Wednesday, December 31, 2025

पूरी दुनिया की संपदा से भी नहीं चुकाया जा सकता मां की ममता का मोल


अशोक मिश्र

दुनिया की सभी भाषाओं में मां के लिए जो भी शब्द प्रचलित हों, वह उस भाषा के सबसे पवित्र शब्द है। मां अपनी संतान को नौ महीने पेट में रखने के बाद जब जन्म देती है, तो वह जिस पीड़ा से गुजरती है, उसका कोई मुकाबला नहीं हो सकता है। मां कैसी भी हो, अपने बच्चे को अटूट प्यार देती है। अगर कहीं बच्चे को चोट लग जाए, तो सबसे पहले मां को ही दर्द महसूस होता है। 

मां अपने बच्चे के लिए कुछ भी कर सकती है। समाज में कई ऐसी घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं कि मां अपने बच्चों की भूख मिटाने के लिए अपना तन तक बेच देती है। इसके बड़ा बलिदान कोई दूसरा नहीं हो सकता है। मां की ममता का एक उदाहरण फरीदाबाद में देखने को मिला। 

फरीदाबाद की संजय कालोनी निवासी रीना की बेटी को रविवार की दोपहर में पेट दर्द हुआ। वह अपनी बच्ची को बीके अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में लेकर पहुंची। अस्पताल में मौजूद डॉक्टर ने उसकी जांच के बाद बताया कि बच्ची की यहां आने से पहले ही मौत हो चुकी है। डॉक्टर ने कागजी कार्रवाई करते हुए बच्ची के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया। इसके बाद भी रीना को यही लग रहा था कि उसकी बच्ची जिंदा है। डॉक्टर से जांचने में कोई गलती हुई है। मां की ममता यह मानने को तैयार ही नहीं थी कि उसकी बेटी की मौत हो चुकी है। वह छटपटा रही थी कि क्या किया जाए? 

उसने अंत में फैसला लिया और मॉर्च्युरी से अपनी बेटी का शव उठाया और उसे लेकर निजी अस्पताल की ओर भाग खड़ी हुई। मॉर्च्युरी में मौजूद लोगों ने इसका विरोध भी किया। लेकिन रीना नहीं मानी। निजी अस्पताल में पहुंचने पर वहां के डॉक्टरों ने भी वही बात बताई जो बीके अस्पताल के डॉक्टर बता चुके थे। इधर बीके अस्पताल के कर्मचारियों ने पुलिस को सूचित कर दिया। पुलिस ने आकर सब कुछ संभाला। बच्चे के प्रति मां की इस ममता ने कई लोगों को द्रवित कर दिया। 

अफसोस की बात यह है कि यही बच्चे जब बड़े हो जाते हैं, तो वह अपनी मां और पिता के प्रति लापरवाह हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि उनके मां-बाप ने उनके लिए किया ही क्या है? देश में दिनोंदिन बढ़ रहे वृद्धाश्रम इस बात की गवाही देते हैं। बच्चे बड़े होकर नौकरी या रोजगार करने के लिए जब मां-बाप से दूर चले जाते हैं, तो वह धीरे-धीरे अपने माता-पिता के बारे में सोचना बंद कर देते हैं। ऐसा सभी बच्चे नहीं करते हैं। ऐसा करने वाले मुश्किल से कुछ ही प्रतिशत होंगे। कई बार तो ऐसा भी देखने को मिलता है कि बूढ़े माता-पिता अपने घर से दूर जाना नहीं चाहते हैं, लेकिन बच्चों की मजबूरी यह होती है कि उनको नौकरी ही दूसरे जिले या राज्य में मिलती है। ऐसी दशा में उनके लिए अपने माता-पिता को अकेला छोड़ना मजबूरी हो जाती है।

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