अशोक मिश्र
कहते हैं कि लोभ सबसे बुरी बला है। लोभ के वशीभूत होकर लोग अपना नुकसान करा बैठते हैं। कई बार लोभ इतना भारी पड़ता है कि लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ती है। कुछ मामलों में तो यह भी देखा गया है कि लालच के चक्कर में लोग अपना कमाया हुआ धन भी गंवा बैठते हैं। इसके बावजूद लोग सबक नहीं लेते हैं।इस संदर्भ में एक रोचक कथा कही जाती है। यह घटना सत्य घटना नहीं, बल्कि केवल एक कथा ही है। किसी राज्य के राजा के दरबार में एक कर्मचारी था। वह किसी काम से एक जंगल की ओर से गुजर रहा था। जंगल के बीचो बीच पहुंचने पर उसे एक आवाज सुनाई दी।
उसने ध्यान लगाकर बात सुनने की कोशिश की। उसे लगा कि कोई कह रहा है कि सात घड़ा धन लोगे? उसने इधर उधर देखा, लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दिया। एक बार उसने साहस किया और बोला, हां, लूंगा सात घड़ा धन। तब उसे दोबारा आवाज सुनाई दी। उस आवाज ने कहा कि सात घड़ा धन तुम्हारे घर पहुंच चुका है। घर जाकर देख लेना। उसे संभालकर रखना।
जिस काम के लिए वह आदमी जा रहा था, उसे जल्दी-जल्दी निपटाया और घर पहुंच गया। घर जाकर उसने देखा कि छह घड़ा तो भरा हुआ है। लेकिन सातवां घड़ा खाली है। उसने सोचा कि मैं इस घड़े को भर दूंगा। उसने अपने घर के सारे जेवर उस घड़े में डाल दिया। घड़ा नहीं भरा। उसने राजा से वेतन बढ़ाने को कहा। राजा ने वेतन दो गुना कर दिया। फिर भी वह गरीब ही बना रहा। एक दिन राजा ने उससे पूछ लिया कि क्या तुम्हें सात घड़ा धन तो नहीं मिल गया है? उसने कहा, हां महराज। राजा ने कहा कि उससे छुटकारा पा लेने में ही भलाई है। उस आदमी ने धन से छुटकारा पाया, लेकिन उसका अपना धन भी चला गया।


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