Wednesday, December 31, 2025

सबसे बड़ी जरूरत अरावली क्षेत्र को संरक्षित करने की है


अशोक मिश्र

संतोष की बात यह है कि सुप्रीमकोर्ट ने 20 नवंबर के अपने ही फैसले पर रोक लगा दी है। सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले से गुजरात, दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा और राजस्थान में आंदोलन कर रहे पर्यावरण प्रेमी और जागरूक नागरिकों ने चैन की सांस ली है। अब उनकी निगाहें 21 जनवरी 2026 को होने वाली सुनवाई पर टिकी हुई है। सुप्रीमकोर्ट भविष्य में अरावली को लेकर क्या फैसला देता है, यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि सुप्रीमकोर्ट करोड़ों लोगों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए अपने पुराने फैसले को पलट देगा और लोगों को स्थायी रूप से राहत प्रदान करेगा। 

इस मामले में पर्यावरणविदों का मानना है कि सवाल यह नहीं है कि कितनी ऊंचाई वाली पहाड़ियां अरावली क्षेत्र में मानी जाएंगी। सबसे बड़ा सवाल यह है कि संपूर्ण अरावली क्षेत्र को ही संरक्षित किया जाए। उन्हें संरक्षण प्रदान किया जाए। सौ मीटर वाली परिभाषा में यह आशंका थी कि सौ मीटर से नीचे की पहाड़ियों पर खनन के लिए सरकारें इजाजत दे देंगी। रियल एस्टेट, खनन और वन माफियाओं को अरावली को तहस नहस करने का लाइसेंस मिल जाएगा। 

लोगों का यह भी मानना था कि अरावली क्षेत्र में जिन राजनेताओं, उद्योगपतियों और रियल एस्टेट से जुड़े लोगों ने अपने रिसार्ट, मैरिज हाल और भव्य मकान बना रखे हैं, उनको वैधता मिल जाएगा। इसी साल कोर्ट के आदेश पर अरावली क्षेत्र में अवैध रूप से बनाए गए पक्के निर्माणों को ढहा दिया गया था। तब यह भी बात उठी थी कि कुछ रसूखदार लोगों के पक्के निर्माण को नहीं गिराया गया है।  इससे लोगों में काफी आक्रोश था। यही वजह है कि जब सुप्रीमकोर्ट ने सौ मीटर वाली परिभाषा दी, तो लोगों का आक्रोश फूट पड़ा। अरावली पर्वत शृंखलाओं से जुड़े चारों राज्यों में लोगों ने विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।

इन चारों राज्यों में रहने वाले करोड़ों लोगों का मानना है कि यदि अरावली पर्वतमाला सुरक्षित रहेगी, तभी लोगों को स्वच्छ वायु सांस लेने के लिए मिलेगी। अरावली है, तो हम हैं। लोगों का यह सोचना सही भी है। करोड़ों साल से अरावली पर्वत शृंखलाएं यहां के लोगों को प्राणवायु प्रदान करती रही हैं। राजस्थान से उठने वाले रेत के बवंडर को अपनी सीमा के बाहर ही रोककर अरावली ने चारों राज्यों को रेगिस्तान होने से बचा लिया है। अरावली क्षेत्र में उगने वाले पेड़-पौधों ने जलवायु परिवर्तन की गति को भी काफी हद तक धीमा कर रखा है। 

अरावली बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे लोगों की मांग है कि सुप्रीमकोर्ट इस मामले में एक एक्सपर्ट कमेटी गठित करे जो पूरे अरावली क्षेत्र का विस्तृत अध्ययन करने के बाद अपनी रिपोर्ट पेश करे। इस रिपोर्ट के आधार पर ही अरावली के बारे में भविष्य में फैसले लिए जाएं।

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