बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
जापान के महान सेनापतियों में गिने जाते हैं ओडा नोबुनागा। इनका जन्म 23 जून 1534 को ओवारी प्रांत के नागोया में हुआ था। नोबुनागा को जापान का एकीकरण करने वाला महान शासक कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने समय के तमाम राज्यों को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया था। कुछ लोग नोबुनागा को दूरदर्शी किंतु क्रूर मानते हैं।नोबुनागा ने अपने जीवन में कई लड़ाइयां लड़ी और पराजित होने वाले कबीलों को पूरी तरह नष्ट कर दिया। एक बार की बात है। नोबुनागा अपने कुछ सैनिकों के साथ कहीं पड़ाव डाले हुए थे। वह जानता था कि युद्ध निकट है, लेकिन उसने अपनी सेना की एक टुकड़ी को दूसरी जगह भेज दिया था। तभी उसके सेना अधिकारी ने आकर उससे कहा कि विरोधी सेना आक्रमण के लिए तैयार है।
तब उसने अपने सैनिकों को एक मंदिर के पास जमा किया और कहा कि मंदिर के सामने मैं तीन बार सिक्का उछालता हूं। यदि चित आया तो विजय निश्चित है। यह देवता का आदेश होगा। उसने तीन बार सिक्का उछाला और तीनों बार सिक्का चित ही आया। उसकी सेना उत्साह से भर उठी। उसे यह विश्वास हो गया कि देवता उससे प्रसन्न हैं और वह भी नोबुनागा की विजय चाहते हैं।
कम होते हुए भी नोबुनागा की सेना ने बड़े उत्साह के साथ शत्रु पर हमला बोला और उन्हें पराजित कर दिया। विजयी सेना जब इकट्ठी हुई तो उसने उस सिक्के को दिखाते हुए कहा कि यह आपके मनोबल की जीत हुई है। सिक्का इस तरह ढाला गया था कि दोनों ओर चित वाला प्रतीक ही था। कहते हैं कि 21 जून 1582 को दुश्मन की सेना से घिर जाने के बाद ओडा नोबुनागा ने एक कमरे में जाकर आत्महत्या कर ली।

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