अशोक मिश्र
एक जनवरी से 15 जनवरी तक हरियाणा के सरकारी और वित्त पोषित स्कूलों में अवकाश रहेगा। दसवीं और बारहवीं स्कूल के बच्चों को हो सकता है कि प्रैक्टिकल के लिए स्कूल आना पड़ सकता है। अवकाश के दिनों में बच्चों को होमवर्क दिए जा रहे हैं। इस बार होमवर्क देने का तरीका पुराने पैटर्न से थोड़ा हटकर है। इस बार प्रयास किया जा रहा है कि पंद्रह दिन तक छुट्टी पर रहने वाले बच्चे अपने परिजनों के साथ आत्मीय संबंध बनाएं। उनके साथ रहकर न केवल सामाजिक ज्ञान प्राप्त करें, बल्कि वह अपने आसपास के पर्यावरण के प्रति भी जागरूक हों। यह जागरूकता उन्हें भविष्य में सामाजिक जीवन में प्रवेश करने पर काम आएगी।हमारे देश में सदियों से बच्चे किशोरावस्था तक अपने माता-पिता, दादी-दादा, नानी-नाना और ताया-ताई आदि के संरक्षण में पलते थे। वह अपने परिवार में एक दूसरे के साथ होने वाले व्यवहार, बातचीत और कार्यकलाप को बहुत नजदीक से देखते थे। इससे उन्हें पारिवारिक संरचना और सबसे व्यवहार करने का सलीका सीखने को मिलता था। किससे किस तरह की बातचीत करनी है, किसका आदर करना है, हम उम्र के साथ किस तरह से रहना है, यह सब कुछ सीखते थे।
वह घर के काम में भी हाथ बंटाते थे। इससे उन्हें जिम्मेदारी का एहसास होता था। रात में सोते समय अपने बुजुर्गों के साथ बैठकर वह कहानियां सुनते थे, पहेलियां हल करते थे। देश-समाज और गांव या शहर के बारे में जानकारियां हासिल करते थे। बहुत सारी जानकारियां उन्हें अपने परिजनों से ही प्राप्त हो जाती थीं। इस बार भी बच्चों को कुछ इसी तरह के काम दिए जा रहे हैं। वह घर में अपनी मां के कामों में हाथ बटाएंगे। कोई पकवान बनाना सीखेंगे। अपने बुजुर्गों से तेनालीराम, अकबर-बीरबल के किस्से, पंचतंत्र की कहानियां, जातक कथाएं आदि सुनेंगे। इन कथाओं से उन्होंने क्या सीखा, यह अपने होमवर्क की डायरी में दर्ज करना होगा।
वह अपने घर के आसपास पौधरोपण करेंगे। उन पौधों की सुरक्षा और देखभाल भी उनके जिम्मे रहेगी। इससे वह पर्यावरण के प्रति सचेत होंगे। दैनिक जीवन से जुड़े उदाहरणों से वह जोड़-घटाना, गुणा-भाग भी सिखाने का प्रयास किया जाएगा। इस बार बच्चों को कोई ऐसा होमवर्क नहीं दिया जा रहा है जिससे उन्हें रटने या कापी-किताबों के बोझ तले दबना पड़े।
दरअसल, यह हरियाणा सरकार का नया प्रयोग है, ताकि हमारी भावी पीढ़ी संस्कारवान बने। उनमें संस्कारों का पोषण करने के लिए ही पंद्रह दिनों तक अपने परिजनों के निकट रहने का अवसर प्रदान किया जा रहा है। इस कार्य में उनके परिजनों का भी सहयोग लिया जाएगा। रोज तीस-चालीस मिनट तक बच्चों को रचनात्मक और व्यावहारिक ज्ञान दिलाने में माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों से मदद ली जाएगी।

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