17 जनवरी 1471 को हुआ था। इनके शासनकाल में पुर्तगाली भारत के पश्चिमी तट तक आ पहुंचे थे। 

सम्राट कृष्णदेवराय ने अनेक प्रसादों, मंदिरों, मंडपों और गोपुरों का निर्माण करवाया। रामस्वामीमंदिर के शिलाफलकों पर प्रस्तुत रामायण के दृश्य दर्शनीय हैं। एक बार की बात है। कृष्णदेव राय हाथी पर चढ़कर कहीं जा रहे थे। संयोग से उसी समय उसी रास्ते पर राजकवि की सवारी आ रही थी। राजकवि की पालकी को चार आदमी कंधों पर ढोकर ला रहे थे। 

राजकवि की पालकी जब नजदीक आ गई तो राजा कृष्णदेव राय ने अपने हाथी को रुकवाया और हाथी से उतर पड़े। वह पालकी की ओर बढ़े, तो वहां उपस्थित जनसमुदाय आश्चर्य से अपने राजा को देखने लगा। वास्तव में जब राजा कृष्णदेव राय इस तरह की यात्राओं पर निकलते थे, तो जानकारी मिलने पर जनसमुदाय उनके दर्शन के लिए आ जुटता था। कृष्णदेव राय ने चार में से एक आदमी को हटाया और उसकी जगह पालकी को लेकर चलने लगे। 

शोर सुनकर राजकवि को लगा कि कुछ गड़बड़ है। वह पालकी से बाहर निकले, तो राजा को पालकी उठाता देख बोले, महाराज! आप यह क्या कर रहे हैं? राजा ने कहा कि इतिहास में हो सकता है कि मैं एक सामान्य राजा के रूप में याद किया जाऊं। मेरा राज्य अस्थिर है। लेकिन आपका शब्द साम्राज्य सदियों तक रहेगा। इतिहास में मुझे कम से कम राजकवि की पालकी ढोने वाले राजा के रूप में तो याद किया जाएगा।

हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में आई कमी सराहनीय

अशोक मिश्र

हरियाणा सरकार का अगले दो वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं को शून्य पर लाने का लक्ष्य है। पराली जलाने के मामले में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिले काफी बदनाम थे। लेकिन संतोष की बात यह है कि हरियाणा सरकार के प्रयास से पराली जलाने की घटनाएं पिछले दो-तीन साल से लगातार घटती जा रही हैं। इस बार गुरुग्राम, महेंद्रगढ़ और रेवाड़ी में पराली जलाने की एक भी घटना प्रकाश में नहीं आई है। इन जिलों के किसानों ने पूरे प्रदेश के सामने अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। 

इसके लिए जितनी प्रशंसा की जाए, उतना ही कम है। यही हाल रहा तो यह उम्मीद की जा सकती है कि निकट भविष्य में राज्य में एक भी घटना पराली जलाने की सामने नहीं आएगी। इस साल इस लक्ष्य में जींद, फतेहाबाद और हिसार के किसान बहुत पिछड़े हैं। इन जिलों में पराली जलाने की घटनाएं हुई हैं जिससे राज्य सरकार काफी चिंतित है। हां, राहत की बात यह है कि फरीदाबाद, अंबाला, करनाल, कुरुक्षेत्र, सिरसा और कैथल जैसे जिलों में किसानों ने कम पराली जलाई है। 

यदि किसान थोड़ा और जागरूक हो जाएं, तो प्रदेश में प्रदूषण की समस्या को बिलकुल खत्म किया जा सकता है। पराली जलाने के मामले में नूंह ने विपरीत कार्य किया है। पिछले पांच साल में नूंह में पराली जलाने की एक भी घटना सामने नहीं आई थी, लेकिन इस बार एक किसान ने अपने खेतों में पराली जलाकर यह रिकार्ड तोड़ दिया। अगर प्रदेश स्तर पर पराली जलाने की बात की जाए, तो पिछले कई सालों के मुकाबले पचास प्रतिशत पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं। 

पिछले साल जहां 21 नवंबर तक प्रदेश में 1193 स्थानों पर पराली जलाने की घटनाएं प्रकाश में आई थीं, वहीं इस साल 21 नवंबर तक 603 घटनाएं हुई हैं। यह सही है कि पूरे उत्तर भारत में जो प्रदूषण है, उसमें पराली जलाने से पैदा हुआ प्रदूषण कुल प्रदूषण का केवल दस प्रतिशत ही है। लेकिन यदि इस दस प्रतिशत प्रदूषण पर रोक लगा दी जाए तो प्रदूषण के दूसरे कारकों पर भी ध्यान देने का मौका मिल जाएगा। पिछले कुछ दिनों से हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण इतना ज्यादा है कि लोगों का दम घुटने लगा है। ब्रेन स्ट्रोक और हार्ट अटैक के मामले बढ़ते जा रहे हैं। 

इसका कारण भी दिनोंदिन बढ़ता प्रदूषण है। खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके प्रदूषण के चलते हर साल काफी संख्या में लोगों की असमय मौत हो रही है। इस मौत का आंकड़ा किसी खाते में दर्ज नहीं हो रहा है। यदि इन मौतों को रोकना है, तो सभी को सामूहिक प्रयास करना होगा। यह जिम्मेदारी केवल राज्य सरकार या न्यायायल की ही नहीं है, यह देश और प्रदेश के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। सरकार केवल संसाधन मुहैया करा सकती है, उसको प्रयोग में लाना नागरिकों की जिम्ेदारी है।

Sunday, November 23, 2025

सच्चे मन से प्रयास करने वाला सफल होता है

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

रामकृष्ण परमहंस काली माता के भक्त थे। उनकी मां काली पर अगाध श्रद्धा थी। वह सर्वधर्म समभाव के हिमायती थे। उनका कहना था कि एक लक्ष्य तक पहुंचने के लिए जिस तरह कई रास्ते हो सकते हैं। ठीक उसी तरह अपने आराध्य तक पहुंचने में वेदांत के साथ-साथ ईसाई और मुस्लिम धर्म सहायक हो सकते हैं। 

रामकृष्ण परमहंस के ही शिष्य थे स्वामी विवेकानंद जिन्होंने अमेरिका के शिकागो में हुए विश्व धर्म संसद में सनातन धर्म की पताका लहराई थी। एक बार की बात है। परमहंस अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि कुछ मछुआरे जाल डालकर मछली पकड़ रहे हैं। 

परमहंस कुछ पल रुककर यह क्रिया देखने लगे। फिर उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि जाल में फंसी मछलियों को देखो और फिर बताओ कि यह मछलियां जाल में फंसने के बाद क्या कर रही हैं? सभी शिष्यों ने ध्यान से देखा और फिर एक शिष्य बोला कि गुरु जी! कुछ मछलियां तो चुपचाप पड़ी हैं। कुछ छटपटा रही हैं और कुछ जाल से निकलने का प्रयास कर रही हैं। 

कुछ तो निकल भी गई हैं। यह सुनकर परमहंस ने कहा कि इन मछलियों की तरह इंसान भी तीन तरह के होते हैं। जब कोई विपदा आ जाती है, तो शांत पड़ी मछलियों की तरह वे लोग हार मान लेते हैं। वहीं कुछ लोग उछलने वाली मछलियों की तरह प्रयास तो करते हैं, लेकिन वे पूरे मन से प्रयास नहीं करते हैं। कुछ लोग तो बाहर निकल जाने वाली मछलियों की तरह तब तक प्रयास करना नहीं छोड़ते हैं, जब तक कि वह अपने प्रयास में सफल नहीं हो जाते हैं। इस तरह कहा जा सकता है कि मनुष्य तीन तरह के होते हैं। जो सच्चे मन से प्रयास करता है, वही सफल होता है।

बहुत मुश्किल है हरियाणा कांग्रेस के नेताओं को संगठित रखना


अशोक मिश्र

हरियाणा में लगभग जीत हुआा विधानसभा चुनाव हारने के बाद लगा था कि अब कांग्रेसी अपनी गलतियों से सबक सीखेंगे और एकजुट होकर काम करेंगे, ताकि भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल हो सके। हालांकि अगले विधानसभा चुनाव में अभी लगभग चार साल बाकी हैं। यदि कांग्रेस एकजुट होकर प्रयास करे, तो इस बार की पराजय को अगली बार विजय में तब्दील हो सकती है। लेकिन एकजुटता और अनुशासन शायद हरियाणा कांग्रेस के नेताओं ने सीखा ही नहीं है या फिर इनका अहं पार्टी के अस्तित्व से भी कहीं ज्यादा अहमियत रखता है। 

तभी तो हरियाणा के नेता अपनी जिद और अहंकार को पार्टी से भी ऊपर रखते हैं। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की बार-बार की चेतावनी को दरकिनार करते हुए हरियाणा के नेता बार-बार एक दूसरे से टकरा रहे हैं। इससे परेशान होकर कांग्रेस ने अनुशासनात्मक कार्रवाई कमेटी का गठन किया था। कमेटी की आज पहले चरण की बैठक अंबाला में होनी है। 

बैठक के नतीजे तो अभी सामने नहीं आए हैं, लेकिन डर यह है कि कहीं यह अनुशासनात्मक कार्रवाई कमेटी भी गुटबाजी का अड्डा बनकर न रह जाए। प्रदेश में गुटबाजी इस कदर व्याप्त है कि जिस सांसद, विधायक या प्रदेश स्तरीय नेता के इलाके में कोई कार्यक्रम होता है, तो वह अपने गुट के हिसाब से ही पोस्टर, होर्गिंग्स या बैनर पर नेताओं के फोटो लगवाता है। 18 नवंबर को जब हिसार में वोट चोर, गद्दी छोड़ अभियान चलाया गया, तो उसके पोस्टर, बैनर और होर्डिंग्स से कुमारी शैलजा की तस्वीर गायब थी। कुमारी शैलजा कांग्रेस की सांसद हैं और दलित नेताओं में एक बड़ा चेहरा हैं। 

हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह यह बात बिल्कुल साफ कर चुके हैं कि पोस्टर, बैनर और होर्डिंग्स पर राष्ट्रीय नेताओं के अलावा राज्य के वरिष्ठ नेताओं, सांसदों, विधायकों और स्थानीय नेताओं की तस्वीरें जरूर लगाई जाएंगी। इसके बावजूद कई जगहों पर पोस्टरों में नेताओं की तस्वीरें गायब दिखाई देती हैं। अंबाला में अनुशासन कमेटी की बैठक के बाद हो सकता है कि कुछ कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की जाए। यदि ऐसा होता है, तो निश्चित रूप से कांग्रेस पार्टी के लिए यह एक अच्छा कदम होगा। 

इससे उन लोगों को संदेश मिलेगा, जो पार्टी लाइन से अलग हटकर काम कर रहे हैं। किसी भी पार्टी की लोकप्रियता इस बात पर निर्भर करती है कि वह लोगों से कितनी जुड़कर काम करती है। उसके नेता किस तरह अनुशासित होकर काम करते हैं। उस पार्टी में कोई आंतरिक कलह है या नहीं। एक ही पार्टी के दो या तीन नेता जब आपस में लड़ रहे हों, तो वह प्रदेश की जनता को संयुक्त होकर लड़ने की सलाह किस मुंह से दे सकते हैं।

Saturday, November 22, 2025

कई दिनों से भूखा बच्चा और आखिरी सिक्का

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

फ्रांस के महान साहित्यकार थे विक्टर मैरी ह्यूगो। कहा जाता है कि 1885 में जब उनकी मृत्यु हुई, तब वह 83 साल के थे। उनकी शव यात्रा में इतने लोग शामिल हुए थे कि उ
स सदी में दुनिया के किसी भी व्यक्ति की शवयात्रा में उतने लोग शामिल नहीं हुए थे। ह्यूगो ने 16 साल की उम्र में कविता लिखकर अच्छी खासी ख्याति अर्जित कर ली थी। ह्यूगो जब 25 साल के थे, तब उनकी ख्याति साहित्यकार के रूप में पूरे फ्रांस में हो चुकी थी। 

पूरा फ्रांस उनके लेखन का दीवाना था। उनकी प्रसिद्ध कृतियों में उपन्यास 'नोत्रे-देम दी पेरिस (1831) और ले मिजेर्बल्स (1862) शामिल हैं। वह रोमांटिक कवि, उपन्यासकार, नाटककार, पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में पहचाने गए थे। कहते हैं कि अपने जीवन के शुरुआती दौर में वह राजशाही के प्रबल समर्थक थे, लेकिन बाद में वह लोकतांत्रिक व्यवस्था के पक्षधर हो गए थे। 

एक बार की बात है। वह अपने घर के बाहर सड़क पर टहल रहे थे। तभी उन्हें कंपकपाती सी आवाज सुनाई दी। एक छोटा सा बच्चा उनके सामने खड़ा कह रहा था कि मैंने कई दिनों से भरपेट खाना नहीं खाया है। क्या आप मेरी कुछ मदद कर सकते हैं। ह्यूगो ने अपनी जेब टटोली। उसमें एक सिक्का पड़ा हुआ था। यह सिक्का उनके एक बहुत जरूरी काम के लिए था। 

उन्होंने जेब से सिक्का निकाला और उस बच्चे के चेहरे को गौर से देखते हुए उसकी हथेली पर सिक्का रख दिया। सिक्का देखकर बच्चे की आंखों में चमक आ गई। उन्होंने कहा कि जीवन में कभी किसी को निराश मत करना। अपनी जेब का एकमात्र सिक्का उस बच्चे को देने के बाद जो सुकून महसूस हुआ, वह अद्भुत था।

विश्व के सबसे बड़े जंगल सफारी बनाने के सपने पर लगा विराम


अशोक मिश्र

हरियाणा में दुनिया की सबसे बड़ी जंगल सफारी बनाने के सपने को विराम लग गया है। गुरुग्राम में छह हजार और नूंह में चार हजार एकड़ में बनने वाली जंगल सफारी का मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है। पांच सेवानिवृत्त वन अधिकारी और पीपुल फॉर अरावली जैसे पर्यावरण समूह ने जंगल सफारी के निर्माण पर आपत्ति जताई है। इन याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यदि जंगल सफारी के निर्माण की इजाजत दी गई, तो इससे संवेदनशील पारिस्थतिकी तंत्र को भारी नुकसान पहुंचेगा। 

लोगों का आवागमन बढ़ने से अरावली क्षेत्र में रहने वाले जीव-जंतुओं का प्राकृतिक रहन-सहन बाधित होगा और उनके स्वाभाविक आवास भी नष्ट हो जाएंगे। इंसानों की भीड़ की वजह से अरावली क्षेत्र में रहने वाले जीवों को प्राकृतिक वातावरण नहीं मिलेगा, इससे उनके जैविक विकास को क्षति पहुंच सकती है। अरावली पर्वत शृंखला हरियाणा के साथ-साथ राजस्थान और गुजरात के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। करीब 790 किमी लंबी पर्वत शृंखला जहां हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का परिचायक है, वहीं पर्यावरण की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि यदि जंगल सफारी परियोजना को मंजूरी दी गई तो अरावली के पर्यावरण में बहुत ज्यादा नकारात्मक बदलाव आएगा जिसकी वजह से पारिस्थितिकी तंत्र में कमजोर होगा। 

सुप्रीमकोर्ट में मामला चले जाने की वजह से पांच साल से चल रहे काम को रोक दिया गया है। परियोजना के खिलाफ याचिका दायर होने के बाद वन विभाग और वन्य जीव विभाग ने काम आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया है। वैसे जंगल सफारी परियोजना का उद्देश्य अरावली क्षेत्र में पर्यटन और वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा देना था। इसके अलावा यह भी सही है कि जंगल सफारी शुरू होने पर प्रदेश के काफी लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार भी मुहैया होता। इससे लोगों की आय में वृद्धि होती। 

राज्य सरकार को भी राजस्व की प्राप्ति होती। परियोजना पर फिलहाल रोक लग जाने से लोगों के रोजगार हासिल होने और राजस्व प्राप्त होने के सपने फिलहाल धक्का लगा है। प्रदेश सरकार ने कोर्ट में यह भी कहा था कि वह सफारी को तीन हजार एकड़ में ही बनाने को तैयार है, लेकिन कोर्ट ने सरकार की याचिका को खारिज करते हुए फैसला होने तक निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है। 

यह भी सही है कि अरावली क्षेत्र में लोगों का हस्तक्षेप पिछले कुछ वर्षों में बहुत अधिक बढ़ गया था। अरावली के प्रतिबंधित क्षेत्र में भी कुछ लोगों ने अवैध रिसार्ट, मैरिज प्वाइंट आदि बना लिए थे। छह महीने पहले ही सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर काफी संख्या में अवैध निर्माण को हटा गया है। यही नहीं, अरावली क्षेत्र को खनन माफियाओं ने बहुत अधिक नुकसान पहुंचाया है।

Friday, November 21, 2025

अच्छा मॉडल हूं, तो मेहनताना मिलना चाहिए


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

आगस्ट रोडिन को आधुनिक मूर्तिकला का संस्थापक माना जाता है। 12 नवंबर 1840 को फ्रांस में जन्मे आगस्ट रोडिन ने मूर्ति कला में भावनाओं, गति और मानव शरीर को दर्शाने की नई विधा ईजाद की थी। हालांकि उनकी कुछ मूर्तियों को लेकर उन दिनों विवाद भी हुआ था। लेकिन रोडिन की प्रसिद्ध मूर्तियों में से द किस, द थिंकर, द गेट्स आफ आल, द एज आफ ब्रांज, मान्यूमेंट टू बाल्जाक आदि प्रमुख हैं। 

रोडिन ने तत्कालीन मान्यताओं और परंपराओं को नकारते हुए मूर्ति कला के नए सिद्धांतों को अपनाया और लोगों की मूर्तिकला के संबंध में प्रचलित धारणा को बदलने का प्रयास किया। रोडिन ने कांस्य और संगमरमर की बहुत सारी प्रतिमाएं बनाई थीं। कहा जाता है कि एक बार अंग्रेजी साहित्य के विख्यात नाटककार जार्ज बनार्ड शॉ ने उनसे अपनी मूर्ति बनाने का अनुरोध किया। 

शॉ अंग्रेजी साहित्य के बहुत बड़े नाटककार थे। उनकी ख्याति दुनिया भर में थी। हालांकि रोडिन भी अपनी कला के क्षेत्र में कम विख्यात नहीं थे। मूर्ति बनाने की कीमत एक हजार पाउंड तय हुई। रोडिन ने शॉ की दस-बारह मूर्तियां बनाईं, लेकिन रोडिन अपनी मूर्तियों से संतुष्ट नहीं थे। वह इससे भी बेहतरीन मूर्ति बनाना चाहते थे। हालांकि, बनार्ड शॉ को उन मूर्तियों में से चार-पांच बहुत पसंद थी। एक दिन शॉ ने मजाक करते हुए कहा कि मेरी मूर्ति कब बनेगी? इतना समय लगाएंगे, तो कमाएंगे क्या? रोडिन ने गंभीरता से जवाब दिया कि जब अच्छा मॉडल मिल जाए, तो कमाई का ध्यान नहीं रहता है। तब शॉ बोले कि अगर मैं अच्छा मॉडल हूं, तो मुझे मेहनताना मिलना चाहिए। रोडिन ने कहा कि एकदिन आपको गर्व होगा कि आपके पास रोडिन की बनाई मूर्ति है। यही आपका मेहनताना होगा।

हरियाणा में एंटी टेररिस्ट स्क्वायड का गठन एक सराहनीय फैसला

अशोक मिश्र

अगर किसी सामान्य नागरिक के पास फोन आए और उससे कहा जाए कि मैं कमिश्नर आफिस से बोल रहा हूं। तुम्हारी आतंकी घटनाओं में संलिप्तता पाई गई है। तुम्हें कमिश्नर आफिस में आना होगा। इस तरह का फोन आने पर स्वाभाविक है कि सामान्य नागरिक ही नहीं, पढ़े-लिखे और उच्च पदों पर काम कर चुके लोग भी भयभीत हो जाएंगे। आजकल साइबर ठगों ने लोगों को ठगने का यह नया तरीका अख्तियार कर लिया है।

एक दिन पहले ही फरीदाबाद में एक व्यक्ति को साइबर ठगों ने आतंकी घटनाओं में हाथ होने का आरोप लगाकर ठगने का प्रयास किया। पुलिस को जब यह जानकारी मिली, तो उसने लोगों को ऐसे ठग गिरोहों से सतर्क रहने के लिए एडवायजरी जारी की है। यह सही है कि हमारे देश आतंकवाद और साइबर ठगी दो बड़ी समस्याएं बनती जा रही हैं। हरियाणा में साइबर ठगी की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। 

सरकार और प्रशासन बार-बार लोगों को जागरूक करने का प्रयास करती है, लेकिन लोग हैं कि इन साइबर ठगों के चंगुल में फंस ही जाते हैं। आतंकी घटनाओं के बारे में भी शासन और प्रशासन लोगों को सचेत करती रहती है। फरीदाबाद की अल फलाह यूनिवर्सिटी इन दिनों काफी चर्चा में है। इस यूनिवर्सिटी में कई डॉक्टर और अन्य कर्मचारी दिल्ली में दस नवंबर को हुए ब्लास्ट में शामिल बताए गए हैं। काफी आरोपियों को पुलिस और एनआईए ने गिरफ्तार भी किया है। कुछ लोगों की संपत्ति भी जब्त की गई है। अब सवाल यह है कि आतंकी इतने दिनों तक फरीदाबाद में सक्रिय रहे और पुलिस प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लगी। 

जब जम्मू-कश्मी एंटी टेररिस्ट स्क्वायड ने अपने राज्य में कुछ आतंकियों को गिरफ्तार किया और उनके कबूलने पर हरियाणा में छापा मारकर आतंकियों को गिरफ्तार किया, तब जाकर फरीदाबाद में पनप रहे आतंकवाद के बारे में जानकारी मिली। यह सब कुछ इसलिए हुआ क्योंकि राज्य में एटीएस का गठन नहीं किया गया है। देश के कई राज्यों ने अपने यहां आतंकी घटनाओं को रोकने और आतंकियों पर नजर रखने के लिए एंटी टेररिस्ट स्क्वायड का गठन कर रखा है। हर जिले में इनकी इकाइयां गठित हैं। 

एटीएस के सदस्य दूसरे राज्यों से संपर्क बनाकर एक दूसरे से सूचनाएं साझा करते रहते हैं। इस तरह अपने राज्य के आतंकियों पर नजर रखते हैं और उनको नेस्तनाबूत करते रहते हैं। अब हरियाणा सरकार ने भी आतंकवाद से निपटने के लिए एटीएस गठित करने का फैसला लिया है। देर से ही सही, लेकिन प्रदेश सरकार का यह उत्तम फैसला है। जल्दी से जल्दी एटीएस का गठन करके पूरे राज्य में इसका जाल बिछाया जाना चाहिए, ताकि कोई भी आतंकी संगठन प्रदेश में किसी प्रकार की आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के बारे में सोच ही न सके।

Thursday, November 20, 2025

व्यंग्य लेखन के लिए जेल में डाले गए वाल्टेयर

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

वाल्टेयर को फ्रांसीसी साहित्य में दार्शनिक, इतिहासकार और व्यंग्यकार के रूप में प्रतिष्ठा हासिल हुई थी। वह अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के लिए प्रसिद्ध थे। वैसे वाल्टेयर उनका उपनाम था। उनका असली नाम फ्रांस्वां-मारी अरुए था। वाल्टेयर अभिव्यक्ति और धार्मिक स्वतंत्रता के पक्षधर थे। वाल्टेयर की रचनाओं में व्यंग्य का पुट ज्यादा होता था जिससे शासक तिलमिला जाते थे। 

वह कई बार रोमन कैथोलिक चर्च की भी समीक्षा कर चुके थे। इसका नतीजा यह हुआ कि वह कई बार सार्वजनिक जगहों पर पीटे गए। शासकों ने उन्हें जेल में डाल दिया। वैसे बचपन में उनके पिता फ्रांकोइस अरौएट चाहते थे कि उनका बेटा वकील बने क्योंकि वह खुद एक वकील थे और एक मामूली कोषागार के अधिकारी थे। लेकिन वाल्टेयर की रुचि साहित्य में थी। 

वह लेखक बनना चाहते थे। जब वाल्टेयर को यह लगने लगा कि फ्रांस में रहकर अपनी बात कह पाना मुमकिन नहीं है, तो उन्होंने देश छोड़ने का फैसला किया। वह देश छोड़कर लंदन आ गए। लंदन में अभिव्यक्ति पर उन दिनों कोई प्रतिबंध नहीं था। जिन बातों को वह लिखना चाहते थे, उन बातों को लंदन में रहकर लिख सकते थे। लंदन में रहने के दौरान अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन करने के बाद ही उनकी समझ में आया कि धार्मिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या महत्व है। 

इसके बाद वह फिर फ्रांस लौट गए और इंग्लैंड में लिखी पुस्तक लेटर्स आॅन द इंग्लिश प्रकाशित कराई। इस बार भी फ्रांस की सत्ता तिलमिला उठी। पुस्तक की प्रतियां जला दी गईं और प्रकाशक को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद वह अज्ञातवास में चले गए। सन 1778 में उनकी मौत हो गई।

दम घोटू प्रदूषण से बचकर रहें हरियाणा के बच्चे और बुजुर्ग


अशोक मिश्र

दिल्ली एम्स ने प्रदूषण को लेकर चेतावनी दी है कि दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी जैसे हालात पैदा हो गए हैं। अगर बहुत जरूरी न हो, तो लोगों को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। बच्चों और बुजुर्गों को बहुत संभलकर रहने की जरूरत है। सच तो यह है कि दिल्ली ही नहीं, एनसीआर, हरियाणा और पंजाब आदि राज्यों की हालत भी लगभग दिल्ली जैसी है। हरियाणा में भी कई जिले प्रदूषण की चपेट में हैं। फरीदाबाद, पलवल, गुरुग्राम जैसे कई शहरों में हालात बेकाबू होने वाले हैं। राज्य सरकार तो प्रयास कर रही है, लेकिन उन प्रयासों का सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आ रहा है। 

हरियाणा भी धीरे-धीरे गैस चैंबर में तब्दील होता जा रहा है। इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि अस्पतालों में वायु प्रदूषण के चलते बीमार होने वालों की भरमार होती जा रही है। सरकारी और निजी अस्पतालों में सांस, हृदय, त्वचा और स्लीप एपनिया जैसी समस्याओं से जूझ रहे लोग पहुंच रहे हैं। हरियाणा में पहले से बीमार मरीजों की हालत गंभीर होती जा रही है, वहीं ऐसे रोगों से पीड़ित नए मरीज भी अस्पताल पहुंच रहे हैं। वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव केवल फेफड़ों पर ही नहीं पड़ता है, बल्कि शरीर के दूसरे अंग भी प्रभावित होते हैं। पूरे प्रदेश में ग्रैप नियमों को लागू किया गया है। 

सरकार दावा कर रही है कि ग्रैप नियमों का पालन कराने के लिए स्थानीय निकायों को लगा दिया गया है, लेकिन हकीकत उससे जुदा है। प्रदेश के कई जिलों में धड़ल्ले से निर्माण कार्य हो रहा है। खुलेआम कूड़ा जलाया जा रहा है, लेकिन प्रशासन इन्हें रोक पाने में नाकाम साबित हो रहा है। राज्य की सड़कों पर कई जगह निर्माण कार्य और सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। नतीजा यह है कि सड़कों पर वाहनों के आवागमन के चलते सड़कों पर धूल उड़ रही है। हरियाणा सरकार ने मंगलवार को दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एक कार्य योजना प्रस्तुत की है। 

राज्य सरकार का कहना है कि  परिवहन, कृषि, नगर पालिका प्रबंधन और ऊर्जा उत्पादन से जुड़े अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपाय लागू किए गए हैं। इससे प्रदेश के कई जिलों में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में सफलता मिली है। विभिन्न विभागों से समन्वय बनाकर कार्य करने से प्रदेश में पराली जलाने की घटनाओं पर रोक लगाने में बहुत हद तक सफलता मिली है। राज्य के कुछ जिलों में डीजल से चलने वाले आटो वाहनों को सड़कों से हटा दिया गया है। इनकी जगह बैटरी से चलने वाले आटो-रिक्शा को प्रमुखता प्रदान की जा रही है। कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने कहा है कि अगले साल तक खेतों में पराली जलाने जैसी घटनाओं को शून्य पर लाने को सरकार प्रयासरत है। नोडल अधिकारियों की सख्ती और किसानों के सहयोग से यह लक्ष्य हर हालत में पूरा कर लिया जाएगा।

Wednesday, November 19, 2025

हेयरस्टन को जीवन भर भोगना पड़ा रंग भेद का दंश

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र


जेस्टर हेयरस्टन को नीग्रो होने की वजह से काफी संघर्ष करना पड़ा। उनका जन्म अमेरिका में सन 1901 में हुआ था। हेयरस्टन में संगीत के प्रति रुचि अपनी दादी की वजह से पैदा हुई। दरअसल, बात यह है कि जब जेस्टर छोटा था, तभी उनके पिता की मौत हो गई थी। उनकी मां काम पर जाती थी, तो वह अपना समय अपनी दादी के साथ बिताता था। दोपहर में उसकी दादी की सहेलियां उसके घर आ जाती थीं। 

उनकी दादी अपनी सहेलियों के साथ गपशप करती और गीत गाती थीं। हेयरस्टन उनके गीत सुनता। उसे अच्छा लगता था। धीरे-धीरे उसकी रुचि गीतों में बढ़ती गई। उसने तय कर लिया कि वह आगे चलकर संगीतकार बनेगा। हेयरस्टन ने ट्फ्ट्स यूनिवर्सिटी से संगीत में स्नातक किया और बाद में जूलियार्ड स्कूल में भी संगीत की पढ़ाई की। 

जब अपनी कला को हेयरस्टन ने व्यावसायिक रूप देना चाहा, तो नीग्रो होने की वजह से लोगों ने उसका खूब मजाक उड़ाया। लेकिन हेयरस्टन ने हार नहीं मानी। वह अपने काम में लगा रहा। उसकी गायन कला पर एक दिन एक कंपनी की निगाह पड़ी और उसने हेयरस्टन को एक अवसर देने का फैसला किया। 

बस यहीं से हेयरस्टन की जिंदगी बदल गई। उनके गीतों ने पूरी दुनिया पर जादू किया। दुनिया भर में उनके गीतों को सुना जाने लगा। उनके प्रसिद्ध होने के बाद लोगों का नजरिया बदला, लेकिन अब भी कुछ लोग नीग्रो होने की वजह से भेदभाव करते थे। 

एक बार हेयरस्टन ने अपने साथ हुए भेदभाव की बात स्वीकार करते हुए कहा था कि संगीत की कोई जाति नहीं होती है। जो उसे मन से अपनाता है, वह उसी का हो जाता है। 2000 में 98 साल की आयु में हेयरस्टन का देहांत हो गया।

उत्तरी क्षेत्रीय परिषद में हरियाणा ने फिर मांगा अपने हिस्से का पानी

अशोक मिश्र

फरीदाबाद के सूरजकुंड में कल यानी 17 नवंबर को उत्तरी क्षेत्रीय परिषद की 32वीं बैठक हुई। बैठक में कई तरह के मुद्दे उठाए गए। लाल किले के पास दस नवंबर को हुए विस्फोट पर तो चर्चा हुई ही, लेकिन इस बीच पंजाब-हरियाणा के बीच जल विवाद का मसला भी काफी चर्चा में रहा। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाते हुए कहा कि सभी राज्यों  के पानी के हिस्से को संबंधित राज्य तक पहुंचाने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। 

हरियाणा लगातार दिल्ली को उसके हिस्से से अधिक पानी दे रहा है, जबकि एसवाईएल नहर के निर्माण में देरी के कारण पंजाब से हरियाणा को पूरा पानी नहीं मिल पा रहा। पानी हम सबका साझा संसाधन है, इसलिए उसे स्वच्छ रखना सभी की जिम्मेदारी है। सीएम सैनी के मुद्दे उठाने के बाद पंजाब के सीएम भगवंत मान ने कहा कि पंजाब की नदियों के जल पर पंजाब का पूरा हक है। 

मान ने कहा कि इंडस वाटर ट्रीटी निलंबन के बाद अब मौका है कि राज्यों के बीच पानी के विवाद का हल निकाला जाए। चिनाब नदी को रावी-ब्यास से जोड़ा जाए, ताकि पंजाब व बाकी राज्यों को सिंचाई और बिजली के लिए ज्यादा पानी मिल सके। वैसे रावी-ब्यास से चिनाब को जोड़ने की बात वह कई बार दोहरा चुके हैं। दरअसल, पंजाब और हरियाणा के बीच चल रहा जल विवाद बहुत पुराना है। एसवाईएल मामले को लेकर सन 1960 से लेकर अब तक कई बार मामला सुप्रीम की कोर्ट की चौखट तक पहुंच चुका है। 

हरियाणा ने अपने हिस्से की नहर तक तैयार कर ली है, लेकिन पंजाब अपने हिस्से की नहर तैयार करने को राजी नहीं है। निकट भविष्य में भी एसवाईएल मुद्दे के हल होने के आसार नहीं दिख रहे हैं। रावी-ब्यास नदी को चिनाब से जोड़ने की मांग करके सीएम मान ने मामले को और उलझा दिया है। रावी-चिनाब नदियों का पानी पंजाब और हरियाणा तक पहुंचाने को यदि केंद्र तैयार भी हो जाए, तो इसे अमल में लाने में काफी समय लगेगा। इतना आसान नहीं है रावी-ब्यास और चिनाब से पंजाब तक नहर बनाना। 

इसमें काफी पैसा और समय लगेगा। सच कहा जाए, तो वास्तविक स्थिति से सीएम मान वाकिफ हैं। इसी वजह से उन्होंने यह मुद्दा उठाया है। पिछले कई दशक से एसवाईएल का मुद्दा दो राज्यों के बीच झूल रहा है, लेकिन अभी तक उसका कोई हल नहीं निकला है। यदि पंजाब एसवाईएल के जरिये पानी देने को तैयार भी हो जाता है, तो पंजाब में एसवाईएल नहर निर्माण में भी कई साल लग जाएंगे। पंजाब से पानी नहीं मिलने की वजह से हरियाणा में पानी की समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। गर्मी में दक्षिण हरियाणा सहित कई हिस्सों में पानी की समस्या भयानक रूप अख्तियार कर लेती है। लोग बूंद-बूंद पानी को तरस जाते हैं। 

Tuesday, November 18, 2025

बच्चा होकर भी तू बात बुड्ढों वाली करता है



















बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

सिख धर्म के इतिहास में बाबा बुड्ढा सिंह का नाम बड़े गर्व और सम्मान के लिया गया है। बाबा बुड्ढा सिंह ही वह आदमी थे जिन्हें सिख पंथ के पांच गुरुओं गुरु अंगद देव, अमरदास, रामदास, अर्जन देव और हरगोविंद को गुरु गद्दी का तिलक लगाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। गुरु नानक देव की भी कृपा बाबा बुड्ढा सिंह को प्राप्त हुई। इनका वास्तविक नाम बूरा बताया जाता है। 

बाबा बुड्ढा सिंह नाम पड़ने के पीछे भी एक रोचक कथा है। सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक देव ने अपनी संगत के लिए एक नियम बना रखा था। जो भी उनके दरबार में आता था, उसे भक्तिभाव से कीर्तन करना जरूरी था। दरबार में आने वाले लोग भी बड़ी श्रद्धा के साथ कीर्तन किया करते थे। गुरु नानकदेव भी लोगों को उपदेश दिया करते थे। उनके उपदेशों को सुनकर लोग अपने को धन्य मानते थे। 

वैसे भी सिख धर्म के सभी गुरुओं के उपदेश-निर्देश पूरी मानवता के लिए हैं। खैर। तो गुरुनानक देव के दरबार में एक बच्चा सबसे पहले आता था और चुपचाप खड़ा रहता था। यह क्रम काफी समय से चला आ रहा था। एक दिन बाबा नानक ने उस बच्चे से बड़े प्यार से पूछ ही लिया। तुझे नींद नहीं आती है? यह समय तो तेरे सोने का है। तेरा खेलकूद में मन नहीं लगता है? 

उस बालक ने कहा कि कीर्तन सुनना मुझे अच्छा लगता है। मेरी मां रोज चूल्हा जलाते समय छोटी-छोटी लकड़ियां पहले जलाती हैं, मोटी लकड़ी को जलने में समय ज्यादा लगता है। बच्चों को ज्ञान की बात जल्दी समझ में आती है। यह सुनकर गुरु जी ने कहा कि उम्र में तू बच्चा है, लेकिन बात बुड्ढों वाली करता है। बस तभी से बूरा का नाम बाबा बुड्ढा सिंह पड़ गया।